मंगलवार, 30 जून 2020

लॉकडाउन के दौरान निजी स्कूलों के फीस का मामला पहुंचा सुप्रीम कोर्ट

लॉकडाउन के दौरान निजी स्कूलों के फीस का मामला पहुंचा सुप्रीम कोर्ट



एजेंसी
नयी दिल्ली। देश भर में लागू लॉकडाउन के दौरान निजी स्कूलों द्वारा फीस वसूली का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। अभिभावकों के एक संघ ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर स्कूलों की इस मनमानी पर रोक लगाने की गुहार लगायी है। आठ राज्यों के पेरेंट्स एसोसिएशन ने अदालत में अर्जी लगायी है।
याचिका में कहा गया है लॉकडाउन के दौरान कई निजी स्कूलों द्वारा पूरी फीस वसूली गयी और अभिभावकों पर दबाव बनाया गया। एसोसिएशन ने फीस को लेकर स्कूलों की मनमानी पर अंकुश लगाने के लिए नियमन और व्यवस्था बनाये जाने की गुहार लगायी गयी है। याचिका आठ राज्यों राजस्थान, ओड़िशा, पंजाब, गुजरात, हरियाणा, उत्तराखंड, महाराष्ट्र, दिल्ली और मध्य प्रदेश के पेरेंट्स एसोसिएशन की ओर से दायर की गयी है।
याचिका में यह भी कहा गया है कि ऑनलाइन क्लास के नाम पर स्कूल पूरी फीस वसूल रहे हैं जबकि कई राज्यों की सरकारों ने कहा है कि लॉकडाउन की अवधि में स्कूल केवल ट्यूशन फीस लें। याचिका में यह भी कहा गया कि कई निजी स्कूल तो ऑनलाइन क्लास के नाम पर अगल से फीस वसूल रहे हैं। 
सांसद और भाजपा के शिक्षक सेल की सदस्य लॉकेट चटर्जी की तरफ से भी मांग की गयी है कि निजी स्कूलों को मार्च के मध्य में शुरू होने वाले संपूर्ण लॉकडाउन अवधि के लिए किसी तरह की फीस नहीं लेनी चाहिए। हालांकि निजी स्कूलों ने भी राज्य सरकारों के साथ बातचीत में कहा है कि उनके भी कई ऐसे खर्च हैं तो पूरी तरह बच्चों की फीस पर ही आधारित हैं।
निजी स्कूलों का कहना है कि बच्चों की फीस नहीं आयेगी तो वे शिक्षकों और अन्य कर्मचारियों को वेतन कहां से देंगे। कई स्कूल इस बात पर राजी भी हुए थे कि वे केवल ट्यूशन फीस लेंगे और अन्य प्रकार के शुल्क में लॉकडाउन की अवधि में छूट दी जायेगी। कई स्कूलों ने री-एडमिशन चार्ज नहीं लेने की बात भी कही थी।
वहीं बंबई हाई कोर्ट ने इस साल स्कूलों में फीस बढोत्तरी को रोकने वाले सरकारी प्रस्ताव पर अंतरिम रोक लगाते हुए कहा है कि महाराष्ट्र सरकार को निजी गैर सहायता प्राप्त स्कूलों या अन्य बोर्डों के स्कूलों की फीस संरचना में हस्तक्षेप करने वाला आदेश जारी करने का अधिकार नहीं है। महाराष्ट्र सरकार की ओर से आठ मई को जारी सरकारी प्रस्ताव में राज्य के सभी शैक्षिक संस्थानों को कोविड-19 महामारी के दृष्टिगत शैक्षिक सत्र 20-21 के लिए फीस नहीं बढ़ाने का आदेश दिया था।
अदालत ने कहा कि हमें लगता है कि निजी गैरसहायता प्राप्त स्कूलों का प्रबंधन छात्रों और अभिभावकों को ऐसी किस्तों में फीस का भुगतान करने के लिए विकल्प प्रदान करने पर विचार कर सकता है, जो उचित होने के साथ-साथ उन्हें ऑनलाइन शुल्क का भुगतान करने का विकल्प प्रदान करने की अनुमति देता हो।


डीएम को जांच अधिकारी बदलने के निर्देश                       

डीएम को जांच अधिकारी बदलने के निर्देश                      
- वर्ष 2017-18 के 50 टेंडर्स का है घोटाला 
- 2.38 करोड़ के टेंडर्स मिलीभगत कर मात्र 0.10 न्यूनतम दर पर  किए गए थे स्वीकृत 
- घोटाले में लिप्त अधिकारी से ही करा दी थी प्रशासन ने जांच 
- 40 फ़ीसदी टेंडर्स एक ही ठेकेदार को कर दिए थे आवंटित 
- मोर्चा ने मुख्य सचिव से जांच अधिकारी बदलने का किया था आग्रह 
संवाददाता
विकासनगर। जन संघर्ष मोर्चा के जिला मीडिया प्रभारी प्रवीण शर्मा पिन्नी ने कहा कि नवंबर 2019  में मोर्चा अध्यक्ष रघुनाथ सिंह नेगी के नेतृत्व में प्रतिनिधिमंडल ने मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिंह से मुलाकात कर पालिका विकास नगर में हुए टेंडर घोटाले की पुनः जांच की मांग को लेकर 20/11/19 को ज्ञापन सौंपा था, जिसमें मुख्य सचिव ने गंभीरता दिखाते हुए सचिव, शहरी विकास को मामले की जांच करने के निर्देश दिए थे तथा शासन के निर्देशों के क्रम में निदेशक,शहरी विकास ने जिलाधिकारी को दिनांक 15/06/20 को जांच अधिकारी बदल कर किसी अन्य सक्षम अधिकारी से जांच कराने  के निर्देश दिए।             
शर्मा ने कहा कि वर्ष 2017-18 में नगर पालिका विकास नगर में 2.38 करोड़ के 50 टेंडर्स को मिलीभगत कर मात्र 0.10 फ़ीसदी न्यूनतम दर पर स्वीकृत कर सरकार को 60-70 लाख का चूना लगाने का काम किया गया था तथा लगभग 40 फ़ीसदी टेंडर्स  एक ही ठेकेदार को आवंटित कर दिए थे। अगर पारदर्शी तरीके से टेंडर प्रक्रिया संपन्न होती तो यही कार्य 20 से 40 फ़ीसदी न्यूनतम दरों पर स्वीकृत होते।        


मोर्चा द्वारा उक्त घोटाले की जांच हेतु पूर्व में सचिव, शहरी विकास से आग्रह किया गया था, जिसके क्रम में शासन ने दिनांक 20-7-18 को जिलाधिकारी एवं निदेशक, शहरी विकास को जांच के निर्देश दिए थे।
मोर्चा के मुताबिक प्रशासन ने किसी ईमानदार व निष्पक्ष एजेंसी से जांच कराने के बजाय उसी घोटालेबाज अधिकारी से जांच करा दी, जिसने घोटाले को अंजाम दिया था तथा उक्त अधिकारी ने जांच कर रिपोर्ट प्रशासन के माध्यम से शासन को प्रेषित करवा दी। मोर्चा ने कहा कि वह भ्रष्ट अधिकारियों को किसी सूरत में नहीं बख्सेगा।


सोमवार, 29 जून 2020

वृक्षमित्र डा0 सोनी कोरोना वारियर्स सम्मान से सम्मानित

वृक्षमित्र डा0 सोनी कोरोना वारियर्स सम्मान से सम्मानित



क्षेत्र पंचायत सदस्य व प्रधान ने कोरोना वारियर्स सम्मान प्रदान किया
संवाददाता
टिहरी गढ़वाल। लंबे समय से पर्यावरण के क्षेत्रा में कार्य कर रहे वृक्षमित्र डा0 त्रिलोक चंद्र सोनी ने अपनी भूमिका निभाते हुए लाकडाउन में ग्राम पंचायत मरोड़ा, ग्राम पंचायत लामकाण्डे, ग्राम पंचायत हटवालगांव व चम्बा ब्लाक के दूरस्थ गांव बनाली के लोगों को कोरोना महामारी से बचाव के लिए मास्क पहनने, सामाजिक दूर बनाये रखने, समय-समय पर हाथ धोने, गांव में स्वच्छता के लिए जागरुक व प्रेरित करने के साथही गांव के लोगों के लिए मास्क, सेनेटाइजर का वितरण भी किया। ऐसे दुर्गम क्षेत्र में कार्य करने पर डा0 त्रिलोक चंद्र सोनी को क्षेत्र पंचायत सदस्य हटवालगांव सरिता रावत व प्रधान मरोड़ा नीलम देवी ने कोरोना वारियर्स सम्मान से सम्मानित किया।
पर्यावरणविद् डा0 त्रिलोक चंद्र सोनी ने कहा कि मानव जीवन अनमोल है और प्रकृति ने इस धरा में मनुष्य को एक दूसरों के साथ भाईचारे व दुख-सुख निभाने को भेजा है लेकिन मनुष्य अपने स्वार्थ के कारण सब कुछ भूल गया है। इस कारण ऐसी महामारी जन्म ले रही हैं जो चिंतनीय विषय हैं। समय रहते हमंे सतर्क होनी की जरूरत हैं।
सरिता रावत क्षेत्र पंचायत सदस्य ने कहा कि ऐसे बहुत कम लोग होते हैं जो दूसरों के खुशी में जीना पसंद करते हैं। उन्हीं में डा0 सोनी भी हैं जिन्होंने अपना जीवन पर्यावरण के साथ मानव सेवा में लगाया हैं। प्रधान नीलम देवी ने कहा कि हमारा सौभाग्य है कि डा0 सोनी हमारे ग्राम पंचायत मरोड़ा टिहरी गढ़वाल में कार्यरत हैं। उनका भरपूर सहयोग छात्रहित के साथ गांव के लोगों को मिलता है। उन्होंने पर्यावरण संरक्षण व प्रेबंधुत्व की क्षेत्र में एक अलख जगाई हैं। ऐसे में उन्हें सम्मानित करना हमारा फर्ज हैं।
सम्मान कार्यक्रम में सामाजिक कार्यकर्ता गोविंद सिंह रावत, कविता देवी, गुड्डी देवी, राजेश कुमार, दिनेश आदि मौजूद रहे।


लगातार मूल्य वद्वि से आम आदमी की टूटी कमरः हरदा

बैलगाड़ी में पेट्रोल-ड़ीजल की बढ़ती कीमतों के खिलाफ प्रदर्शन 
लगातार मूल्य वद्वि से आम आदमी की टूटी कमरः हरदा



संवाददाता
देहरादून। पूर्व मुख्यमंत्री एवं कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव हरीश रावत ने एक अलग अंदाज में बैल गाड़ी में चढ़कर पेट्रोल-ड़ीजल की बढ़ती कीमतों के खिलाफ रायपुर शिव मन्दिर पहुंचकर पूजा अर्चना कर केन्द्र सरकार की सुबुद्वि के लिये भोले बाबा के चरणों में प्रार्थना की। 
पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने ओडिनेन्स फैक्ट्री के गेट के निकट पहुंचकर पहले से तैयार बैल गाड़ी में बैठ गये। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत व प्रभुलाल बहुगुणा सहित कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने सोशल डिस्टंेसिंग का पालन करते हुए मुंह पर मास्क लगा रखे थे। इस अवसर पर बोलते हुए पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने कहा कि पूरे विश्व में जहां कच्चे तेल की कीमतें कम हो रही है वहीं केन्द्र सरकार एक दर्जन से अधिक बार पेट्रोल, ड़ीजल व गैस के दामों को बढ़ा चुकी है जो परिवहन व्यवस्था, खेती किसानी व आटों इंडस्ट्री के लिये घातक सिद्व हो रहा है।
उन्होने कहा कि पेट्रोलियम उत्पदों की कीमतों की बढ़ोत्तरी से आवश्यक वस्तुओं के दाम भी बेताहाशा बढ़ गये है। इस कोरोना के संकट में पहले से ध्वस्त हुई अर्थव्यवस्था को और चौपट कर दिया है। उद्योग धन्धे, खेती किसानी, व्यापार पहले ही मंदी की मार से घातक दौर से गुजर रहे है। लगातार हो रही मूल्य वृद्वि से आम आदमी की कमर टूट गई है। वे भोले बाबा के चरणों में ये प्रार्थना लेकर आये है कि केन्द्र सरकार में बैठे हुए तमाम लोगों को सुबुद्वि प्राप्त हो। 
पूर्व मुख्यमंत्राी हरीश रावत ने शिव मन्दिर पहुंचने से पहले बैल गाड़ी में बैठकर ही महाराणा प्रताप चौक का एक चक्कर लगाकर महाराणा प्रताप को अपनी पुष्पांजलि भी अर्पित की। मंहगाई के खिलाफ लिखे नारे को लेकर कार्यकर्ता आगे आगे चल रहे थे हालांकि रावत कार्यकर्ताओं को नारे लगाने से रोक रहे थे लेकिन मंहगाई के खिलाफ नारे लगते रहे। 
इस अवसर पर जोत सिंह बिष्ट, पूरन रावत, आशा मनोरमा डोबरियाल शर्मा, हेमा पुरोहित, कमलेश रमन, पार्षद हकुम सिंह गड़िया, अनिल क्षेत्री, राजेश शर्मा, अनिल नेगी, अभय घ्यानी, अजय ड़ोभाल, कविता लिंगवाल, सरिता बिष्ट, ज्योति देवी, सुलेमान अली, संगीता रावत, प्रतिमा शर्मा, सुनीता गुरुंग आदि सैकड़ो कार्यकर्ता मौजूद रहे।


 


पत्नी यदि शाखा चूड़ी और सिंदूर लगाने से इनकार करे तो मतलब उसे विवाह नहीं स्वीकारः कोर्ट

पत्नी यदि शाखा चूड़ी और सिंदूर लगाने से इनकार करे तो मतलब उसे विवाह नहीं स्वीकारः कोर्ट



इस टिप्पणी के साथ हाई कोर्ट की डबल बेंच ने एक पति की ओर से दायर की गई तालाक की याचिका मंजूर की
एजेंसी
गुवाहाटी। गुवाहाटी हाई कोर्ट ने तलाक के एक मामले में अजीब फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा है कि अगर विवाहिता हिंदू रीति रिवाज के अनुसार शाखा चूड़ियां और सिंदूर लगाने से इनकार करती है तो यह माना जाएगा कि विवाहिता का शादी अस्वीकार है। यह टिप्पणी हाई कोर्ट ने एक पति द्वारा दायर की गई तलाक की याचिका मंजूर करते हुए की।
जस्टिस अजय लांबा और जस्टिस सौमित्र सैकिया की डबल बेंच ने कहा कि इन परिस्थितियों में अगर पति को पत्नी के साथ रहने को मजबूर किया जाए तो यह उसका उत्पीड़न माना जा सकता है। हाई कोर्ट से पहले पफैमिली कोर्ट ने पति की तलाक याचिका खारिज कर दी थी। कोर्ट ने पाया था कि पति पर कोई क्रूरता नहीं हुई है।
फरवरी 2012 में इस कपल की शादी हुई थी। पति ने आरोप लगाया कि शादी के एक महीने बाद ही पत्नी उसके ऊपर परिवार से अलग रहने का दबाव बनाने लगी। उसने कहा कि वह जाइंट फैमिली में नहीं रहना चाहती। पति ने आरोप लगाया कि उसने परिवार से अलग होने से इनकार किया तो दोनों के बीच झगड़े होने लगे। पत्नी ने गर्भ भी धारण नहीं किया।
पति ने कोर्ट में कहा कि पत्नी ने 2013 में उसका घर छोड़ दिया। उसके और उसके घरवालों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करा दी। हालांकि पति और उसके रिश्तेदारों को बाद में पत्नी की ओर से लगाए गए आरोपों से हाई कोर्ट ने बरी कर दिया था। पति ने क्रूरता का हवाला देते हुए पत्नी से तलाक लेने की अलग याचिका दायर की। फैमिली कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया था।


टिक टाक समेत 59 चाइनीज ऐप पर बैन

टिक टाक समेत 59 चाइनीज ऐप पर बैन



भारतीय सुरक्षा एजेंसियों से चाइनीज एप की एक लिस्ट तैयार कर केंद्र से अपील की थी इनको बैन किया जाए 
एजेंसी 
नई दिल्ली। भारत-चीन तनाव के बीच केंद्र सरकार ने 59 चाइनीज ऐप पर रोक लगाने का फैसला लिया है। बैन किए गए ऐप में मशहूर टिक-टाक ऐप भी शामिल है। इसके अलावा यूसी ब्राउजर, कैम स्कैनर जैसे और भी बहुत फेमस ऐप शामिल हैं। इससे पहले भारतीय सुरक्षा एजेंसियों से चाइनीज एप की एक लिस्ट तैयार कर केंद्र सरकार से अपील की थी इनको बैन किया जाए या लोगों को कहा जाए कि इनको तुरंत अपने मोबाइल से हटा दें। इसके पीछे दलील ये दी गई थी कि चीन भारतीय डेटा हैक कर सकता है।
भारत और चीन के बीच तनाव की स्थिति बनी हुई है। दोनों ही देशों की सेनाएं आमने-सामने डटी हुई हैं। इसी बीच भारत ने ये बड़ा कदम उठाकर साफ कर दिया है कि भारत किसी भी स्तर पर झुकेगा नहीं। केंद्र सरकार ने 59 ऐप्स पर बैन लगा दिया है। इसमें से कुछ ऐप ऐसे हैं जो हर मोबाइल में आसानी से मिल जाएंगे।
सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय को कई शिकायतें मिल रही थी। ये ऐप्स भारतीय संप्रुभता, सुरक्षा और अखंडता पर घातक हमला कर रहे थे। चीन इन ऐप्स के सहारे भारतीय डेटा के साथ छेड़छाड़ कर सकता था। भारतीय खुफिया एजेंसियों ने सरकार को इन एप्स की एक लिस्ट तैयार कर पहले ही सौंप दी थी। इसके बाद सरकार ने अपने स्तर पर इन ऐप्स की जानकारी ली और जब उनको लगा कि वाकई ये ऐप्स भारतीय सुरक्षा में सेंध लगा सकते हैं तो तुरंत इनको बैन करने का फैसला किया।


 


रविवार, 28 जून 2020

भारती फाउंडेशन ‘ग्रेट प्लेस टू वर्क 2020’ के रूप में प्रमाणित

भारती फाउंडेशन ‘ग्रेट प्लेस टू वर्क 2020’ के रूप में प्रमाणित




देश की शीर्ष 100 कंपनियों के बीच काम करने के लिए मान्यता प्राप्त एकमात्र गैर-सरकारी संगठन
संवाददाता


देहरादून। भारती फाउंडेशन जो भारती एंटरप्राइजिस की लोकोरोपकारी संस्था है, शीर्ष 100 में एकमात्र ऐसे गैर-सरकारी संगठन के रूप में उदीयमान हुआ है, जिसे ‘ग्रेट प्लेस टू वर्क 2020’ प्रमाणन से सम्मानित किया गया है। कार्यस्थल की संस्कृति के मूल्यांकन में गोल्ड स्टैंडर्ड माने जाने वाला ग्रेट प्लेस टू वर्क सिर्फ कर्मचारियों के फीडबैक और संगठन में जन पद्धतियों की गुणवत्ता के आधार पर सर्वश्रेष्ठ कार्यस्थलों का अभिनिर्धारण करता है। 
पूर्णतया निष्पक्ष और अप्रभावित परिणाम सुनिश्चित करने के लिए यह प्रमाणीकरण एक वैश्विक बाह्य पार्टी द्वारा किए गए गुमनाम कर्मचारी सर्वेक्षण के परिणाम पर आधारित है। अवार्ड प्रदान करने वाला संगठन ग्रेट प्लेस टू वर्क इंस्टीट्यूट, उच्च विश्वास, उच्च कार्यप्रदर्शन संस्कृति का सृजन, सतत-संपोषण और अभिनिर्धारण करने के लिए वैश्विक प्राधिकारी है।
यह लोकप्रिय प्रमाणन सभी उद्योगों में सबसे इच्छित सम्मानों में से एक है। 2020 के प्रमाणन के लिए 20 से अधिक उद्योगों से 1,000 से अधिक कंपनियों ने नामांकन किया। शीर्ष 100 की सूची में सूचना प्रौद्योगिकी, वित्तीय सेवाओं, कृषि, विनिर्माण, विक्रय, आतिथ्य आदि सहित विभिन्न क्षेत्रों की कंपनियां शामिल थीं। भारती फाउंडेशन की उपलब्धि इसे यह अर्हता प्राप्त करने के लिए एकमात्र गैर-लाभकारी संगठन बनाती है। भारती फाउंडेशन को 2018 और 2017 में टॉप 100 ग्रेट प्लेस टू वर्क के बीच भी चुना गया था।
भारती फाउंडेशन की सीईओ ममता सैकिया ने यह खिताब हासिल करने पर कहा कि एक बार फिर हमें कार्य करने के लिए भारत की शीर्ष 100 कंपनियों के बीच चुना गया है। भारती फाउंडेशन के हर कर्मचारी को विश्वास है कि हम अपने स्कूलों में पढ़ाई करने वाले वंचित बच्चों के जीवन को बदल सकते हैं। इसके अलावा एक अत्यधिक सशक्त और विश्वसनीय लीडरशिप टीम, सशक्तीकरण का अहसास, बेजोड़ टीम भावना और नवप्रर्वतन का डीएनए, ये सब साथ मिलकर भारत फाउंडेशन को कार्य करने के लिए सबसे अच्छी कंपनियों में से एक बनाते हैं।
प्रतिष्ठित प्रमाणीकरण उन संगठनों को मिलता है जो पांच आयामों विश्वसनीयता, सम्मान, निष्पक्षता, गर्व और सौहार्द पर उत्कृष्टता हासिल करते हैं। यह उपलब्धि अपने कर्मचारियों के लिए एक सुरक्षित और सुखी कार्यस्थल बनाने और अपने सभी संबंधित आंतरिक हितधारकों के सशक्तीकरण के लिए सकारात्मक परिवर्तन को प्रेरित करने की भारती फाउंडेशन की विचारधारा को विशेष तौर पर दर्शाती है।
फाउंडेशन का मूल फोकस संस्था के अंदर सकारात्मकता, सद्भाव और शांति की संस्कृति का पालन-पोषण करते हुए पूरे ग्रामीण भारत में बच्चों की शिक्षा पर केंद्रित है। पूरे वर्ष सर्वांगीण विकास और नवप्रवर्तन को प्रोत्साहित करने के वातावरण में कर्मचारियों के कौशल का संवर्धन करने के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। भारती फाउंडेशन अपने कर्मचारियों के लिए नए अवसरों और अनुभवों का सृजन करने पर विश्वास करती है और यह हासिल करने के लिए आगे बढ़ती है।


नेपाल के प्रधानमंत्री ओली ने लगाया आरोप- मुझे हटाने के लिए भारत कर रहा साजिश

नेपाल के प्रधानमंत्री ओली ने लगाया आरोप- मुझे हटाने के लिए भारत कर रहा साजिश



एजेंसी
नयी दिल्ली। भारतीय क्षेत्रों को अपना बता कर नया विवादित नक्शा जारी करने के बाद नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने अब भारत पर गंभीर आरोप लगा दिया है। ओली ने आरोप ऐसे समय में लगाया है, जबकि नेपाल में सरकार पर खतरा मंडरा रहा है और सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी के अंदर ही ओली के खिलाफ बगावती सुर बढ़ने लगे हैं। इसके अलावा देश के लोगों में भी सरकार के प्रति गुस्सा और असंतोष बढ़ता जा रहा है।
ओली ने नाम लिये बिना इशारों-इशारों में आरोप लगाते हुए कहा कि एक दूतावास मेरी सरकार के खिलाफ साजिश रच रहा है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार ओली ने कहा कि भले ही उन्हें पद से हटाने की साजिश हो रही है, लेकिन यह असंभव है। उन्होंने कहा कि जब से नेपाल ने नया नक्शा जारी किया है, तब से उनके खिलाफ साजिश की जा रही है।
गौर हों कि ओली सरकार चीन के बहकावे में आकर लगातार भारत के खिलाफ जहर उगल रही है, लेकिन उसे अपनी ही कम्युनिस्ट पार्टी में विरोध का सामना करना पड़ रहा है। प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की पार्टी अब टूट के कगार पर पहुंच चुकी है। पार्टी के कार्यकारी चेयरमैन पुष्प कमल दहल प्रचंड ने ओली की आलोचना के बाद अब उनसे इस्तीफे की मांग की है। उन्होंने यह धमकी भी दी है कि अगर ओली प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा नहीं देते हैं, तो वो पार्टी को तोड़ देंगे।
गौरतलब है कि पिछले दिनों नेपाल ने संविधान में संशोधन करके देश के नये राजनीतिक नक्शे को बदलने की प्रक्रिया पूरी कर ली जिसमें रणनीतिक महत्व वाले तीन भारतीय क्षेत्रों को शामिल किया गया है। हालांकि भारत ने नेपाल के मानचित्र में बदलाव करने और भारतीय क्षेत्रों लिपुलेख, कालापानी तथा लिंपियाधुरा को उसमें शामिल करने से जुड़े संविधान संशोधन विधेयक को अमान्य करार दिया था।


यूजेवीएनएल में हुई फर्जी नियुक्तियों की सीबीआई जांच की मांग

यूजेवीएनएल में हुई फर्जी नियुक्तियों की सीबीआई जांच की मांग



- फर्जी नियुक्तियों के सफर में अवर अभियंता से बन गए सहायक अभियंता /अधिशासी अभियंता 
- वर्ष 2002 व 2003 में बिना किसी औपचारिकता के बना दिए गए थे अवर अभियंता 
- विज्ञापन, साक्षात्कार, परीक्षा यूपीसीएल की, नौकरी दी गई यूजेवीएनएल में 
- अन्य दर्जनों फर्जी नियुक्तियां भी हो चुकी हैं विभाग में 
- वर्ष 2019 में विभाग के सहायक अभियंताओं तथा इंजीनियर एसोसिएशन ने इनके खिलाफ की थी एमडी से कार्रवाई की मांग 
संवाददाता
विकास नगर। जन संघर्ष मोर्चा अध्यक्ष एवं जीएमवीएन के पूर्व उपाध्यक्ष रघुनाथ सिंह नेगी ने कहा कि वर्ष 2002 व 2003 में उत्तरांचल जल विद्युत निगम लिमिटेड यूजेवीएनएल द्वारा बगैर किसी औपचारिकता पूर्ण किए 7 व्यक्तियों को रातो-रात अवर अभियंता बना दिया गया था। 
इस पूरे प्रकरण में आश्चर्यजनक है कि ‘यूपीसीएल’ द्वारा वर्ष 2001 में अवर अभियंता के पदों हेतु विज्ञापन जारी किया गया था तथा इस प्रक्रिया में शामिल 5 व्यक्तियों, जोकि फाइनल सलेक्शन में अनुत्तीर्ण हो गए थे, उनको यूजेवीएनएल द्वारा नियुक्तियां प्रदान कर दी गई तथा दो अन्य व्यक्तियों को संविदागत नियुक्ति प्रदान की गई थी, जिसका यूजेवीएनएल से दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं था।
नेगी ने कहा कि उक्त अभियंताओं द्वारा अधिकारियों व विभाग से सांठगांठ कर इन 17-18 वर्षों में सहायक अभियंता व अधिशासी अभियंता के के पदों पर पदोन्नति भी हासिल कर ली। उल्लेखनीय है कि इन तमाम अनियमितताओं को लेकर विभाग के सहायक अभियंताओं तथा ‘उत्तरांचल पावर इंजीनियर एसोसिएशन’ द्वारा वर्ष 2019 में प्रबंध निदेशक, यूजेवीएनएल से भी शिकायत की गई थी लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई।
नेगी ने कहा कि विभाग में भ्रष्टाचारियों का इतना बोलबाला है कि शासन तक के अधिकारियों को ये भ्रष्ट अपने लपेटे में लेकर मनमाफिक काम करवा लेते हैं। इस भ्रष्ट विभाग ने नियमों को ताक पर रखकर एवं मोटी उगाही कर दर्जनों लोगों को इसी प्रकार नौकरियां बांटी गई हैं। मोर्चा राजभवन से मांग करता है कि यूजेवीएनएल में हुई फर्जी नियुक्तियों के मामले में सीबीआई जांच कराने को लेकर सरकार को निर्देश दे।


पेट्रोल-डीजल की मूल्यवृद्वि के खिलाफ किसानों का देशव्यापी विरोध 

पेट्रोल-डीजल की मूल्यवृद्वि के खिलाफ किसानों का देशव्यापी विरोध 



संवाददाता
लालकुआं। अखिल भारतीय किसान महासभा, अखिल भारतीय खेत एवं ग्रामीण मजदूर सभा और अखिल भारतीय इन्कलाबी नौजवान सभा के संयुक्त आह्वान पर देश भर में विरोध प्रदर्शन हुए। तीनों संगठनों के कार्यकर्ताओं ने कहीं संयुक्त तो कहीं अलग-अलग इन कार्यक्रमों को आयोजित किया। सैकड़ों जगह प्रधानमंत्री के पुतले फूंके गए। कार्यकर्ता नारे लगा रहे थे ‘18 रुपए का पैट्रोल 80 रुपये में क्यों? मोदी जवाब दो!’
कार्यकर्ताओं ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम गिरे हैं पर मोदी सरकार ने पेट्रोल डीजल की बेतहाशा मूल्यवृद्वि कर आम आवाम की जेब पर डाका डाला है। डीजल मूल्य वृद्वि से किसानों की प्रति एकड़ लागत में 1000 रुपया बढ़ोतरी हो चुकी है। कोरोना महामारी से किसान, मजदूर, छात्र, नौजवान की कमर पहले ही टूट चुकी है। उपर से मंहगाई की ये मार साफ दर्शाती है कि यह आम आदमी की हितैषी सरकार नहीं है। 
पेट्रोल डीजल मूल्य वृद्वि का विरोध कर रहे राजनीतिक-सामाजिक कार्यकर्ताओं के ऊपर जिस तरह भाजपा शासित राज्य की पुलिस बर्बरता पूर्वक लाठीचार्ज कर रही है वह घोर निंदनीय तथा लोकतंत्र विरोधी कारवाई है। उत्तराखंड़ के अलावा बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, उड़ीसा, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, प0 बंगाल, त्रिपुरा, झारखंड, हरियाणा, पंजाब में भी कार्यकर्ताओं ने विरोध प्रदर्शन किया। 
इस दौरान आंदोलनकारियों ने मांग की कि डीजल पेट्रोल के बढ़े हुए दाम वापस लो तथा इसे हवाई जहाज के ईंधन के दाम के बराबर यानी लगभग दो तिहाई कम करो। डीजल पेट्रोल के दाम को बढ़ाकर लाकडाउन से जूझ रही जनता पर अतिरिक्त बोझ डालना बंद करो।


नेपाल ने भारत से लगी सीमा पर सेना लगायी

नेपाल ने भारत से लगी सीमा पर सेना लगायी



भारत की जमीन कब्जाई, नदी का बहाव रोका
एजेंसी
पटना। सीमा पर नेपाल चीन जैसी हरकतें करने लगा है। बिहार के वाल्मीकिनगर में सुस्ता क्षेत्र पर नेपाल ने कब्जा कर लिया है। भारतीयों के यहां जाने पर रोक लगा दी है। इलाके में 7,100 एकड़ जमीन पर नेपाल के साथ पुराना विवाद है। अब उसने सुस्ता के साथ लगे नरसही जंगल पर भी दावा ठोक दिया है। नेपाल आर्म्ड फोर्स ने यहां कैंप बना लिया है। त्रिवेणी घाट के पास नदी किनारे जंगल में भी नेपाल ने अपना झंडा लगा दिया।
भारत-चीन के बीच तनाव बढ़ने के दौरान नेपाल ने बिहार सीमा पर सेना लगाई है। कोरोना क्वारंटीइन सेंटर के नाम पर बने कैंप सेना के ठिकाने हैं। सुपौल के कुनौली बॉर्डर के सामने नेपाल के राज बिराज भंसार ऑफिस के पास सेना की आवाजाही देखी गई। मधुबनी के मधवापुर से सटे मटिहानी की तरफ नेपाली सेना की गतिविधियां देखी जा रही हैं। 
स्थानीय लोग कहते हैं कि भारत की ओर से एसएसबी के नरम रुख का नेपाल फायदा उठा रहा है। बता दें कि नरसही जंगल गंडक नदी के उस पार सुस्ता के समानांतर है। जंगल की 14,500 एकड़ जमीन शुरू से भारत के अधिकार में ही रही है। अब यहां नेपाल ने गन्ने की खेती कर ली है।
बिहार में नेपाल सीमा से बेरोक-टोक आवाजाही रही है। पर अब सीमा पर हर 100 मीटर पर नेपाल आर्म्ड फोर्स के जवान हैं। ये सीमा पार करने वालों को रोक रहे हैं। गंडक बैराज भी सील है। वाल्मीकिनगर आश्रम और सुस्ता भी नहीं जा सकते। भारत से लगती 1751 किमी सीमा पर नेपाल सशस्त्र बलों की 220 पोस्ट बनाने की तैयारी में है। बिहार से लगती 729 में से 631 किमी सीमा पर भी 94 पोस्ट बनाई जाएंगी।
एसएसबी के पटना फ्रंटियर के आईजी संजय कुमार ने कहा कि गंडक नदी के कटाव के कारण सुस्ता सहित कुछ स्थानों पर भूमि को लेकर विवाद है। एक दर्जन से अधिक जगहों पर नो मेंस लैंड पर अतिक्रमण है। विवाद सुलझाने के प्रयास जारी हैं। भारत की ओर से भी सीमा पर चौकसी बढ़ा दी गई है। 1,751 किमी लंबी भारत-नेपाल सीमा पर 8,000 पिलर हैं। इनमें से 1,240 गुम हैं। 2,500 पिलर नए सिरे से लगेंगे। पिलर गुम होने से पैट्रोलिंग में परेशानी आ रही है।
भारतीय सीमा तक आने के लिए नेपाल हर 10-20 किमी पर चौड़ी सड़कें बना रहा है। जब भारत सीमा के समानांतर सड़क बनाने लगा तो नेपाल ने काम और तेज कर दिया। भारत में सोनबरसा तक टू लेन सड़क है। नेपाल ने इसके समानांतर फोरलेन सड़क बना ली। जनकपुर जाने के लिए भिट्ठामोड़ तक नेपाल ने फोरलेन सड़क का निर्माण करीब पूरा कर लिया है। स्थानीय लोगों की मानें तो नेपाल सीमा क्षेत्र से गुजरने वाली सभी सड़कों को नारायणी से भुटवल तक जाने वाली हाईवे से जोड़ दिया है, जिसका निर्माण चीनी एजेंसी कर रही है।
नेपाल की करतूत
नेपाल ने गंडक नदी के इस पार सुस्ता गांव में पुल निर्माण शुरू किया। भारत ने आपत्ति जताई तो निर्माण बीच में ही रोकना पड़ा। नरकटियागंज के भिखनाठोड़ी में एक जलस्रोत रोक दिया ताकि एसएसबी के जवान परेशान हों। इनका कैंप जलस्रोत से 50 मीटर दूर है। यहां बोरिंग से पानी आता है। हालांकि पानी बंद होने से आम लोगों को परेशानी हो रही है।
जून के शुरू में वाल्मीकिनगर में त्रिवेणी घाट के पास बांध मरम्मत का नेपाल ने विरोध किया। भारत के कड़े रुख और एसएसबी के दखल से मामला शांत है। लेकिन स्लुइस गेट का निर्माण ठप है। पूर्वी चंपारण में बलुआ के पास बांध मरम्मत का काम नेपाल ने रोक दिया। नो मेंस लैंड पार कर ऊंचाई बढ़ाने का आरोप लगाया। जबकि यहां वर्षों से बांध है। सीतामढ़ी के बैरगनिया के पास भी बांध निर्माण पर तनातनी है।
सीतामढ़ी से भिट्घ्ठामोड़ जा रही सड़क पर नवाहीं गांव के पास एप्रोच रोड पर नेपाल ने विरोध जताया। अब निर्माण ठप है। जयनगर के इनरवा बॉर्डर के पास अकौन्हा में 2019 में कमला नहर का तटबंध टूट गया था। इसकी मरम्मत रोकने के लिए नेपाल ने सशस्त्र बल तैनात कर दिए। इसके बाद भारत को अपनी सीमा में नो मैन्स लैंड से हटकर तटबंध बनाना पड़ा।
नेपाल नो मैंस लैंड से सटकर निर्माण करा रहा है। मधवापुर में स्टेडियम बन रहा है। पूर्वी चंपारण, सीतामढ़ी और मधुबनी के एक दर्जन से अधिक स्थानों पर नो मेंस लैंड में अस्थायी निर्माण कर लिया। विवाद के इन सभी मुद्दों को लेकर भारतीय कन्सुलेट जनरल ने नेपाल को पत्र लिखा है।


शनिवार, 27 जून 2020

पीटीआई की ‘राष्ट्र विरोधी’ रिपोर्टिंग! 

पीटीआई की ‘राष्ट्र विरोधी’ रिपोर्टिंग! 



नाराज प्रसार भारती कर सकता है मदद रोकने का फैसला
एजेंसी
नई दिल्ली। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्टर लिज मैथ्यू ने सरकारी सूत्रों के हवाले से यह जानकारी देते हुए ट्वीट किया है कि प्रसार भारती की ओर से प्रेस ट्रस्ट आफ इंडिया पीटीआई को जो पत्र भेजा जा रहा है, उसमें कहा गया है कि राष्ट्र विरोधी रिपोर्टिंग के चलते अब संबंध जारी रखना मुश्किल हो रहा है। प्रसार भारती की ओर से पीटीआई को हर साल करोड़ों रुपए की मदद दी जाती है।
बताया जा रहा है कि समाचार एजेंसी पीटीआई से सरकार खुश नहीं है। प्रसार भारती को लगता है कि पीटीआई राष्ट्र विरोधी रिपोर्टिंग कर रही है। इससे प्रसार भारती बेहद नाखुश है और नाखुशी का इजहार करते हुए पीटीआई को कड़ा पत्र लिख रहा है।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्टर लिज मैथ्यू ने सरकारी सूत्रों के हवाले से यह जानकारी दी है। मैथ्यू ने ट्वीट करके बताया है कि प्रसार भारती की ओर से प्रेस ट्रस्ट आफ इंडिया पीटीआई को जो पत्रा भेजा जा रहा है, उसमें कहा गया है कि राष्ट्र विरोधी रिपोर्टिंग के चलते अब संबंध जारी रखना मुश्किल हो रहा है। बता दें कि प्रसार भारती की ओर से पीटीआई को हर साल करोड़ों रुपए की मदद दी जाती है।
पीटीआई को सरकार की ओर से यह मदद दशकों से मिल रही है। अब प्रसार भारती इस संबंध को जारी रखने पर नए सिरे से सोच रहा है। इस संबंध में अंतिम निर्णय जल्द ही ले लिए जाने के आसार हैं।
पीटीआई देश की बड़ी और पुरानी समाचार एजेंसी है। इसके टक्कर की कोई और एजेंसी अब बची नहीं है। पीटीआई का रजिस्ट्रेशन 1947 में हुआ था और 1949 से इसने काम करना शुरू किया था। आजकल इसका संचालन एक निदेशक मंडल के जरिए होता है। पीटीआई आत्मनिर्भर समाचार एजेंसी नहीं बन सकी है। सरकारी मदद पर ही ज्यादा निर्भर है।


व्यापारिक हित के लिए शी से 18 मुलाकात, देश हित के लिए एक भी नहीं! क्यों?

व्यापारिक हित के लिए शी से 18 मुलाकात, देश हित के लिए एक भी नहीं! क्यों?



पुरुषोत्तम शर्मा
लालकुआं। इतनी गहरी दोस्ती। दुनिया के पहले ऐसे राष्ट्राध्यक्ष होंगे नरेंद्र मोदी और शी जिंग पिंग, जो छोटे से समय में अपने व्यापारिक हितों के लिए 18 बार मुलाकात किये। यही नहीं चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के न्योते पर भाजपा-आरएसएस के नेताओं की टीमें तीन बार चीन गई। एक बार इनके युवा नेता चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के मेहमान रहे। राम माधव अलग से जाकर चीनी नेताओं से मिले। उससे पहले अटल जी की चीनी नेताओं से दोस्ती की शुरुआत हो चुकी थी।



चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के नेता तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के न्योते पर दिल्ली में उनसे भी मिले। नितिन गडकरी की उपस्थिति में दोनों देशों के रेल अधिकारियों का समझौता हुआ। गुजरात को चमकाने में मोदी ने चीन की मदद ली। दिल्ली की सत्ता में आने के बाद चीन से निवेश और व्यापार ज्यादा बढ़ाया। अब जब चीनी सेना ने भारत की दावेदारी और लगातार पैट्रोलिंग वाले गलवान घाटी, पेंगोंग झील और दौलत बेग से आगे के क्षेत्र पर हमारे प्रवेश को रोक कर स्थाई कब्जा कर लिया है, तो मोदी कह रहे हैं कि चीन हमारी जमीन जमीन पर आया ही नहीं? 



क्या सीमा पर विवादित क्षेत्र के भारत के दावे की जमीनों को मोदी सरकार चीन के लिए छोड़ रही है? क्या मोदी सरकार सैद्वांतिक रूप से मान चुकी है कि वास्तविक नियंत्रण रेखा तक ही भारत की जमीन है? फिर तो अक्साई चीन से भी बड़े भू-भाग को नरेंद्र मोदी ने अपने परम मित्र शी जिंग पिंग को तोहफे में दे दिया है?



फिर सीमा पर देश के 20 बहादुर सैनिकों की शहादत और ये तनाव पूर्ण माहौल क्या अपने दूसरे परम मित्र डोनाल्ड ट्रंम्प को चुनाव जितने और खुद बिहार, पश्चिम बंगाल चुनाव जीतने की साजिश तो नहीं? क्योंकि आपका तो इतिहास ही है चुनाव से पहले साम्प्रदायिक तनाव या युद्वोन्मादी अंधराष्ट्रवाद को हवा देकर चुनावी वैतरणी पार करने का।
अगर ऐसा नहीं है तो जो नरेंद्र मोदी 18 बार व्यापारिक हितों के लिए शी जिंग पिंग से मिले, वे एक बार राष्ट्र हित के लिए मिलने से क्यों बच रहे हैं? क्यों राजनीतिक व कूटनीतिक पहल के अंतिम विकल्प को आजमाए बिना युद्व की तैयारी की जा रही है? देश को जवाब तो चाहिए?


 


बीआरओ ने रेकार्ड समय में ब्रिज बनाकर किया तैयार

चीन बार्डर के पास टूटे बैली ब्रिज को सेना ने छह दिन में तैयार किया
बीआरओ ने रेकार्ड समय में ब्रिज बनाकर किया तैयार



संवाददाता
पिथौरागढ़। मुनस्यारी में 6 दिन पहले टूटा बैली ब्रिज दोबारा बनकर तैयार हो गया है। मुन्स्यारी से मिलम जाने वाले रूट पर धापा के पास सेनर नाले पर बना बैली ब्रिज उस वक्त टूट गया था जब सड़क कटिंग के लिए बड़े ट्रक पर पोकलैंड मशीन ले जाई जा रही थी। हादसे में दो लोग गंभीर रूप से घायल भी हुए थे जिन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था।
सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) ने कड़ी मेहनत से सिर्फ 6 दिन में ही नया ब्रिज तैयार कर लिया है। इसे बनाने में बीआरओ को कई विषम भौगोलिक परिस्थितियों का सामना करना पड़ा। मगर बीआरओ ने रात-दिन काम किया और महज 6 दिन के रेकार्ड टाइम में ब्रिज बनाकर तैयार कर दिया।
बैली ब्रिज तैयार होने से सेना और आईटीबीपी के जवानों को चीन सीमा तक पहुंचने में कापफी राहत मिलेगी। सैन्य जरूरत का सामान भी आसानी से मिलम तक जा सकेगा। बीआरओ ने 120 पफीट लम्बे बैली ब्रिज को बनाने के लिए 70 मजदूरों के साथ एक पोकलैंड मशीन का इस्तेमाल किया।
मुनस्यारी के धापा में बना यह ब्रिज सामरिक रूप से बेहद अहम है और सीमावर्ती गांव मिलम को बाकी उत्तराखंड से जोड़ता था। मिलम से चीन सीमा तक इन दिनों 65 किमी लंबी रोड बनाने का काम तेजी से चल रहा है। इसके लिए पहाड़ों को काटने और मलबा हटाने के काम में आने वाली भारी भरकम मशीनों और कन्स्ट्रक्शन के सामान को मिलम पहुंचाया जा रहा है। ब्रिज टूटने से चीन को जोड़ने वाली सड़क काटने का काम कुछ प्रभावित हुआ। मगर बीआरओ ने 6 दिन के अंदर इस ब्रिज को तैयार कर बड़ी राहत दी है।


न्यूज के बदले पब्लिशर्स को पैसे देगी गूगल

न्यूज के बदले पब्लिशर्स को पैसे देगी गूगल



प0नि0डेस्क
देहरादून। गूगल ने नये लाइसेंसिंग प्रोग्राम का ऐलान किया है, जिसके तहत न्यूज पब्लिशर्स को खबरों के बदले पैसे दिये जाएंगे। फिलहाल इस प्रोग्राम की शुरुआत ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील और जर्मनी में की गई है। इसके तहत गूगल हाई-क्वालिटी कंटेंट के बदले में पब्लिशर्स को पैसे देगी।
इस प्रोग्राम के तहत न्यूज पब्लिशर्स को फायदा होने वाला है क्योंकि अभी कमाई के लिए उनकी 80 फीसदी निर्भरता गूगल विज्ञापन पर ही है, लेकिन इस प्रोग्राम के तहत पब्लिशर्स ज्यादा कमा सकेंगे वहीं लोगों को भी ओरिजिनल कंटेंट ही मिलेगा।
गूगल ने इस प्रोग्राम की घोषणा करते हुए कहा है कि जल्द ही दुनियाभर के पब्लिशर्स इस प्रोग्राम का हिस्सा होंगे। न्यूज पब्लिशर्स दर्जनों देशों से गूगल न्यूज के साथ जुड़े हुए हैं। इस प्रोग्राम के तहत गूगल ऑडियो, वीडियो, फोटो और स्टोरी के लिए पैसे देगी। यह कंटेंट गूगल मोबाइल ऐप पर ही उपलब्ध होगा।
बात करें ऑडियो न्यूज की, तो आप गूगल असिस्टेंट के जरिये प्ले न्यूज वॉइस कमांड देकर ऑडियो न्यूज (पॉडकास्ट) सुन सकते हैं। इसके अलावा, पॉडकास्ट के लिए गूगल ने म्यूजिक स्ट्रीमिंग ऐप स्पॉटिफाई से भी साझेदारी की है।


गलवान घाटी मुठभेड़ का चीन दोषी नहींः चीनी राजदूत

गलवान घाटी मुठभेड़ का चीन दोषी नहींः चीनी राजदूत



अब भारत के खिलाफ प्रोपगंड़े का मोर्चा भारत स्थित चीनी राजदूत सुन वेई तुंग ने संभाला
प0नि0ब्यूरो
देहरादून। भारत स्थित चीनी राजदूत सुन वेई तुंग ने भारत विरोधी चीनी प्रोपगंडे का मोर्चा संभालते हुए कहा कि चीन और भारत के टुकड़ियों के बीच गलवान घाटी में हुई मुठभेड़ का चीन दोषी नहीं है। चीनी राजदूत ने आरोप लगाया कि घटना का स्थल वास्तविक नियंत्रण रेखा के चीनी पक्ष में है और भारतीय सैनिकों ने रेखा पार की। उनका कहना है कि इस वर्ष में भारतीय पक्ष ने रेखा को पार कर निर्माण करना शुरू किया और इस रेखा को बदलने की कोशिश की। 6 मई की रात को भारतीय टुकड़ियों ने रेखा को पार कर हिंसात्मक बल का प्रयोग किया।
उन्होंने कहा कि 6 जून को दोनों देशों के सेना कमांडर स्तरीय वार्ता हुई और भारतीय पक्ष ने गलवान नदी के मुहाने से आगे गश्त नहीं करने और सुविधाओं का निर्माण नहीं करने का वादा किया। दोनों पक्ष गलवान नदी के मुहाने के दोनों ओर आब्जर्वेशन पोस्ट स्थापित करने पर सहमत हुए। लेकिन इसके बाद भारतीय पक्ष ने दोनों की सेना कमांडर वार्ता में संपन्न सहमति को बदलकर रेखा को पार कर चीनी सेना को उत्तेजित किया।
उन्होंने कहा कि भारतीय पक्ष ने सबसे पहले चीनी सैनिकों के खिलाफ हिंसात्मक बल का प्रयोग किया। 15 जून की रात को भारतीय सैनिकों ने एक बार फिर वास्तविक नियंत्रित रेखा को पार कर चीनी पक्ष के तंबू को नष्ट कर दिया। जब चीनी सीमा रक्षकों ने नियम के मुताबिक मामला उठाया, तब भारतीय सैनिकों ने अचानक चीनी सैनिकों को हिंसात्मक तौर पर प्रहार किया। जिससे दोनों पक्षों के बीच शारीरिक मुठभेड़ हुई।
उनका आरोप है कि भारतीय पक्ष ने सबसे पहले दोनों देशों के बीच संपन्न सिलसिलेवार समझौतों का उल्लंघन किया। 1993 में हस्ताक्षरित चीन-भारतीय सीमा पर वास्तविक नियंत्रण रेखा के क्षेत्र में शांति और शांति बनाए रखने के समझौते के अनुच्छेद 1 तथा 1996 में हस्ताक्षरित चीन-भारत सीमा के वास्तविक नियंत्रण रेखा के क्षेत्र पर सैन्य क्षेत्र में विश्वास-निर्माण उपायों पर समझौते के अनुच्छेद 2 के मुताबिक दोनों पक्षों की वास्तविक नियंत्रण रेखा के पास गतिविधियों के प्रति स्पष्ट नियम बनाए गये हैं। भारतीय पक्ष ने जो किया है वह उपरोक्त समझौते की भावना से असंगत है।
चीनी राजदूत सुन वेई तुंग ने कहा कि गलवान घाटी में हुई घटना का चीन जिम्मेदार नहीं है। भारतीय पक्ष ने रेखा को पार कर चीनी सैनिकों को प्रहार किया और दोनों देशों के संबंधित समझौते और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के बुनियादी मापदंडों का उल्लंघन किया। चीन भारत से घटना की जांच करने तथा जिम्मेदार व्यक्तियों को दंडित करने, अपने सैनिकों को संयम लेकर उत्तेजक कार्यवाही न करने और ऐसी घटनाएं फिर से न होने को सुनिश्चित करने की मांग करता है। 
सुन वेई तुंग ने कहा कि चीन और भारत दोनों पक्षों को मतभेदों को सुव्यवस्थित तौर पर नियंत्रित करने की इच्छा है और वे ऐसे करने के लिए सक्षम भी हैं। वर्तमान में चीन-भारत सीमा की स्थिति आम तौर पर स्थिर और नियंत्रण में है। चीन की आशा है कि भारत भी सकारात्मक कदम उठाएगा और सीमा की स्थितियों को और जटिल बनाने की गतिविधि नहीं करेगा।


 


 


नौसेना के बेड़े में स्वदेश निर्मित टॉरपीडो डिकॉय सिस्टम शामिल

नौसेना के बेड़े में स्वदेश निर्मित टॉरपीडो डिकॉय सिस्टम शामिल



एजेंसी
मुंबई। भारतीय नौसेना की एंटी-सबमरीन युद्ध क्षमता को युद्धपोतों के सभी मोर्चों से गोलाबारी करने में सक्षम उन्नत टॉरपीडो डिकॉय सिस्टम मारीच को बेड़े में एक अनुबंध के साथ शामिल किए जाने के साथ ही बड़ी मजबूती मिली। 
इस एंटी-टॉरपीडो डिकॉय सिस्टम का डिजाइन और विकास स्वदेशी डीआरडीओ प्रयोगशालाओं (एनएसटीएल और एनपीओएल) में किया गया है। सार्वजनिक क्षेत्र का रक्षा उपक्रम भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड इस डिकॉय सिस्टम के उत्पादन का कार्य करेगा। इस सिस्टम के प्रारूप (प्रोटोटाइप) को एक नामित नौसैनिक मंच पर स्थापित किया गया था जहां इसने सभी उपयोगकर्ता मूल्यांकन परीक्षणों को सफलतापूर्वक पूरा किया और नौसेना के लिए आवश्यक योग्यता के अनुसार अपनी विशेषताओं का प्रदर्शन किया।
टॉरपीडो डिकॉय सिस्टम का नौसेना के बेड़े में शामिल किया जाना न केवल रक्षा प्रौद्योगिकी के स्वदेशी विकास के लिए भारतीय नौसेना और डीआरडीओ के संयुक्त संकल्प को दर्शाता है बल्कि सरकार की मेक इन इंडिया पहल और नवीन प्रौद्योगिकी में आत्म-निर्भर बनने के देश के संकल्प को भी एक बड़ा प्रोत्साहन है।


वैैट कर निर्धारण केसोें की तिथि पुनः बढ़ाने की मांग

वित्तीय वर्ष 2016-17 के वैैट कर निर्धारण केसोें की तिथि पुनः बढ़ाने की मांग



संवाददाता
काशीपुर। टैक्स सीएचआर बार एसोसिएशन ने उत्तराखंड के व्यापारियों के वैैट केे वर्ष 2016-17 के कर निर्धारण केसोें की समयवधि पुनः बढाने की मांग मुख्यमंत्री, प्रमुख सचिव वित्त तथा आयुक्त कर को ई-मेल से ज्ञापन भेज कर की है। इससे पूर्व मार्च में बार एसोसिएशन के ज्ञापन के बाद इन केसों की तिथि 31 मार्च से बढ़ाकर 30 जून 2020 की गयी थी।
टैक्स सीएचआर बार एसोसिएशन के अघ्यक्ष नदीम उद्दीन एडवोकेट द्वारा उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री, प्रमुख सचिव वित्त तथा आयुक्त कर की ईमेल आईडी पर भेजे ज्ञापन में कहा गया है कि उत्तराखंड के व्यापारियों के वैैट केे वर्ष 2016-17 के कर निर्धारण केसोें की समयवधि 31 मार्च 2020 नियत की गयी की गयी थी जिसे टैक्स सीएचआर बार एसोसिएशन के मार्च 2020 में दिये गये ज्ञापन के उपरान्त 30 जून 2020 कर दिया गया है। लाकडाउन के चलते बहुत बड़ी संख्या में यह केस वाणिज्य कर विभाग में अभी भी नही हो पाये हैै। इसके बाद कालबाधित होने के कारण इनका एकपक्षीय निर्धारण करके टैक्स लगने का खतरा व्यापारियों पर मंडरा रहा है। बहुत बड़ी संख्या में व्यापारी, एकाउन्टेेंट तथा सीए व कर अधिवक्ता लाकडाउन व अनलाक 1.0 में भी घरों से बाहर निकलने के पात्र नहीं है। क्योंकि वह कन्टेनमेंट क्षेत्र निवासी, सीनियर सिटीजन, ह्दय व डायबिटीज रोगियों जैसे कारोना हाई रिस्क वाले हैं। विभिन्न बार एसोसिएशन में लाकडाउन पूर्ण रूप से खुलने तक केसों को न करवाने के निर्णय के समाचार मिले हैं। ऐसे हाई रिस्क वाले लोगों को केसों को कराने के दबाव में घरों से बाहर निकलना पड़ रहा हैै तथा उन पर मानसिक दबाव हैै जिससे कोरोना नियंत्रण भी प्रभावित होे रहा है।
व्यापारियोें, कर निर्धारण अधिकारियों, एकाउंटेन्ट, तथा कर अधिवक्ताओं तथा चार्टर्ड एकाउंटेन्ट की सुविधा व कोरोना नियंत्रण हेतु उनके योेगदान के लिये तुरन्त वर्ष 2016-17 के कर निर्धारण केसों का समय पुनः कम से कम 6 माह बढ़ाकर इसकी सूचना प्रसारित करना तथा पूर्व की भांति अधिकतर केसोें बिना कार्यालय बुलाये दाखिल विवरणों के आधार पर डीम्ड रूप सेे करनेे केे आदेश किया जाना आवश्यक है। 
बार एसोसिएशन ने मांग की है कि यथाशीघ्र वैट के वर्ष 2016-17 केे केसों को करने की समयावधि कम से कम 6 माह बढ़ानेे तथा अधिकतर केस पूर्व वर्षों की भांति डीम्ड रूप से कराने का आदेश दिये जायें। साथ ही पूर्व में उसके ज्ञापन के उपरान्त तीन माह समयावधि बढ़ाने पर सम्बंधित अधिकारियों का आभार भी व्यक्त किया है।


 


शुक्रवार, 26 जून 2020

इनोवेटिव स्टूडेंट प्रोजेक्ट्स अवार्ड 2020 के लिए नामांकन आमंत्रित 

इनोवेटिव स्टूडेंट प्रोजेक्ट्स अवार्ड 2020 के लिए नामांकन आमंत्रित 



भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के अंतर्गत एक स्वायत्त संस्थान इंडियन नेशनल एकेडमी आफ इंजीनियरिंग (आईएनईए) ने इनोवेटिव स्टूडेंट प्रोजेक्ट्स अवार्ड 2020 के लिए नामांकन आमंत्रित किया
एजेंसी
नई दिल्ली। इनोवेटिव स्टूडेंट प्रोजेक्ट्स अवार्ड 2020 के लिए नामांकन आमंत्रित किए गए हैं। इसमें भाग लेने के लिए तीन श्रेणियों के छात्रों की परियोजनाएं पात्र होंगी- शैक्षणिक वर्ष 2019-2020 के लिए 31 जुलाई तक पूरी हो चुकीं बीई, बीटेक अथवा बीएससी (इंजीनियरिंग) की अंतिम वर्ष (चतुर्थ वर्ष) की परियोजनाएं, शैक्षणिक वर्ष 2019-2020 के दौरान 1 जुलाई, 2019 से 31 जुलाई, 2020 के बीच जांच की गई एमई अथवा एमटेक या एमएससी (इंजीनियरिंग) की थीसिस और 1 जून, 2019 से 31 मई, 2020 के बीच जांच एवं स्वीकार की गई पीएचडी की थीसिस।
आईएनईए ने इंजीनियरिंग शिक्षा के तीन चरणों- स्नातक, स्नातकोत्तर और डाक्टरेट- में से किसी भी स्तर पर छात्रों द्वारा किए गए नवोन्मेषी एवं रचनात्मक अनुसंधान परियोजनाओं की पहचान करने के लिए 1998 में इनोवेटिव स्टूडेंट प्रोजेक्ट्स अवार्ड की स्थापना की थी। यह पुरस्कार विशेष रूप से उद्योग, अनुसंधान प्रयोगशालाओं और शैक्षणिक संस्थानों के बीच संयुक्त परियोजनाओं को प्रोत्साहित करता है। यह युवा प्रतिभाओं को प्रोत्साहित करने और उन्हें मान्यता एवं प्रोत्साहन प्रदान करने का एक प्रयास है। पिछले 22 वर्षों के दौरान इस पुरस्कार के प्रति छात्रों की प्रतिक्रिया कापफी उत्साहजनक रही है। अकादमी विभिन्न समुदायों और पेशों तक इसकी व्यापक पहुंच सुनिश्चित करने के लिए ईमानदारी से प्रयास करती है।
इस पुरस्कार के लिए नामांकन उन इंजीनियरिंग कालेजों अथवा संस्थानों के प्राचार्य, डीन, प्रमुख, रजिस्ट्रार अथवा निदेशक द्वारा भेजना अनिवार्य है जहां उम्मीदवार ने डिग्री हासिल करने के लिए अपनी परियोजना/थीसिस को पूरा किया है। नामांकन के लिए आवेदन उस संगठन के माध्यम से भेजने की आवश्यकता नहीं है जहां उम्मीदवार वर्तमान में काम कर रहे हैं। नामांकन इंजीनियरिंग कालेजों/ संस्थानों से स्नातक, स्नातकोत्तर अथवा डाक्टरेट स्तर से संबंधित परियोजना/थीसिस के लिए आमंत्रित किए जाते हैं। नामांकन जमा कराने की अंतिम तिथि 31 अगस्त है।
अधिक जानकारी के लिए इच्छुक उम्मीदवार आईएनईए की वेबसाइट www.inae.in पर जा सकते हैं और https://www.inae.in/innovative&student&projects&award/ लिंक से नामांकन फार्म डाउनलोड कर सकते हैं।


 


हमारे देश में नई दवा की लाईसेंस प्रक्रिया

हमारे देश में नई दवा की लाईसेंस प्रक्रिया



दवा को बाजार में उतारने से पहले उत्पादक को कई चरणों से होकर गुजरना होता है
प0नि0डेस्क
देहरादून। सामान्य हालातों में किसी दवा को विकसित करने और उसका क्लिनिकल ट्रायल पूरा होने में न्यूनतम तीन साल तक का समय लगता है लेकिन अगर विशेष हालात में किसी दवा को बाजार में आने में कम से कम दस महीने से सालभर तक का समय लग जाता है।
भारत में किसी दवा या ड्रग को बाजार में उतारने से पहले किसी व्यक्ति, संस्था या स्पान्सर को कई चरणों से होकर गुजरना पड़ता है। इसे ड्रग अप्रूवल प्रोसेस कहते हैं। अप्रूवल प्रोसेस के तहत क्लिनिकल ट्रायल के लिए आवेदन करना, क्लिनिकल ट्रायल कराना, मार्केटिंग आथराइजेशन के लिए आवेदन करना और पोस्ट मार्केटिंग स्ट्रेटजी जैसे कई चरण होते है।
हालांकि हर देश में अप्रूवल का एक ही तरीका हो यह जरूरी नहीं और विभिन्न देशों में अपने कुछ विशेष प्रावधान और नियम होते हैं। भारत का औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940 और नियम 1945 औषधियों तथा प्रसाधनों के निर्माण, बिक्री और वितरण को विनियमित करता है।
औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम 1940 और नियम 1945 के अंतर्गत ही भारत सरकार का केंद्रीय औषध मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) दवाओं के अनुमोदन, परीक्षणों का संचालन, दवाओं के मानक तैयार करने, देश में आयातित होने वाली दवाओं की गुणवत्ता पर नियंत्रण और राज्य दवा नियंत्रण संगठनों को विशेष सलाह देते हुए औषधि और प्रसाधन सामग्री के लिए उत्तरदायी है।
 भारत में किसी ड्रग के लिए अप्रूवल मिलना एक चरणबद्व प्रक्रिया है। हमारे देश में किसी दवा के अप्रूवल के लिए सबसे पहले इंवेस्टिगेशनल न्यू ड्रग एप्लिकेश (आईएनडी) को सीडीएससीओ के मुख्यालय में जमा करना होता है। इसके बाद न्यू ड्रग डिवीजन इसका परीक्षण करता है। इस परीक्षण के बाद आईएनडी कमेटी इसका अध्ययन और समीक्षा करती है।
समीक्षा के बाद इस नई दवा को ड्रग कंट्रोलर जनरल आफ इंडिया के पास भेजा जाता है। अगर ड्रग कंट्रोलर जनरल आफ इंडिया आईएनडी के इस आवेदन को सहमति दे देते हैं तो इसके बाद कहीं जाकर क्लिनिकल ट्रायल की बारी आती है। क्लिनिकल ट्रायल के चरण पूरे होने के बाद सीडीएससीओ के पास दोबारा एक आवेदन करना होता है। यह आवेदन न्यू ड्रग रजिस्ट्रेशन के लिए होता है।
एक बार फिर ड्रग कंट्रोलर जनरल आफ इंडिया इसे रीव्यू करता है। अगर यह नई दवा सभी मानकों पर खरी उतरती है तो ही इसके लिए लाइसेंस जारी किया जाता है। लेकिन अगर यह सभी मानकों पर खरी नहीं उतरती है तो डीसीजीआई इसे रद्द कर देता है। भारत में किसी नई दवा के लिए अगर लाइसेंस हासिल करना है तो कई मानकों का ध्यान रखना होता है। यह सभी मानक औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम 1940 और नियम 1945 के तहत आते हैं।
इसके लिए समझना जरूरी है कि नई दवा दो तरह की हो सकती है। एक तो वो जिसके बारे में पहले कभी पता ही नहीं था। इसे एनसीई कहते हैं। ये एक ऐसी दवा होती है जिसमें कोई नया केमिकल कंपाउंड हो। दूसरी नई दवा उसे कहा जाता है जिसमें कंपाउंड तो पहले से ज्ञात हों लेकिन उनका फार्मूलेशन अलग हो। उदाहरण के तौर पर मसलन जो दवा अभी तक टैबलेट के तौर पर दी जाती रही उसे अब स्प्रे के रूप में दिया जाने लगा हो। ये नई दवा के दो रूप हैं लेकिन इनके लाइसेंसिंग अप्रूवल के  लिए नियम एक ही होंगे। इन नियमों का कहीं भी उल्लंघन होने पर कार्रवाई की जा सकती है।
अंग्रेजी दवा और आयुर्वेंद के लिए अप्रूवल मिलने में अंतर बहुत अधिक नहीं है लेकिन आयुर्वेद में अगर किसी प्रतिष्ठित किताब के अनुरूप कोई दवा तैयार की गई है तो उसे आयुष मंत्रालय तुरंत अप्रूवल दे देगा। जबकि एलोपैथ में ऐसा नहीं है। एलोपैथ यानी अंग्रेजी दवा की तुलना में आयुर्वेद के लिए लाइसेंस पाने की प्रक्रिया में थोड़ा अंतर होता है।
आयुर्वेद प्राचीन भारतीय चिकित्सा पद्वति है जिसमें किसी जड़ी-बूटी को किस मात्रा में किस रूप में और किस इस्तेमाल के लिए अपनाया जा रहा है सबका लिखित जिक्र है। ऐसे में अगर कोई ठीक उसी रूप में अनुपालन करते हुए कोई औषधि तैयार कर रहा है तब तो ठीक है। लेकिन अगर कोई काढ़े की जगह टैबलेट बना रहा है और मात्राओं के साथ हेर-फेर कर रहा है तो उसे सबसे पहले इसके लिए रेफरेंस देना होता है।
आयुर्वेद भी अधिनियम 1940 और नियम 1945 के ही मानकों पर काम करता है लेकिन कुछ मामलों में ये एलोपैथ से अलग है। मसलन अगर आप किसी प्राचीन और मान्य आयुर्वेद संहिता को आधार बनाकर कोई दवा तैयार कर रहे हैं तो आपको क्लिनिकल ट्रायल में जाने की जरूरत नहीं है लेकिन अगर आप उसमें कुछ बदलाव कर रहे हैं या उसकी अवस्था को बदल रहे हैं और बाजार में उतारना चाहते हैं तो कुछ शर्तों को पूरा करने के बाद ही आप उसे बाजार में ला सकेंगे। 
इसके साथ ही देश के हर राज्य में स्टेट ड्रग कंट्रोलर होते हैं। जो अपने राज्य में दवा के मैन्युपफैक्चर के लिए लाइसेंस जारी करते हैं। जिस राज्य में दवा का निर्माण होना है, वहां स्टेट ड्रग कंट्रोलर से अप्रूवल लेना होता है। ऐसा नहीं है कि नियम और शर्ते सिर्फ़ नई दवाओं को बाजार में लाने के लिए है। अगर कोई नई दवा नहीं बल्कि कोई शेड्यूल ड्रग भी बाजार में लाया जा रहा है तो उसे बाजार में लाने से पहले उसकी कीमत तय की जाएगी। जिसके लिए नेशनल फार्मास्युटिकल प्रइसिंग अथारिटी से अप्रूवल लेना होगा।
शेड्यूल ड्रग्स का मतलब ऐसी दवाओं से है जो पहले से ही नेशनल लिस्ट आपफ इसेंसियल लिस्ट में शामिल हों। इन मानक नियमों की अनदेखी होने पर लाइसेंस रद्द भी हो सकता है।


उत्तराखंड के आठों नगर निगम उपमहापौर से वंचित

उत्तराखंड के आठों नगर निगम उपमहापौर से वंचित



देहरादून के अतिरिक्त किसी नगर निगम के गठन से ही उपमहापौैर का कोई चुनाव नहीं हुआ
जनता व जनप्रतिनिधियों के लोेकतांत्रिक अधिकारों का हो रहा है हनन
संवाददाता
काशीपुर। उत्तराखंड केे आठों नगर निगम उप महापौैर से वंचित हैै। देहरादून के अतिरिक्त प्रदेश के किसी भी नगर निगम को उसके गठन से ही कोई उपमहापौर नहीं मिला। यह बड़़ा खुलासा सूचना अधिकार कार्यकर्ता नदीम उद्दीन को राज्य निर्वाचन आयोेग उत्तराखंड द्वारा उपलब्ध करायी गयी सूचना से हुआ है। 
काशीपुर निवासी सूचना अधिकार कार्यकर्ता नदीम उद्दीन ने राज्य निर्वाचन आयोेग के लोक सूचना अधिकारी से नगर निगमों  के उप महापौैर/डिप्टी मेयर के चुनाव सम्बन्धी सूचना मांगी थी इसके उत्तर में राज्य निर्वाचन आयोेग के लोक सूचना अधिकारी/सहायक आयुक्त राजकुमार वर्मा द्वारा पत्रांक 4302 से सूचना उपलब्ध करायी है। 
कानून के जानकार तथा नगर निगम चुनाव कानून सहित 44 कानूनी व जागरूकता पुस्तकों के लेखक नदीम उद्दीन ने बताया कि नगर निगम अधिनियम की धारा 10 केे अनुसार नगर निगम में एक उपमहापौैर का प्रावधान हैै जिसे महापौैर की स्थायी व अस्थायी अनुपस्थिति में उसके कार्यों को करने का अधिकार होता हैै। इसके अतिरिक्त धारा 54 के अनुसार वह नगर निगम की विकास समिति का पदेन सभापति होता है। उप महापौैर को पार्षदों द्वारा पार्षदों में से चुना जाता है औैर इसके चुनाव पर आरक्षण नियम लागू होते हैं। उप महापौैर का कार्यकाल ढाई वर्ष या पार्षद के रूप में उसके कार्यकाल, जो भी पहले हो तक होेता है। इस प्रकार एक महापौैर/निगम के कार्यालय में दो बार उपमहापौैर का चुनाव होना चाहिये।
उत्तराखंड में वर्तमान में 8 नगर निगम है। उत्तराखंड गठन के बाद पहले नगर निगम देहरादून का गठन 2003 में तथा 2011 में दो नगर निगम हरिद्वार व हल्द्वानी का गठन हुआ। इसके बाद 2013 में तीन नगर निगम रूदपुर काशीपुर तथा रूड़की तथा 2017 मे ऋषिकेेश तथा कोेटद्वार नगर निगम का गठन हुआ।
देहरादून नगर निगम में ही केवल 2003 व 2006 में उप महापौैर/उप नगर प्रमुख/डिप्टी मेयर के चुनाव राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा कराये गये हैै। उपलब्ध सूचना के अनुसार 2003 के चुनाव में उमेश शर्मा तथा 2006 के चुनाव में अजीत रावत देेहरादून के डिप्टी मेयर चुने गये थे। इसके बाद 2008 में पार्षदोें के चुनाव के बाद तथा 2011 में डिप्टी मेयर का कार्यकाल पूरा होनेे पर 2013 में पार्षदों केे चुनाव के बाद तथा 2016 में कार्यकाल पूरा होने पर तथा 2018 में पार्षदों के चुनाव केे बाद डिप्टी मेयर का चुनाव होना चाहियेे था। इस प्रकार देेहरादून के पार्षद अब तक 5 बार डिप्टी मेयर चुनने व चुने जाने केे अवसर से वंचित रहे है।
काशीपुर रूद्रपुर, हल्द्वानी, हरिद्वार तथा रूड़की नगर निगम में पहले पार्षद व महापौर चुनाव 2013 मे हुये। इसके उपरान्त 2013 में तथा कार्यकाल पूरा होने पर 2016 तथा 2018 में पुनः पार्षद चुनाव होने पर डिप्टी मेयर/उपमहापौैर का चुनाव होना चाहिये था जो नहीं कराया गया। इन नगर निगमों में पार्षद तीन बार उपमहापौैर चुनने व चुने जानेे के अधिकार से वंचित रहे है।
सबसेे नयेे नगर निगम ऋषिकेश तथा कोटद्वार का गठन 2017 में हुआ लेकिन पार्षदों का चुनाव 2018 में हुआ। पार्षदों के चुनाव के बाद इसमें भी उप महापौैर/डिप्टी मेयर चुना जाना चाहिये था लेकिन डेढ़ वर्ष से अधिक समय बीतने के बाद भी यह चुनाव नहीं कराये गये हैै तथा पार्षद डिप्टी मेयर चुने जाने व चुनने के अधिकार से वंचित है। 
राज्य निर्वाचन आयोेग के लोेक सूूचना अधिकारी ने चुनाव न कराने का कोई कारण तो नहीं बताया है लेकिन आयोेग द्वारा सचिव शहरी विकास उत्तराखंड शासन को भेेजे पत्रों की प्रतियां उपलब्ध करायी हैै जिसमें इन पदोें के आरक्षण की अधिसूचना उपलब्ध कराने की अपेक्षा की गयी हैै।


 


आकाश डिजिटल में नामांकन कराने वाले छात्रों की संख्या में वृद्वि

आकाश डिजिटल में नामांकन कराने वाले छात्रों की संख्या में वृद्वि



लाकडाउन के दौरान उत्तराखंड में नामांकन कराने वाले छात्रों की संख्या में 56 फीसद की वृद्वि
संवाददाता
देहरादून। कोविड-19 की वजह से हुए लाकडाउन ने देश में एडुटेक सेक्टर के विकास को प्रोत्साहन दिया है। आकाश डिजिटल प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कराने वाले संस्थान आकाश एजुकेशनल सर्विसेज लिमिटेड का आनलाइन लर्निंग प्लेटफार्म है, जिसने पिछली तिमाही की तुलना में लाकडाउन के दौरान मौजूदा तिमाही में प्रदेश के छात्रों के नामांकन में 56 फीसदी बढ़ोतरी दर्ज की है।
आकाश एजुकेशनल सर्विसेज लिमिटेड के निदेशक एवं सीईओ आकाश चौधरी ने कहा कि एईएसएल परिवार के लिए छात्रों को प्राथमिकता देना हमारी प्रेरणा का स्रोत रहा है। एडुटेक प्लेटफार्म को मिल रही शानदार प्रतिक्रिया को देखकर बेहद खुशी हो रही है। इसके माध्यम से हम लाकडाउन अवधि के दौरान और इसके बाद भी घर से पढ़ाई करने वाले सभी छात्रों को सहायता देना जारी रखेंगे। 
आकाश डिजिटल छात्रों को कई तरह के प्रोडक्ट उपलब्ध कराता है, जिसमें आकाश लाइव, आकाश आई-ट्यूटर और आकाश प्रैक्टेस्ट शामिल हैं। आकाश लाइव दरअसल आनलाइन क्लासेज के जरिए आकाश के सबसे बेहतरीन अध्यापकों को छात्रों से जोड़ता है, जहां किसी भी विषय पर छात्रों के संदेह को तुरंत दूर किया जाता है। आकाश आई-ट्यूटर के जरिए छात्रा आकाश के अनुभवी अध्यापकों द्वारा रिकार्ड किए गए वीडियो लेक्चर्स को देखकर अपनी पढ़ाई कर सकते हैं और सीख सकते हैं। आकाश प्रैक्टेस्ट छात्रों को खुद का मूल्यांकन करने का अवसर उपलब्ध कराता है। 
आकाश डिजिटल जेईई, एनईईटी के साथ-साथ बोर्ड एवं प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले 8वीं से 12वीं कक्षा तक के छात्रों को गुणवत्तायुक्त कोचिंग उपलब्ध कराता है, जिसका लाभ वे अपने घर पर रहकर उठा सकते हैं। यह एडुटेक प्लेटफार्म छात्रों के लिए लाइव आनलाइन क्लासेस, रिकार्ड किए गए वीडियो लेक्चर्स तथा आनलाइन प्रैक्टिस टेस्ट के माध्यम से आकाश इंस्टीट्यूट की अकादमिक विरासत और अनुशासन को आपके घर तक लाता है। 
आकाश डिजिटल की खास पेशकश में उच्च गुणवत्तायुक्त तथा अच्छी तरह से शोध के बाद तैयार की गई अध्ययन सामग्री, आकाश के अनुभवी अध्यापकों के लेक्चर्स, आनलाइन प्रैक्टिस टेस्ट के जरिए नियमित मूल्यांकन, कक्षा के दौरान और इसके बाद छात्रों के संदेह को तुरंत दूर करने की व्यवस्था आदि शामिल हैं।


2050 तक आर्कटिक समुद्र में कोई बर्फ नहीं बचेगी

2050 तक आर्कटिक समुद्र में कोई बर्फ नहीं बचेगी



एनसीपीओआर ने चेतावनी दी कि पर्यावरण के लिए यह अच्छा संकेत नहीं
एजेंसी
नई दिल्ली। राष्ट्रीय ध्रूवीय एवं महासागर अनुसंधान केंद्र (एनसीपीओआर) ने ग्लोबल वार्मिंग के कारण आर्कटिक समुद्र के बर्फ में कमी पाई है। समुद्र के बर्फ में कमी की वजह से स्थानीय रूप से वाष्पीकरण, वायु आर्द्रता, बादलों के आच्छादन तथा वर्षा में बढोतरी हुई है। आर्कटिक समुद्र का बर्फ जलवायु परिवर्तन का एक संवेदनशील संकेतक है और इसके जलवायु प्रणाली के अन्य घटकों पर प्रतिकारी प्रभाव पड़ते हैं।
एनसीपीओआर ने यह नोट किया है कि पिछले 41 वर्षों में आर्कटिक समुद्र के बपर्फ में सबसे बड़ी गिरावट जुलाई 2019 में आई। पिछले 40 वर्षों (1979-2018) में समुद्र के बर्फ में प्रति दशक -4.7 प्रतिशत की दर से कमी आती रही है, जबकि जुलाई 2019 में इसकी गिरावट की दर -13 प्रतिशत पाई गई। अगर यही रुझान जारी रहा तो 2050 तक आर्कटिक समुद्र में कोई बर्फ नहीं बच पाएगी, जोकि पर्यावरण के लिए खतरनाक साबित होगा।
1979 से 2019 तक उपग्रह डाटा से संग्रहित डाटा की मदद से एनसीपीओआर ने सतह ऊष्मायन की दर तथा वैश्विक वायुमंडलीय परिसंचरण में बदलावों को समझने का प्रयास किया है। अध्ययन में यह भी बताया गया कि आर्कटिक समुद्र के बर्फ में गिरावट और ग्रीष्म तथा शरद ऋतुओं की अवधि में बढोतरी ने आर्कटिक समुद्र के ऊपर स्थानीय मौसम एवं जलवायु को प्रभावित किया है। जलवायु परिवर्तन का एक संवेदनशील संकेतक होने के कारण आर्कटिक समुद्र के बर्फ कवर में गिरावट का जलवायु प्रणाली के अन्य घटकों जैसे कि ऊष्मा और गति, जल वाष्प तथा वातावरण और समुद्र के बीच अन्य सामग्री आदान-प्रदान पर मजबूत फीडबैक प्रभाव पड़ा है। चिंताजनक तथ्य यह है कि जाड़े के दौरान बर्फ के निर्माण की मात्रा गर्मियों के दौरान बर्फ के नुकसान की मात्रा के साथ कदम मिला कर चलने में अक्षम रही है।
एनसीपीओआर के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक डा0 अविनाश कुमार, जो इस अनुसंधान से जुड़े हैं, ने कहा कि वैश्विक वार्मिंग परिदृश्य की पृष्ठभूमि में अध्ययन प्रदर्शित करता है कि वैश्विक महासागर-वातावरण वार्मिंग ने आर्कटिक समुद्र के बर्फ की गिरावट की गति को तेज किया है। अध्ययन ने निर्धारण एवं प्रमाणीकरण के लिए उपग्रह अवलोकनों एवं माडल पुनर्विश्लेषण डाटा के अनुप्रयोग को प्रदर्शित किया, जिसने 2019 की समुद्र के बर्फ की मात्रा में गिरावट को अब तक के दूसरे सर्वाधिक समुद्र बर्फ के न्यूनतम रिकार्ड से जोड़ा। हालांकि इस वर्ष कोई मौसम से संबंधित कोई उग्र घटना नहीं हुई है, 2019 की गर्मियों में समुद्र के बर्फ की मात्रा के प्रसार एवं समुद्र के बर्फ की मात्रा में त्वरित गिरावट प्रबल रही और इसके साथ उत्तरी गोलार्ध ने भी खासकर बसंत और गर्मी के मौसम के दौरान रिकार्ड उच्च तापमान का अनुभव किया।
उन्होंने कहा कि इस दर पर समुद्र के बर्फ की कमी, जिसका संबंध पृथ्वी पर रहने वाले सभी जीवों के साथ है, का बढ़ते वैश्विक वायु तापमान एवं वैश्विक महासागर जल परिसंचरण के धीमेपन के कारण बहुत विनाशकारी प्रभाव पड़ सकता है। डा0 अविनाश कुमार के नेतृत्व में इस टीम में पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के एनसीपीओआर की जूही यादव और राहुल मोहन शामिल हैं। शोध पत्र जर्नल्स आफ नैचुरल हेजार्ड्स में प्रकाशित किया गया है।


गुरुवार, 25 जून 2020

बिहार में आकाशीय बिजली गिरने से 83 लोगों की मौत

बिहार में आकाशीय बिजली गिरने से 83 लोगों की मौत



एजेंसी
पटना। बिहार में आपदा प्रबंधन विभाग के मुताबिक मिली जानकारी के अनुसार 83 लोगों की मौत हुई है। राज्य के आपदा प्रबंधन विभाग ज़िलों से फोन पर मिलने वाली जानकारी के आधार पर यह सूची जारी की है।
आपदा प्रबंधन विभाग के अनुसार सबसे ज्यादा मौतें गोपालगंज में हुई हैं जहां 13 लोग मारे गए हैं। बिहार के करीब 23 जिले में बिजली गिरने से जान-माल का नुकसान हुआ है। गोपालगंज के बाद मधुबनी और नवादा में 8-8 लोग मारे गए हैं। इसके अलावा सिवान में 6, भागलपुर में 6, पूर्वी चंपारण में 5, दरभंगा और बांका में 5-5 और पश्चिमी चंपारण में 2 लोगों की मौत की खबर है। बिहार सरकार ने सभी मृतकों के परिजनों को चार-चार लाख रुपए का मुआवज़ा देने की घोषणा की है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस घटना पर अपनी संवेदना प्रकट करते हुए ट्वीट किया है कि बिहार और उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों में भारी बारिश और आकाशीय बिजली गिरने से कई लोगों के निधन का दुखद समाचार मिला। राज्य सरकारें तत्परता के साथ राहत कार्यों में जुटी हैं। इस आपदा में जिन लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी है, उनके परिजनों के प्रति मैं अपनी संवेदना प्रकट करता हूं। पूर्व उप-मुख्यमंत्राी और मौजूदा नेता प्रतिपक्ष राजद के तेजस्वी यादव ने लोगों की मौत पर दुख जताया है।
बिहार के अलावा उत्तर प्रदेश में भी बिजली गिरने से कुछ लोगों की मौत की खबर है। देवरिया में बिजली गिरने से 5 लोगों की मौत हुई है और कई लोग घायल हुए हैं।


बुधवार, 24 जून 2020

सरकार पर वन पंचायतों को किनारे कर आरएसएस को बढ़ाने आरोप

सरकार पर वन पंचायतों को किनारे कर आरएसएस को बढ़ाने आरोप



संवाददाता
लालकुआं। अखिल भारतीय किसान महासभा के राष्ट्रीय सचिव पुरुषोत्तम शर्मा ने राज्य की त्रिवेन्द्र सरकार पर वन पंचायतों की उपेक्षा कर पर्यावरण संरक्षण के धन से आरएसएस को प्रमोट करने का आरोप लगाया है।
 उन्होंने कहा कि प्रमुख वन संरक्षक उत्तराखण्ड जय राज ने अपने विभागीय अधिकारियों को पत्र संख्या 1259 22/06/2020 के माध्यम से एक आदेश जारी किया है। इस आदेश में कहा गया है कि पर्यावरण संरक्षण में अधिकाधिक जन भागीदारी के लिए इस वर्ष होने वाले वृक्षारोपण, वन महोत्सव, हरेला आदि कार्यक्रमों में आरएसएस के सदस्यों का भरपूर सहयोग लेते हुए उन्हें बढ़ चढ़ कर भाग लेने का अवसर प्रदान करें! 
किसान नेता पुरुषोत्तम शर्मा ने कहा यह आदेश उत्तराखण्ड में सत्ता द्वारा राज्य के संशाधनों से आरएसएस को प्रमोट करने और सत्ताधारियों के प्रति राज्य के नौकरशाहों की स्वामी भक्ति की इंतहा है। उन्होंने कहा आरएसएस का इतिहास इस देश में पर्यावरण संरक्षण का नहीं बल्कि साम्प्रदायिक ध्रूवीकरण के जरिये सामाजिक प्रदूषण फैलाने से जुड़ा रहा है। इस काम के लिए आरएसएस का चयन भी दिखाता है कि त्रिवेन्द्र सरकार पर्यावरण संरक्षण के लिए नहीं, बल्कि साम्प्रदायिक ध्रूवीकरण की राजनीति करने वाले आरएसएस के विस्तार को लेकर ज्यादा सक्रिय है।
शर्मा ने कहा दुनिया में उत्तराखण्ड एक ऐसा राज्य है जहां वनों पर निर्भर किसानों ने वन व पर्यावरण संरक्षण के लिए अनूठा काम किया है। इस छोटे से राज्य में लगभग 12 हजार वन पंचायतों को गठित कर किसानों ने सरकारी सहायता के बिना ही अपने संशाधनों से बड़े-बड़े क्षेत्रों में वन उगाए हैं। इसके अलावा भी हजारों लट्ठ पंचायतें हैं जिनमें किसानों ने खुद वन खड़े किए हैं और उनकी रखवाली करते हैं। किसानों द्वारा विकसित किए गए इन वनों के कारण ही सरकारी वनों पर स्थानीय निवासियों की निर्भरता कम हुई है और उनका भी संरक्षण हुआ है। 
किसान नेता ने कहा कि यह बड़े शर्म की बात है कि राज्य में त्रिवेन्द्र रावत के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार उत्तराखण्ड में पर्यावरण संरक्षण के इन असली प्रहरियों को दरकिनार कर आरएसएस को प्रमोट करने पर तुली हुई है। इससे इस सरकार की असली मंशा भी उजागर हो रही है। असल में त्रिवेन्द्र सरकार किसानों की वन पंचायतों को किनारे कर ग्रामीण क्षेत्रों में सरकारी खर्च पर आरएसएस का विस्तार करने का रास्ता बना रही है।
उन्होंने कहा अखिल भारतीय किसान महासभा राज्य की त्रिवेन्द्र सरकार से इस आदेश को तत्काल वापस कराने और पर्यावरण संरक्षण की हर योजना में किसानों की वन पंचायतों और किसान संगठनों की भूमिका व भागीदारी की गारंटी करने की मांग करती है। 
शर्मा ने कहा अगर राज्य सरकार ने यह आदेश वापस नहीं लिया और वन पंचायतों की उपेक्षा की, तो आखिल भारतीय किसान महासभा राज्य की वन पंचायतों के साथ बड़े आंदोलन के लिए मजबूर होगी।


चीन ने किया 33 हेक्टेयर नेपाली जमीन पर किया कब्जा

चीन ने किया 33 हेक्टेयर नेपाली जमीन पर किया कब्जा
भारत विरोधी हरकत करने वाले नेपाल को मिला चीन से सबक



एजेंसी
काठमांडू। चीन ने अब नेपाल की जमीन पर भी कब्जा करना शुरू कर दिया है। नेपाल के कृषि मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक देश के कुल 10 जगहों पर चीन ने कब्जा कर लिया है। यही नहीं पेइचिंग ने 33 हेक्टेयर की नेपाली जमीन पर नदियों की धारा बदलकर प्राकृतिक सीमा बना दी है और कब्जा कर लिया है। भारत के खिलाफ विवादित नक्शा जारी करने वाली नेपाल की कम्युनिस्ट सरकार ने अपने आका चीन के इस नापाक कदम पर चुप्पी साध रखी है, वहीं विपक्ष को अब ड्रैगन का डर सताने लगा है।
विपक्षी नेपाली कांग्रेस के उपाध्घ्यक्ष और देश के पूर्व उपप्रधानमंत्री बिमलेंद्र निधि ने आरोप लगाया है कि चीन जबरन नेपाल की जमीन पर कब्जा कर रहा है। उन्होंने केपी ओली सरकार से अपील की कि वह चीन के हिमालय और नेपाली गांव रुई पर कब्जा करने के खिलाफ कार्रवाई करे। उन्होंने यह भी कहा कि सरकार को चीन की कम्युनिस्ट पार्टी प्रशिक्षण दे रही और उसे इस पूरे मामले पर जवाब देना चाहिए।
बताया जा रहा है कि चीन ने तिब्बत में सड़क निर्माण के बहाने नेपाल की जमीन पर कब्जा कर रखा है। नेपाल सरकार के कृषि मंत्रालय के सर्वे डिपार्टमेंट में 11 ऐसी जगहों की लिस्ट है जिनमें से चीन ने 10 पर कब्जा कर रखा है। यही नहीं 33 हेक्टेयर की नेपाली जमीन पर नदियों की धारा बदलकर प्राकृतिक सीमा बना दी गई है और कब्जा कर लिया गया है। चीन ने नेपाल के रुई गांव पर कब्जा कर लिया है और कथित तौर पर अतिक्रमण को वैध बनाने के लिए गांव के सीमा स्तंभों को हटा दिया है।
चीनी सरकार तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र टीएआर में सड़क नेटवर्क के लिए निर्माण कर रहा है जिससे नदियों और सहायक नदियों का रास्ता बदल गया है और वे नेपाल की तरफ बहने लगी हैं। दावा किया गया है कि अगर यह जारी रहा तो नेपाल का बड़ा हिस्सा टीएआर में चला जाएगा। इस दस्तावेज में चेतावनी दी गई है कि अगर समय पर कदम नहीं उठाए गए तो नेपाल की और जमीन चली जाएगी।
चीन के निर्माणकार्य की वजह से बगडरे खोला नदी और करनाली नदी का रास्ता बदल गया है और हुमला जिले में 10 हेक्टेयर जमीन पर अतिक्रमण हो गया है। नेपाल की 6 हेक्टेयर जमीन रसूवा जिले में सिंजेन, भुरजुक और जांबू खोला के रास्ते बदलने की वजह से अतिक्रमण में जा चुकी है। वहीं, नेपाल की 11 हेक्टेयर जमीन पर चीन पहले ही तिब्बत में होने का दावा कर चुका है। सिंधुपलचोक जिले में खरानी खोला और भोटे कोसी के रास्ते में हुए बदलाव के चलते यह दावा किया गया है।
तिब्बत में चीन के सड़क निर्माण ने संखूवासभा जिले में समजुंग, काम खोला और अरुण नदी के रास्ते के चलते 9 हेक्टेयर जमीन पर कब्जा कर लिया है। इस दस्तावेज में कहा गया है कि अगर नदियों की वजह से जमीन कम होती रही तो सैकड़ों हेक्टेयर जमीन टीएआर में चली गई। बड़ी संभावना है कि चीन इन इलाकों में अपने बॉर्डर ऑब्जर्वेशन पोस्ट बना लेगा जहां उसकी सशस्त्र पुलिस तैनात रहेगी। वर्ष 1960 में सर्वे के बाद खंभे लगाकर चीन की सीमा तय कर दी गई थी लेकिन नेपाल ने सीमा को सुरक्षित करने के लिए कुछ नहीं किया।


छपासः एक मौकापरस्त बीमारी

छपासः एक मौकापरस्त बीमारी



खबरीलाल
देहरादून। भाई-भतीजावाद और मौकापरस्ती हालांकि बुरे प्रसंग माने जाते है लेकिन यह सभी को प्रिय होते है। संसार में ऐसा कौन है जो अवसर मिलने पर इन प्रवृतियों को उजागर न करता हो!  
तो भी इन प्रवृतियों को हमारे बीच में हेय दृष्टि से देखा जाता है। लेकिन कभी अपने आप से मनन करके विचार कीजिएगा कि क्या भाई-भतीजावाद या मौकापरस्ती बुरी चीज है? भई इसका दूसरा दृष्टिकोण भी समझिए, हर कोई आजमाये हुए को ही वरियता देता है ना। ऐसे में अपनों को लाभ प्रदान किया गया तो इसमें खराबी क्या है? अनजान आदमी को जिम्मेदारी थोड़े ही दी जाती है। इसलिए जानकार को मौका देना, कहां तक गलत है।
हालांकि दुनिया में ऐसा कौन होगा जो हाथ आये अवसर को जाने देगा। तो भी लोग मौकापरस्ती को बुरा मानते है। इस तरह तो छपास रोग भी एक बुरी बीमारी हुई! क्योंकि छपास रोग पूरी तरह से मौकापरस्त बीमारी है जिसका रोगी अवसर को अक्सर भुना लेता है।
अब बात मौकापरस्ती की करें तो हर कोई इस बात से सहमत होगा कि हाथ आये मौके को जाने देना समझदारी नही होती। ऐसे में किसी के भाग में छींका फूटा तो वह क्यों न चाटे? फिर जो छत्ता काटता है, वहीं हाथ भी चाटेगा। तो महानुभावों इन दोनों प्रवृतियों में खराबी कहां पर है? वैसे बुरा देखने लगो तो दूध भी सैकड़ों जर्म की वजह से खराब चीज होनी चाहिये। लेकिन नहीं वह तो सेहत के लिए बेहद लाभकारी होता है।
तो क्या भाई-भतीजावाद और मौकापरस्ती गरीब की बीवी है? जो हर कोई उसे भाभी बना लेता है? वरना रूतबे वालों की घरवालियां तो मैडम कहलवाती है। किसी की जुर्रत नही होती कि वह उन्हें बहन जी या भाभी कह ले। वो तो गरीब आदमी है जिसके साथ बंधने पर सबला भी अबला में तब्दील हो जाती है। वैसे भी बारिश की बूंदों ने धरती पर ही गिरना होता है। वो भी आसमान से गिरना होता है। छपास का रोगी उनको अपने में समेट लेता है तो इसमें गुनाह कैसा हो गया!


केंद्रीय कर्मचारियों के एप्रेजल पर रोक

केंद्रीय कर्मचारियों को सैलरी बढ़ोतरी को लेकर बड़ा झटका



केंद्रीय कर्मचारियों के एप्रेजल पर रोक
एजेंसी
नई दिल्ली। कोरोना संकट काल में केंद्रीय कर्मचारियों को बड़ा झटका लगा है। लॉकडाउन के कारण आर्थिक बोझ को कम करने के लिए केंद्र सरकार ने पहले ही महंगाई भत्ते में की गई बढ़ोतरी के भुगतान पर रोक लगा दी है, अब सरकार ने लाखों केंद्रीय कर्मचारियों को एक और झटका दिया है। सरकार ने केंद्रीय कर्मचारियों के एप्रेजल पर रोक लगा दी है। सरकार की ओर से जारी आदेश के बाद मार्च 2021 तक केंद्रीय कर्मचारियों के सैलरी बढ़ोतरी की सारी उम्मीदें खत्म हो गई है।
केंद्रीय कर्मचारियों जो लंबे वक्त से सैलरी बढ़ोतरी का इंतजार कर रहे थे, उन्हें जोरदार झटका लगा है। सरकार ने आदेश से इनके इंतजार की घड़ियां और लंबी हो गई है। सरकार ने कर्मचारियों के सैलरी बढ़ोतरी को मार्च 2021 तक के लिए रोक दिया है। सरकार के आदेश के बाद अब केंद्रीय कर्मचारियों को अपने एनुअल अप्रेजल के लिए मार्च 2021 तक का इंतजार करना होगा। केंद्र सरकार ने 2019-20 के लिए केंद्रीय कर्मचारियों के एनुअल परफॉर्मेंस एसेसमेंट रिपार्ट (एपीएआर) को पूरा करने की मियाद बढ़ा दी है।
केंद्र सरकार ने एपीएआर रिपोर्ट की तारीख को मार्च 2021 तक के लिए बढ़ा दिया है। आपको बता दें कि पहले एनुअल परफॉर्मेंस एसेसमेंट रिपोर्ट भरने की आखिरी तारीख 31 दिसंबर 2020 तक रखी गई थी, लेकिन अब सरकार ने कोरोना संकट के कारण आर्थिक मोर्चे पर आई चुनौती को देखते हुए इसकी डेडलाइन को अगले साल मार्च तक के लिए बढ़ा दिया है। इसका मतलब साफ कि केंद्रीय कर्मचारियों को इंक्रीमेंट और प्रमोशन के लिए अगले साल तक का इंतजार करना होगा।
केंद्र सरकार ने एपीएआर रिपोर्ट की तारीख को मार्च 2021 तक के लिए बढ़ा दिया है। आपको बता दें कि पहले एनुअल परफॉर्मेंस एसेसमेंट रिपोर्ट भरने की आखिरी तारीख 31 दिसंबर 2020 तक रखी गई थी, लेकिन अब सरकार ने कोरोना संकट के कारण आर्थिक मोर्चे पर आई चुनौती को देखते हुए इसकी डेडलाइन को अगले साल मार्च तक के लिए बढ़ा दिया है। इसका मतलब साफ कि केंद्रीय कर्मचारियों को इंक्रीमेंट और प्रमोशन के लिए अगले साल तक का इंतजार करना होगा।
डिपार्टमेंट ऑफ पर्सनल ट्रेनिंग की ओर से जारी किए आदेश में कहा गया है कि कोरोना संकट के बाद सामने आए हालात को देखते हुए साल 2019-20 के लिए एपीएआर को पूरा करने की मियाद 31 दिसंबर 2020 से बढ़ाकर मार्च 2021 तक दी गई है। केंद्र सरकार के इस फैसले के बाद ग्रुप ए, बी और सी के अधिकारियों को सैलरी इंक्रीमेंट के लिए अभी मार्च तक का इंतजार करना होगा। आपको बता दें कि आमतौर पर कर्मचारियों को 31 मई तक इस एप्रेजल प्रक्रिया को पूरा करना होता है, लेकिन लॉकडाउन के कारण सरकार ने इसे पहले दिसंबर 2020 किया और अब इसे बढ़ाकर मार्च 2021 कर दिया। एपीएआर फॉर्म केंद्रीय कर्मचारियों के लिए इंक्रीमेंट प्रोसेस का यह पहला कदम होता है।


चीन से अतिरिक्त सतर्कता बरते जाने की जरूरत

सीमा के नकदीक सैनिक साजोसमान डंप करने से होता उसकी कुटिलता की अंदाजा
चीन से अतिरिक्त सतर्कता बरते जाने की जरूरत



प0नि0ब्यूरो
देहरादून। धोखा और फरेब चीन की फितरत है। हमारे पूर्व रक्षामंत्री जार्ज फर्नांडीज ने कहा था कि पाकिस्तान नहीं, चीन हमारा सबसे बड़ा शत्रु है। तब बहुत से लोग हैरान हो गए थे। लेकिन यह बात उन्होंने हवा में नहीं कही थी। 1962 में हमारी हार के बाद से अब तब वह लगातार हम पर दबाव बनाकर हमारी जमीनों पर काबिज होता रहा। थोड़ा थोड़ा करके हमें पीछे धकेलता रहा। हमारी कमजोर इच्छाशक्ति वाली सरकारें सेना को पीछे हटाती रहीं। लेकिन अब हालात और प्रवृति दोनों बदल गए है। 
क्योंकि पीछे हटने या संयम रखने की भी एक सीमा होती है। लेकिन सवाल उठाने वाले राजनीतिज्ञों को याद रखना चाहिये कि 1962 से पूर्व ही चीन ने हमारी सीमा के समीप सड़क बना डाली। किसी ने कोई विरोध तब नहीं किया। परन्तु जैसे ही हमारी ओर से ऐसी पहल शुरू हुई, चीन आक्रामक होता चला गया। यहां हमको नहीं भुलना चाहिये कि भले ही हमारे सैनिकों ने पराक्रम दिखाकर चीनी सैनिकों को पीछे धकेला हो लेकिन जहां अब वह बार-बार बातचीत का आग्रह कर रहा है, वहीं उसने काराकोरम हाईवे और वास्तविक नियंत्रण रेखा के समीप हमारी सीमा पर सैनिकों एवं सैन्य साजोसमान का डंप लगाना शुरू कर दिया है। 
इस वजह से हमारी सरकार भी सतर्कता बरतते हुए कदम बढ़ा रही है। यहीं कारण है कि उसने तीनों सेनाओं को हाई अलर्ट पर रखा हुआ है। जमीन, नभ और जल क्षेत्रों में सेना की तैनाती हो चुकी है और निगरानी तंत्र को सुदृढ़ किया जा चुका है। क्योंकि चीन बातचीत केवल और केवल अपनी तैयारियों के लिए समय के वास्ते समय बिताने के लिए कर रहा है ताकि मौका मिले और पलटवार करे। क्योंकि माओवाद के अनुसरण करने वाले चीन का का सिद्वांत है कि वह ताकतवर दुश्मन से नहीं लड़ता बल्कि उससे मित्रता का हाथ बढ़ा कर उसे कमजोर करता है और तब उसपर हावी होता है। 
इसमें कोई दो राय नहीं कि हम सैनिक तैयारियों में कहीं कम नही है। हमारी सेनाएं उसका हर जवाब देने में सक्षम है लेकिन इस मुद्दे पर हो रही राजनीति से पार पाना बेहद जरूरी है। वैसे देश में वामपंथियों और कांग्रेस को छोड़कर बाकी सभी विपक्ष सरकार के साथ एकजुटता दिखा रहा है। वामपंथियों की तो शुरू से मानसिकता चीन के फेवर की रही है लेकिन कांग्रेस के शासनकाल में सबसे ज्यादा बार चीन ने हमारी जमीनों पर अतिक्रमण किया।   
तब जितना बेचारगी कांग्रेसनीत सरकारों ने दिखाई, वह कभी देखने को नहीं मिल सकती। हालांकि तब का विपक्ष मर्यादा का पालन करते हुए उसके साथ खड़े हो जाया करते थे। कोई सवाल नही करते थे। लेकिन आज कांग्रेस खासकर राहुत गांधी ऐसा व्यवहार कर रहें है जैसे वे चीन के एजेंट हों। यहां पर गौर फरमाए तो पायेंगे कि चीन और कांग्रेस का हस्र एक जैसा हो रहा है। चीन जितना आक्रमक होता है उतना ही उसकी मिट्टी पलीद हो रही है। कुछ वैसा ही अंजाम कांग्रेस का भी हो रहा है। तभी तो वह लगातार गलती पर गलती कर देश और सेना का अपमान करने पर तुली हुई है। वरना ऐसे संकट के समय राजनीति करने और सरकार पर निशाना साधने की बजाय कांग्रेस चीन पर भी दो शब्द बोलती।


 


सोमवार, 22 जून 2020

नेपाल में भारत विरोध् थमने का नाम नहीं ले रहा 

नेपाल में भारत विरोध् थमने का नाम नहीं ले रहा 



अब हो रही अपील- ड्यूटी पर न लौटें गोरखा सैनिक
एजेंसी
काठमांडू। नेपाल में चीनी सोहबत का असर दिखाई देने लगा है। यहां पर भारत विरोध्ी माहौल चरम पर है। पहले देश की सत्ताधारी पार्टी के नेताओं ने चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के साथ बैठक की। अब देश में मांग उठ रही है कि नेपाली नागरिक भारतीय सेना में शामिल न हों। नेपाल की एक प्रतिबंधित पार्टी ने मांग की है कि नेपाली नागरिक भारत की ओर से चीन के लिए लड़ाई न लड़ें।
प्रतिबंधित कम्युनिस्ट पार्टी आपफ नेपाल के नेत्रा बिक्रम चंद ने काठमांडू में नेतृत्व से यह अपील की है कि नेपाली नागरिकों को भारतीय सेना का हिस्सा बनने से रोका जाए। पार्टी की ओर से जारी प्रेस रिलीज में कहा गया है कि गलवान घाटी में भारतीय जवानों के मारे जाने के बाद भारत और चीन में बढ़ते तनाव के बीच भारत ने गोरखा रेजिमेंट के नेपाली नागरिकों से अपील की है कि वे अपनी छुट्टियां रद्द करके ड्यूटी पर वापस आएं। इसका मतलब है कि भारत नेपाली नागरिकों को चीन के खिलापफ सेना में उतारना चाहता है।
बयान में कहा गया है कि गोरखा सैनिकों को भारत द्वारा तैनात किया जाना नेपाल की विदेश नीति के खिलापफ जाएगा। नेपाल एक स्वतंत्रा देश है और एक देश की सेना में काम करने वाले युवा का इस्तेमाल दूसरे देश के खिलापफ नहीं किया जाना चाहिए। यह पार्टी यूं तो भूमिगत है लेकिन वामपंथियों के बीच इसे समर्थन प्राप्त है।
वहीं नेपाल की सीमा से सटे इलाकों में नेपाल के एपफएम रेडियो में भारत विरोध्ी गीतों का प्रसारण जोर शोर से होने लगा है। नेपाल के रेडियो स्टेशन गीतों के जरिए दुष्प्रचार करने में लगे हुए है और लोगों में भारत विरोध्ी भावनाएं भड़कायी जा रही है।


चीनी रेडियो ने फिर परोसा झूठ का पुलिंदा

मुठभेड़ की सच्चाई सामने आई!
चीनी रेडियो ने फिर परोसा झूठ का पुलिंदा



प0नि0ब्यूरो
देहरादून। चीन के प्रोपगंड़े को आगे बढ़ते हुए रेडियो चाइना ने कहा कि मुठभेड़ की सच्चाई सामने आई है। उसका कहना है कि चीन और भारत के बीच सीमा क्षेत्रा में मुठभेड़ हुई, जिसमें कई सैनिक हताहत हुए। भारत में चीन के खिलाफ कार्रवाई सक्रिय हो रही है, वहीं चीन संयम से काम ले रहा है।
रेडियो चाइना ने लिखा है कि अब मुठभेड़ की सच्चाई सामने आ गई है। चीनी विदेश मंत्राी वांग यी और भारतीय विदेश मंत्राी एस0 जयशंकर ने फोन पर वार्ता की। वांग यी ने स्पष्ट रूप से कहा कि यह मुठभेड़ भारत द्वारा की गई उत्तेजना से हुई। चीन इसका दृढ़ विरोध करता है। चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने नियमित संवाददाता सम्मेलन में मुठभेड़ की पूरी प्रक्रिया बताई। चीन की बात को भारतीय प्रधानमंत्राी नरेंद्र मोदी ने अप्रत्यक्ष रूप से स्वीकार किया।
वह आगे लिखता है कि 19 जून को आयोजित राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस में मोदी ने स्पष्ट रूप से कहा कि चीनी सैनिकों ने भारत की भूमि में प्रवेश नहीं किया। भारत की कोई चौकी और उपकरण नहीं हटाया गया। इस तरह प्रतीत होता कि मोदी भी इस बात को स्वीकार करते हैं। उधर मुठभेड़ होने के बाद चीन ने चीनी सैनिकों के हताहत होने की संख्या जारी नहीं की। इसके पीछे उसने चीन का उद्देश्य मुठभेड़ को शांत बनाना कहा। उसने दावा किया कि लेकिन भारत और दुनिया में बहुत लोगों ने मुठभेड़ की जिम्मेदारी चीन पर लादी, जिससे भारत में चीन और चीनी उत्पादों के खिलापफ कार्रवाई सक्रिय बनी है। मोदी के स्पष्टीकरण से अब मुठभेड़ की सच्चाई सामने आ चुकी है।
रेडियो चीन ने उपदेश देते हुए लिखा कि चीन और भारत दुनिया में दो सबसे बड़े विकासशील देश हैं। दोनों देशों के संबंधों में विकास की बड़ी संभावना है। सीमा विवाद का वार्ता के जरिए समाधान किया जा सकता है। सहयोग हमारे दोनों देशों के लिए लाभदायक है। हमें विवाद पर नियंत्राण कर सहयोग करना चाहिए। चीन और भारत एक साथ विकास करते हैं, तो दुनिया के लिए बड़ा योगदान होगा।


रविवार, 21 जून 2020

चीन की गोद में बैठ नेपाल ने तरेरी आंख

चीन की गोद में बैठ नेपाल ने तरेरी आंख



बिहार के मोतिहारी जिले की जमीन पर दावा कर तटबंध निर्माण का काम रूकवाया
एजेंसी
मोतिहारी। भारत और चीन की तनातनी के बीच नेपाल अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा। उसने उत्तराखंड के तीन भारतीय क्षेत्रों पर दावा करने के बाद अब बिहार में पूर्वी चंपारण जिले की जमीन पर अपना दावा किया है। नेपाल यहीं तक नहीं रूका बल्कि उसने जिले के ढाका ब्लाक में लाल बकैया नदी पर तटबंध निर्माण का काम भी रुकवा दिया। इसको लेकर डीएम कपिल अशोक ने जियोलाजिकल सर्वे आफ इंडिया और बिहार सरकार को जानकारी देते हुए विवाद को सुलझाने का अनुरोध किया है।
डीएम कपिल ने कहा कि नेपाली अधिकारियों ने तटबंध के आखिरी हिस्से के निर्माण पर आपत्ति की थी जो कि सीमा के अंतिम बिंदु के पास है। इसके बाद उन्होंने नेपाल के रौतहट के अधिकारियों के साथ बातचीत भी की थी, लेकिन कोई हल नहीं निकला। बता दें कि नेपाल ने दावा किया है कि निर्माण का कुछ हिस्सा उसके क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र में है। नेपाल के अनुसार यह कथित विवादित स्थान मोतिहारी जिला मुख्यालय से लगभग 45 किमी उत्तर-पश्चिम में इंटरनेशनल बार्डर पर है। हालांकि यह मुद्दा एक पखवाड़े पहले ही उठा था लेकिन पूर्वी चंपारण के डीएम ने जब भारत के भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (जीएसआई) की मांग की तब इसका खुलासा हुआ।
गौरतलब है कि बिहार के जल संसाधन विभाग (डब्ल्यूआरडी) ने बहुत पहले ही तटबंध का निर्माण किया था और मानसून से पहले हर साल की तरह इसकी मरम्मती का काम शुरू ही किया था, लेकिन नेपाली अधिकारियों ने इस कार्य पर आपत्ति जताते हुए इस काम को उत्तरी छोर पर रोक दिया। सबसे खास बात ये है कि यह पहली बार है जब इस स्थान को नेपाल अपने क्षेत्राीय अधिकार क्षेत्र में होने का दावा कर रहा है।


शनिवार, 20 जून 2020

103 रूपये की गोली से कोरोना का इलाज

103 रूपये की गोली से कोरोना का इलाज



ग्लेनमार्क फार्मास्युटिकल्स ने कोविड-19 से मामूली रूप से पीड़ित मरीजों के इलाज के लिए एंटीवायरल दवा फेविपिराविर को फैबिफ्लू ब्रांड नाम से पेश किया 
एजेंसी
नई दिल्ली। ग्लेनमार्क फार्मास्युटिकल्स ने कोविड-19 से मामूली रूप से पीड़ित मरीजों के इलाज के लिए एंटीवायरल दवा फेविपिराविर को फैबिफ्लू ब्रांड नाम से पेश किया है। कंपनी ने यह जानकारी दी। मुंबई की कंपनी ने कहा था कि उसे भारतीय औषधि महानियंत्रक (डीजीसीआई) से इस दवा के निर्माण और विपणन की अनुमति मिल गई।
कंपनी ने कहा कि फैबिफ्लू कोविड-19 के इलाज के लिए फेविपिराविर दवा है, जिसे मंजूरी मिली है। ग्लेमार्क फार्मास्युटिल्स के चेयरमैन एवं प्रबंध निदेशक ग्लेन सल्दान्हा ने कहा कि यह मंजूरी ऐसे समय मिली है जबकि भारत में कोरोना वायरस के मामले पहले की तुलना में अधिक तेजी से बढ़ रहे हैं। इससे हमारी स्वास्थ्य सेवा प्रणाली काफी दबाव में है। उन्होंने उम्मीद जताई कि फैबिफ्लू जैसे प्रभावी इलाज की उपलब्धता से इस दबाव को काफी हद तक कम करने में मदद मिलेगी।
सल्दान्हा ने कहा कि क्लिनिकल परीक्षणों में फैबिफ्लू ने कोरोना वायरस के हल्के संक्रमण से पीड़ित मरीजों पर काफी अच्छे नतीजे दिखाए। उन्होंने कहा कि इसके अलावा यह खाने वाली दवा है जो इलाज का एक सुविधाजनक विकल्प है। उन्होंने कहा कि कंपनी सरकार और चिकित्सा समुदाय के साथ मिलकर काम करेगी ताकि देशभर में मरीजों को यह दवा आसानी से उपलब्ध हो सके। यह दवा चिकित्सक की सलाह पर 103 रुपये प्रति टैबलेट के दाम पर मिलेगी।
पहले दिन इसकी 1800 एमजी की दो खुराक लेनी होगी। उसके बाद 14 दिन तक 800 एमजी की दो खुराक लेनी होगी। ग्लेनमार्क फार्मा ने कहा कि मामूली संक्रमण वाले ऐसे मरीज जो मधुमेह या दिल की बीमारी से पीड़ित हैं, उन्हें भी यह दवा दी जा सकती है। 


आकाश द्वारा नीट में शामिल होने के इच्छुक छात्रों के लिए निःशुल्क ऐप लान्च

आकाश द्वारा नीट में शामिल होने के इच्छुक छात्रों के लिए निःशुल्क ऐप लान्च



- नीट चैलेंजर ऐप की मदद से छात्र पिछले 10 वर्षों में पूछे गए प्रश्नों को समझ सकते हैं और उनका उत्तर देने का अभ्यास कर सकते हैं।
- नीट परीक्षा की तैयारी करने वाले सभी छात्रों के लिए यह ऐप मुफ्रत है और इसे गूगल प्ले स्टोर से डाउनलोड किया जा सकता है
संवाददाता
देहरादून। आकाश एजुकेशनल सर्विसेज लिमिटेड (एईएसएल) ने मुफ्रत ऐप लान्च किया है। आकाश ने इस एप का नाम दिया है ‘नीट चौलेंजर ऐप’। यह छात्रों को आगामी नीट परीक्षा की तैयारी करने में सक्षम बनाता है और इस ऐप की मदद से छात्र पिछले 10 वर्षों में पूछे गए सवालों को अच्छी तरह से समझ सकते हैं तथा उनका उत्तर लिख सकते हैं।
नीट चैलेंजर ऐप केवल आकाश इंस्टीट्यूट में पढ़ने वालों छात्रों के लिए ही नहीं बल्कि भारत भर के सभी छात्रों के लिए मुफ्रत है। इसे गूगल प्ले स्टोर से डाउनलोड किया जा सकता है। इस ऐप में पंजीकरण करने के लिए एक छात्रा को अपने ग्रेड का चयन करना होगा। एक बार साइन-अप करने के बाद छात्र कोई विषय की सूची से चुन सकता है। किसी विशेष विषय का चयन करने के बाद छात्र विशेष अध्याय का चुनाव कर सकते हैं, जहां कोई नीट/एआईपीएमटी के पिछले वर्षों के प्रश्न देख सकते हैं और इनका उत्तर दे सकते हैं।
ऐप के लान्च के बारे में एईएसएल के निदेशक और सीईओ आकाश चौधरी ने कहा कि ऐप से उन छात्रों को लाभ मिलेगा जो देश में लगाए गए लाकडाउन के कारण अपने नियमित क्लास में नहीं जा पा रहे हैं। नीट चैलेंजर ऐप की मदद से छात्र अपने घर में सुविधा के साथ रहते हुए गुणवत्तापूर्ण मार्गदर्शन प्राप्त कर सकते हैं। ऐप छात्रों और शिक्षकों के लिए नीट प्रश्नों को अच्छी तरह से समझने और नीट/एआईपीएमटी परीक्षा में पूछे गए प्रत्येक प्रश्न की तरह के प्रश्नों को हल करने की क्षमता प्राप्त करने में सक्षम बनाता है। 
ऐप को डाउनलोड करने के लिए लिंक इस प्रकार है - ीजजचेरूध्ध्चसंलण्हववहसमण्बवउध्ेजवतमध्ंचचेध्कमजंपसेघ्पकत्रंांेीण्दममजण्चंेजऋलमंतऋचंचमते
नीट चैलेंजर ’ऐप की विशेषताएंः
- एनईईटी/एआईपीएमटी के चैप्टर वाइज 10 साल के प्रश्न।
- प्रत्येक प्रश्न की अवधारणाओं को समझने में मदद प्राप्त करना।
- एनसीईआरटी का पृष्ठ संदर्भ (यदि प्रश्न एनसीईआरटी के डोमेन से संबंधित है)
- प्रत्येक प्रश्न का उत्तर और विस्तृत विवरण- अन्य संभावित मामले।
- आगामी एनईईटी परीक्षा के लिए अपेक्षित प्रश्न।
- प्रयास और सटीकता विश्लेषण।


अर्थव्यवस्था तथा कोविड-19 के प्रभाव का मुकाबले के लिए किया कामः साहनी

सीआईआई नार्थ रीजन के चेयरमैन द्वारा वर्ष 2020-21 के लिए थीम का अनावरण
अर्थव्यवस्था तथा कोविड-19 के प्रभाव का मुकाबले के लिए किया कामः साहनी



संवाददाता
देहरादून। सीआईआई नार्थ रीजन के चेयरमैन निखिल साहनी ने एक वर्चूअल प्रेस कान्प्रफेंस के दौरान मीडिया से बातचीत करते हुए वर्ष 2020-21 के लिए उत्तरी क्षेत्र में सीआईआई के एजेंडा और फोकस क्षेत्रों को साझा किया। साहनी ने कहा कि सीआईआई ने अपने व्यापक नेटवर्क के माध्यम से राज्य और आंचलिक कार्यालयों और देश भर में 9 सेंटर आफ एक्सीलेंस सीओई में बड़े पैमाने पर अर्थव्यवस्था तथा देश पर कोविड-19 के प्रभाव का मुकाबला करने के लिए हितधारकों के साथ बड़े पैमाने पर काम किया है।
उन्होंने कहा कि नीतिगत वकालत, व्यवसायों के लिए समर्थन सेवाओं और नीतिगत घोषणाओं पर वास्तविक समय पर अपडेट प्रदान करना और केंद्र और राज्य सरकारों के साथ काम करने के लिए स्वास्थ्य आपातकाल पर अगले कदमों के इनपुट प्रदान करके सूचना सेवाओं पर हमारा सहयोग है। इस दौरान उन्होंने सीआईआई नार्थ रीजन फार 2020-21 ऐज बिल्डिंग इंडिया फार न्यू वर्ल्डः लाइवस, लाइवलीहुड, ग्रोथ-ए क्लेबोरेटिव नार्थ थीम का अनावरण किया। 
साहनी ने कहा कि प्रवासी मजदूरों की दुर्दशा, जिनमें से अधिकांश कैजुअल सेक्टर में काम करते हैं, किसी पर भी नहीं पड़ा है। इसलिए भारत के पुनर्निर्माण का एक महत्वपूर्ण आयाम नौकरियों और आजीविका की रक्षा करके कोविड-19 की भारी मानव लागत को कम करना होगा। ग्रामीण अर्थव्यवस्था में नीतिगत कार्रवाई से इसकी तारीफ करनी होगी जो सबसे बड़ा नियोजक है। 



उन्होंने कहा कि ग्रामीण डिजिटल कार्यक्रमों और मंच को मजबूत करने के साथ ग्रामीण स्वास्थ्य और बुनियादी ढांचे में निवेश एक मजबूत ग्रामीण पारिस्थितिकी तंत्र के लिए मार्ग प्रशस्त कर सकता है। राज्य सरकारों के साथ उद्योगों को ग्रामीण क्षेत्रों में सुविधाएं स्थापित करने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है, जो बदले में रोजगार पैदा करेगा और जीडीपी में ग्रामीण क्षेत्र की हिस्सेदारी को मजबूत करेगा। सरकार आर्थिक रूप से विवश है, लेकिन अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहन प्रदान करने का प्रयास कर रही है। उदाहरण के लिए एमएसएमई को 100 फीसदी क्रेडिट गारंटी के रूप में और विभिन्न अन्य उपाय जो कि सराहनीय हैं। उन्होंने कहा कि भविष्य में ऐसे और उपायों की जरूरत होगी, लेकिन इसके साथ ही राजकोषीय खर्च और वित्तीय स्थिरता के बीच संतुलन सुनिश्चित करना होगा। उन्होंने सुझाव दिया कि राज्य सरकारों को राज्य के कुछ सार्वजनिक उपक्रमों में विनिवेश करके राजकोषीय को कवर करने के लिए संसाधन जुटाने चाहिए।
उन्होंने कहा कि लंबे समय तक लाकडाउन ने विकास को भारी झटका दिया है। कोविड-19 ने विश्व की यथास्थिति को बदल दिया है और हमें कोविड के बाद जीवन से जुड़ी चुनौतियों पर विचार करते हुए विकास, जीवन और आजीविका के प्रबंधन के लिए अपनी ऊर्जाओं पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है। उन्हें विश्वास था कि भारतीय उद्योग इस संकट को दूर करने में देश की मदद करेगा। 
उन्होंने कहा कि उद्योग को अपने विक्रेताओं के साथ काम करना होगा, खासकर एसएसएमई के साथ यह सुनिश्चित करने के लिए कि प्रगति मूल्य श्रृंखला में है। इसलिए समावेशी और सतत विकास को वापस लाने में सरकार के साथ उद्योग की प्रमुख भूमिका है। सीआईआई अपनी डी-रिस्किंग स्ट्रेटीजी रके हिस्से के रूप में चीन से बाहर अपने विनिर्माण कार्यों को स्थानांतरित करने के इच्छुक कंपनियों को प्रोत्साहन और सुविधा प्रदान करने के लिए सरकार के साथ मिलकर काम करेगा। सीआईआई उत्तरी क्षेत्र ने भी क्षेत्र में सभी राज्य सरकारों को अपने जीएसडीपी के 10 फीसदी को आर्थिक पुनरुत्थान के लिए एक बिग पुश देने के लिए पैकेज के रूप में खर्च करने की सिफारिश की है।


चीन का अहंकार सिर चढ़कर बोल रहा

चीन का अहंकार सिर चढ़कर बोल रहा



भारतीय राष्ट्रवादियों को चीनी उत्पादों का बहिष्कार बंद करना चाहिएः ग्लोबल टाइम्स
प0नि0ब्यूरो
देहरादून। चीन के सरकारी मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स ने एक बार फिर चीनी अहंकार को उजागर करते हुए अपने संपादकीय में लिखा है कि सीमा पर चीनी और भारतीय सैनिकों के बीच एक गंभीर झड़प के बाद भारतीय जनता राष्ट्रवाद के लिए संघर्ष कर रही है। चीनी उत्पादों का बहिष्कार सबसे प्रमुख नारा है। भारतीय क्रिकेटर हरभजन सिंह ने ट्वीट कर लोगों से सभी चीनी उत्पादों पर प्रतिबंध लगाने का आह्वान किया। सेवानिवृत्त भारतीय सेना प्रमुख रंजीत सिंह ने लोगों को चीनी सामान बाहर फेंकने के लिए कहा कि हम आर्थिक रूप से चीन की रीढ़ तोड़ सकते हैं।
ग्लोबल टाइम्स ने लिखा कि भारत कथित रूप से उच्च व्यापार बाधाओं को लागू करने और चीन और अन्य जगहों से लगभग 300 उत्पादों पर आयात शुल्क बढ़ाने और देश के 4 जी नेटवर्क उन्नयन में चीनी उपकरणों को बदलने के लिए भारतीय उत्पादों का उपयोग करने की योजना बना रहा है। ये भारत की दीर्घकालिक योजनाएं हो सकती हैं, लेकिन कुछ मीडिया ने इन योजनाओं का उपयोग भारतीय समाज की चीन विरोधी भावना को रोकने के लिए किया है।
उसका प्रपंच है कि सीमा विवाद में भारत अनुचित था। भारतीय सेना ने दो मिलिट्री कमांडर-स्तरीय वार्ता के दौरान पहुंची गलवान घाटी क्षेत्र को स्थिर करने के चीन-भारत की सहमति का उल्लंघन किया। उन्होंने वास्तविक रूप से वास्तविक नियंत्राण रेखा को पार किया और चीनी सैनिकों के टेंट को जबरन ध्वस्त कर दिया। इसके कारण मुठभेड़ हुई और भारत को कई सैनिक हताहत हुए।
ग्लोबल टाइम्स शेखी बघारते हुए कहता है कि घटना के बाद भारतीय अधिकारी आम तौर पर कम महत्वपूर्ण रहे हैं। भारतीय सैनिकों ने करार का उल्लंघन किया और फिर 17 भारतीय सैनिकों की मौत हो गई क्योंकि वे घायल होने के बाद उच्च ऊंचाई पर थे। इन तथ्यों के आधार पर भारत के पास चीन विरोधी गोलबंदी करने के नैतिक आधार का अभाव है। लेकिन यहां पर चीन ने नहीं बताया कि उक्त मुठभेड़ में उसका कितना नुकसान हुआ।
चीन हमारे अंदरूनी अलगाव को अच्छे से समझता है इसलिए उसने उसको हवा देते हुए कहा कि भारत की चरम राष्ट्रवादी ताकतें अपनी भावनाओं को हवा देने के लिए सबसे सस्ते नारे चीनी उत्पादों का बहिष्कार कर रही हैं। वास्तव में भारत की कट्टररपंथी ताकतें हर साल चीनी उत्पादों के बहिष्कार का आह्वान करती रही हैं, लेकिन चीन-भारत व्यापार का विस्तार होता रहा है। भारत चीन से अधिक से अधिक वस्तुओं का आयात कर रहा है, जिसके कारण भारत को हर साल चीन के साथ अरबों के व्यापार घाटे का सामना करना पड़ता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि भारत में कई चीनी उत्पादों का उत्पादन नहीं किया जा सकता है और भारत पश्चिम से इन उत्पादों को सस्ते में नहीं खरीद सकता। उदाहरण के लिए चीन को दोष देने वाले कई भारतीय चीनी मोबाइल फोन का उपयोग कर रहे हैं। चीनी लैंप, चीनी मिट्टी की चीजें और सूटकेस भारतीय उपभोक्ताओं की पहली पसंद है। उसने चुनौती देते हुए कहा है कि कम कीमतों और अच्छी गुणवत्ता के साथ इन उत्पादों को प्रतिस्थापित करना मुश्किल है।
ग्लोबल टाइम्स ने दंभ भरा कि चीन की जीडीपी भारत से लगभग पांच गुना है। इस तरह के अंतर के साथ एक छोटी अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़ी मंजूरी देना आसान कैसे हो सकता है? भारत चीन के प्रति अमेरिका के रवैये की नकल नहीं कर सकता। चीन के खिलापफ व्यापार युद्व छेड़ने पर भारत को अधिक नुकसान होगा और भारतीय लोगों की आजीविका, जिसका समर्थन चीनी उत्पादों ने किया है, इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा। लेकिन अगर भारत सीमा के मुद्दे पर राष्ट्रवादी भावना को खुश करने के लिए द्विपक्षीय सहयोग को बर्बाद कर देता है, तो यह खुद को चोट पहुंचाएगा।
उसका कहना है कि चीन ने भारत को मजबूर नहीं किया है, न ही चीन ने राजनीतिक लाभ हासिल करने के लिए भारत की कठिनाइयों का उपयोग किया है। भारत की वर्तमान कोविड-19 महामारी की स्थिति विकट है और देश आर्थिक रूप से नाजुक है। उम्मीद है कि चीन-भारतीय सीमा विवादों के शांतिपूर्ण नियंत्रण पर विनाशकारी दबाव को जोड़ने या गलवन घाटी क्षेत्र में स्थिति को स्थिर करने के लिए भारतीयों को संयम के बिना दुःख के लिए उकसाने के बजाय तर्कसंगत रह सकते हैं।
ग्लोबल टाइम्स ने कुटिल तरीके से चीन को पीड़ित बताने की कोशिश करते हुए कहा कि कुछ भारतीय राजनीतिक बलों और जनमत को अपने सैनिकों को सीमा पर उत्तेजक कार्रवाई करने के लिए उकसाना बंद करना चाहिए। कृपया भारतीय सैनिकों को बताएं कि एक शांतिपूर्ण एलएसी वह जगह है जहां भारत के वास्तविक हित हैं। बहादुर होने के अलावा सैनिकों को राजनीतिक रूप से स्पष्ट नेतृत्व वाला होना चाहिए और उनकी व्यापक दृष्टि होनी चाहिए।


शुक्रवार, 19 जून 2020

चीनी इशारे पर नेपाल की भारत विरोधी हरकत!

नेपाल में कई दशकों से भारत विरोधी गतिविधियां संचालित
चीनी इशारे पर नेपाल की भारत विरोधी हरकत!



प0नि0ब्यूरो
देहरादून। हमारे पड़ोसियों को भारत के खिलाफ इस्तेमाल करना चीन का पुराना दांव है। श्रीलंका, मालद्वीव हो चाहे वो नेपाल या पाकिस्तान, उसने हमेशा इनको हमारे खिलाफ इस्तेमाल करने की कोशिश की है। नेपाल का नक्शे संबंधी विवाद को भारत के खिलाफ हवा दिया जाना भी इसी रणनीति का हिस्सा है। नेपाल के प्रधनमंत्री खड्ग प्रसाद शर्मा ओली को चीन ने भारत के खिलाफ इस्तेमाल करने की कोशिश की है। 
नेपाल के प्रधानमंत्री केपी ओली ने नेपाल के नए नक्शों संबंधी विवाद खड़ा कर लिम्पियाधुरा, लिपुलेख और कालापानी को अपनी सीमा में दिखाने संबंधी चाल चल दी। इससे पहले ओली ने अपने बयानों के जरिए भारत विरोध में जहर उगलना जारी रखा था। ओली ने कहा था कि चीन से आए वायरस की तुलना में भारतीय वायरस ज्यादा खतरनाक है।
लेकिन क्या यह सब महज औली के सत्तासीन होने के बाद हुआ? जो ऐसा सोचते है वो भारी मुगालते में है। नेपाल में दशकों से भारत विरोधी हरकतें संचालित होती रही है। नेपाल में वामपंथियों के प्रभाव में आने से पहले ही भारत विरोधी गतिविध्यिां जारी थीं। जब पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमति इंदिरा गांधी की हत्या कर दी गई तो काठमांडू में खलिस्तान समर्थकों ने खुलेआम जश्न मनाया। उनको तब नेपाल के तत्कालीन राजशाही का संरक्षण मिलता रहा। 
भले ही तत्कालीन नेपाल नरेश को सज्जन एवं भारत का हितैषी समझा जाता रहा हो लेकिन नेपाल में भारत विरोधी लहर को हवा देने वालों में वे अग्रणीय थे। उसके बाद वामपंथियों ने भारत विरोध का नेपाल में झंड़ा उठा लिया। नेपाल में भारत विरोध में आवाज बुलंद करना ही उनका एकमात्र एजेंड़ा रहा। वैसे भी बहुत से रक्षा विशेषज्ञ मानते है कि यदि नेपाल की सीमा को सील कर वीजा और पासपोर्ट सिस्टम लागू कर दिया जाये तो देश में बाहर से आने वाली नकली करेंसी, नशे का सामान और आतंकियों की आमद रूक सकती है। 
आज के हालात को देखते हुए हमें जो किया जाना चाहिये था, वह नेपाल सरकार कर रही है। सीमा पर सघन जांच और सीमावर्ती इलाकों पर बारीक नजर आज नेपाल की फौज रख रही है। जबकि यह हमें करना चाहिये था क्योंकि वहां से तमाम जरायम प्रवृति के लोग और काला कारोबार आज संचालित होता है। नेपाल के लाखों लोग भारत में निवास करते है और करोड़ों की संख्या में लोग रोजगार करने आते है, उसके बाद भी नेपाल द्वारा भारत विरोधी एजेंड़े को हवा दिया जाना असहनीय है।  
भले ही यह सब वहां चीन के इशारे पर हो रहा हो लेकिन इस तथ्य के आधर पर इस काम के लिए माफी नहीं हो सकती है। एक वरिष्ठ भाजपाई नेता संभवतया सही कह रहें है कि भारत नेपाल के रिश्तों को रिसेट किए जाने की जरूरत है। आज के वैश्विक हालातों को देखते हुए भारत को नेपाल के साथ कड़ाई के साथ पेश आना ही चाहिए। साथ ही अब वक्त आ गया है कि नेपाल के साथ नये नजरिये के साथ पेश आया जाये और दोनों देशा के बीच आवागमन को बिना पासपोर्ट एवं वीजा के बंद किया जाये। 
क्या यह कहीं संभव है कि कोई अपने ही खिलाफत करने वालों को संरक्षित करता है? जी हां, यह भारत कर रहा है। दशकों से हमारे देश की खुफिया एजेंसियां सोई हुई है। हमारे लोग सच को देखना नहीं चाहते या जानबूझ कर नजरअंदाज कर रहें है। वरना ऐसी क्या मजबूरी है कि लगातार भारत विरोधी मूवमेंट चलाने वाले देश के नागरिक बेरोकटोक आते जाते है। खासकर नेपाल भले ही हमारे मुकाबले छोटा सा देश हो परन्तु नक्शे के विवाद के जरिए उसने बड़ी हिमाकत की है। जिसके लिए उसे कड़ा संदेश दिया जाना जरूरी है। 
इसके अलावा पुराने संबंधों को एक तरफ रखकर भारत को नेपाल के साथ नये तरीके से ट्रीट करना चाहिये। सेना में नेपाली नागरिकों की इंट्री समाप्त हो और पासपोर्ट या वर्क परमिट जैसे प्रावधान किए जाये ताकि हमारे नागरिकों की सुविधा का लाभ उठाकर हमारे खिलाफ सुर उठाने वालों को सबक मिले कि ऐसा करने पर वे दंड़ के भागी बन सकते है।


चीनी मीडिया ने उड़ाया भारतीयों के बायकाट चाइना का मजाक

चीनी मीडिया ने उड़ाया भारतीयों के बायकाट चाइना का मजाक



किया दावाः भारत में पटे पड़े हैं ‘मेड इन चाइना’ उत्पाद
प0नि0ब्यूरो
देहरादून। रेडियो चीन ने अपने वेबसाइट में भारतीयों के बायकाट चाइना का मजाक उड़ाते हुए दावा किया है कि ऐसा करना मुमकिन नही क्योंकि मेड इन चाहना के उत्पाद भारत में अटे पड़े है। 
रेडियो चाइना ने लिखा है कि आजकल भारत में चीन का बहिष्कार मुहिम फिर से तेज होने लगी है। ट्वीटर पर एक वीडियो वायरल हो गया है, इसमें एक भारतीय पुरुष चीन निर्मित टीवी सेट को ऊपर से फेंक रहा है। नीचे कई लोगों ने उसे एक साथ तोड़ा। वहीं एक टोपी पर भारतीय लोगों का ध्यान आकर्षित हुआ। टोपी पर बायकॉट चाइना लिखा हुआ है, लेकिन उसके लेबल पर लिखा हुआ है मेड इन चाइना। चीनी उत्पादों के खिलाफ आवाज उठाने के चलते अधिकाधिक भारतीय लोगों को पता नहीं है कि उनके जीवन के इर्द-गिर्द जो भी वस्तुएं हैं, वे सब की सब मेड इन चाइना हैं।
रेडियो चाइना के अनुसार वास्तव में आज भारत में चीनी उत्पाद न सिर्फ टीवी सेट और सेल फोन हैं बल्कि बर्तन, फर्नीचर, पंखा, एयर कंडीशनर, पेटीएम जैसे डिजिटल वॉलेट सब मेड इन चाइना से संबंधित हैं। थिंक टैंक गेटवे हाउस के शोध के अनुसार चीनी निवेशकों ने भारत की स्टार्ट-अप कंपनियों में करीब 4 अरब अमेरिकी डॉलर की पूंजी लगाई है। पिछले 5 सालों में भारत के 30 यूनिकॉर्न कंपनियों में 18 को चीन के निवेश मिल चुके हैं। इन कंपनियों की सेवा खान-पान, रहन-सहन आदि आवश्यकताओं और शिक्षा व मनोरंजन आदि व्यवसायों से जुड़े हैं, जिनका भारतीय लोगों के जीवन से घनिष्ठ नाता है।
उसका कहना है कि मीडिया रिपोर्ट के अनुसार भारत सरकार ने हाल में बीएसएनएल और एमटीएनएल आदि दूरसंचार कंपनियों और इसके अधीनस्थ कंपनियों से चीनी उत्पादों का इस्तेमाल न करने का आग्रह किया। भारतीय दूरसंचार विभाग चीन द्वारा निर्मित उपकरण पर निर्भरता कम करने पर विचार कर रहा है। लेकिन भारत के दो सबसे बड़ी दूरसंचार कंपनियां एयरटेल और वोडाफोन अब चीन के हुआवेई और जेडटीई के उपकरणों का प्रयोग करती हैं। कुछ विश्लेषकों का मानना है कि अगर भारत चीनी कंपनियों पर प्रतिबंध लगाता है, तो भारत में 5जी तकनीक का प्रयोग देर से होगा और उपभोक्ताओं के लिए 5जी के प्रयोग की लागत में 15 से 20 प्रतिशत की बढ़ोतरी होगी। यह भारतीय लोगों के लिए लाभदायक नहीं है।
वहीं वह घुडकी देकर  कह रहा है कि चीन और भारत का लाभ पहले से ही वैश्विकरण की प्रक्रिया में घनिष्ठ रूप से जुड़ा हुआ है। जैसा कि एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत को किया गया निर्यात चीन के कुल निर्यात का केवल 2 प्रतिशत है। चाहे भारत चीन से आयातित सभी वस्तुओं पर प्रतिबंध लगा ले, चीन पर बड़ा प्रभाव नहीं पड़ेगा। इसलिए चीन का बहिष्कार से भारतीय लोगों के लिए कोई लाभ नहीं मिलेगा।
लेकिन इतना तो तय है कि चीन और उसकी मीडिया कुछ भी कहे लेकिन भारत में गलवन कांड के बाद जो रोष दिखाई दे रहा है, वह अब चीनी अर्थव्यवस्था के लिए गहरी चोट साबित होने वाला है। संभव है कि चीनी उत्पाद का पूर्णतया बहिष्कार संभव न हो लेकिन जितना भी नुकसान चीन को पहुंचेगा वह उसकी अर्थव्यवस्था के ताबूत में कील ठोकने के समान होगा। इसके अलावा लोगों को उन स्टार्टअपों का भी बायकाट करना होगा जिनमें चीनी लोगों का पैसा लगा है। मसलन पेटीएम और वह सभी जो चीनी उत्पादों का प्रयोग कर रही है। और नंबर आईपीएल जैसे आयोजनों का भी लगाना चाहिये जो वीवो के पैसे के आगे नतमस्तक हो रखा है। 


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