गुरुवार, 26 सितंबर 2019

अवैध बिकने वाली शराब का विरोध क्यों नही होता

शराब को लेकर टीएसआर सरकार और शराब विरोधियों का दोहरा रवैया!
अवैध बिकने वाली शराब का विरोध क्यों नही होता



प0नि0ब्यूरो
देहरादून। 07 जून 2017। मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने सनगांव डोईवाला में थानो चौक पर स्थानीय महिलाओं के आग्रह पर शराब की दो दुकानों के आदेश तत्काल प्रभाव से निरस्त करवाये। मुख्यमंत्री  जौलीग्रांट  एयरपोर्ट से सन गांव सड़क मार्ग से एक कार्यक्रम में शामिल होने जा रहे थे। उक्त दौरे के बीच थानो चौक में स्थानीय महिलाओं के आग्रह पर मुख्यमंत्री द्वारा दो दुकानों के आदेश तत्काल प्रभाव से निरस्त करवाये गये।
खबर लोकलुभावनी जरूर लगती है लेकिन इसमें भी राजनीति की बू आ रही है। यह बात टीएसआर के दोहरे रवैये को उजागर करने वाला है। ठीक उसी तरह जैसे शराब का विरोध करने वाले लोग है। क्या अपने सुना है कि गली मोहल्ले या क्षेत्र में शराब का अवैध कारोबार करने वालों के घर के सामने किसी ने जाकर प्रदर्शन किया या उनके घरों से शराब की बोतलें निकालकर फोडी है। तो फिर वैध रूप से बेची जा रही शराब के विरोध का औचित्य क्या है?
हमारे देश में अजीब सा माहौल सृजित हो रहा है। खानपान से लेकर रहन-सहन तक में विचारधारा दूसरों पर थोपने का सिलसिला सा बन गया है। कोई शाकाहारी है तो वह औरों का मांसाहार छुड़ाने के वास्ते रात दिन एक कर देता है। सड़क गली मोहल्ले की और उसमें कई कई स्पीड़ ब्रैकर जबकि वहां ज्यादातर वहीं के वाशिन्दों ने वाहन दौड़ानी है। जिस तरह से स्पीड ब्रैकर बनाकर दुर्घटनाएं नही रोकी जा सकती, उसी तरह से शराब की दुकानें बंद करवा कर आप अपनों की शराबखोरी कैसे रोक सकते है?
या फिर आप चाहते है कि अवैध शराब बिके या फिर लोग बाग नशे के लिये सबसे सुरक्षित तरीका छोड़कर इससे भी हानिकारक नशें की ओर बढ़ चलें। यानि हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट को त्याग कर ओटोमिक एनर्जी का रूख कर लिया जाये। ताकि बर्बादी हो तो नुकसान का अंदाज लगाने के लिये हिसाब-किताब करने की भी जरूरत न रहे। लेकिन मुख्यमंत्री है तो कुछ भी फैसले कर सकते है। शराब की दुकाने अलाट हुई और उसे निरस्त कर दिया, इसमें बड़ी बात क्या है?
लेकिन जनाब अभी पेंच बाकी है। यह तो सबको मालूम है कि शराब की दुकानों के लिये पर्ची सिस्टम अपनायी जाती है। इसके लिये दावेदार बकायदा बीस-बाइस हजार का रिस्क लेते है। लाखों की रकम का ड्राफ्रट बनवाते है। उसके बाद ही कहीं जाकर लाटरी निकलती है। तो भी राजस्व चुकाने के लिये व्यवसायिक जोखिम उठाना पड़ता है।
इतना कुछ करने के बाद यदि लाटरी निकली और काम धंधे का वक्त आया तो दुकान निरस्त कर दी गई। यह उक्त व्यवसायी के साथ अन्याय नही तो क्या है? फिर उन अन्य लोगों के पैसों की वापसी का क्या जिन्होंने पर्ची निकलने की आस में निवेश किया। उनके साथ क्या प्रदेश सरकार ने धोखा नही किया? यदि ऐसा काम कोई निजी तौर पर करता तो चार सौ बीसी के आरोप में सलाखों के पीछे होता।
यदि आप वाकयी शराब की दुकानों का विरोध कर रहे लोगों के प्रति संवेदनशील है तो अन्य स्थानों पर जहां विरोध हो रहा है, शराब की दुकानों को निरस्त करने का काम क्यों नही करते है।


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