सोमवार, 2 सितंबर 2019

सेना की यूनिफार्म में बदलाव की कवायदः वक्त के हिसाब से जरूरत 

सेना की यूनिफार्म में बदलाव की कवायदः वक्त के हिसाब से जरूरत 



प0नि0 संवाददाता
देहरादून। खबरों के मुताबिक सेना में यूनिफार्म में बदलाव की प्रक्रिया शुरू हुई है। जिसके अनुसार कहा जा रहा है कि बिग्रेडियर और उससे ऊपर रैंक के अधिकारियों की यूनिफार्म एक जैसी होगी ताकि उसमें लगे बैज, बेल्ट, बेल्ट बकल या कैप से उनकी रेजिमेंट या सर्विस का पता ना चले। 
हालांकि इन बदलावों के अमल में आने में अभी वक्त है लेकिन इस प्रक्रिया की शुरुआत के साथ ही सैन्य हल्कों में एक बहस शुरू हो गई है। यहां पर बता दें कि एक आर्मी आफिसर को आठ तरह की ड्रेस मेंटेन रखनी पड़ती है- समर और विंटर की रेगुलर ड्रेस, समर की सेरिमोनियल ड्रेस, विंटर की सेरिमोनियल ड्रेस, मेस की तीन अलग-अलग तरह की ड्रेस और काम्बैट ड्रेस। यह ब्रिटिशकाल से चला आ रहा है। 
आर्मी में ड्रेस की संख्या कम करने की जरूरत का जिक्र लंबे समय से होता रहा है। इस तरह के सुझाव भी अधिकारियों की तरफ से ही आते रहे हैं कि एक आफिस ड्रेस, एक सेरिमोनियल और एक काम्बैट ड्रेस होने से ड्रेस का बोझ कम होगा। जरूरत है तो सेरिमोनियल ड्रेस को मेस ड्रेस के तौर पर इस्तेमाल कर सकते हैं।
सवाल वर्दी में इस्तेमाल कपड़ों का भी है। गर्मियों की रेगुलर ड्रेस और सेरिमोनियल ड्रेस में शर्ट और पैंट दोनों टेरिकोट की हैं जो गर्मियों में असुविधाजनक हो जाती हैं। विंटर रेगुलर ड्रेस में जर्सी के साथ अंगोला शर्ट भी आरामदायक नहीं है। काम्बैट ड्रेस सबसे ज्यादा सुविधाजनक होनी चाहिए लेकिन सेना की काम्बैट ड्रेस में शर्ट अंदर करके फिर बाहर से बेल्ट लगाई जाती है जो असुविधाजनक है। किसी भी विकसित देश की आर्मी में काम्बैट ड्रेस इतनी असुविधाजनक नहीं है।
यूनिफार्म का मतलब है यूनिफार्मिटी लेकिन आर्मी में कंधे पर लगे स्टार और बेल्ट तक रेजिमेंट के हिसाब से अलग-अलग होते हैं। जैक राइफल और गोरखा राइफल के आफिसर ब्लैक स्टार लगाते हैं जबकि पंजाब रेजिमेंट व सिख रेजिमेंट के गोल्डन स्टार और असम रेजिमेंट के सिल्वर स्टार। बेल्ट का कलर भी अलग-अलग है। इंफेंट्री पैदल सेना आफिसर ब्लैक बेल्ट पहनते हैं तो आर्म्ड आफिसर ब्राउन बेल्ट। कैप का रंग भी आर्म्ड का ब्लैक, इंफेंट्री का ग्रीन और इंजीनियर्स का ब्लू है।
बदलाव की एक बड़ी वजह यह बताई जा रही है कि इससे सेना के अधिकारी किसी एक रेजिमेंट के अधिकारी न लगकर भारतीय सेना के अधिकारी लगेंगे। स्वाभाविक रूप से बहस ने इस सवाल को भी अपनी जद में ले लिया है कि आर्मी का रेजिमेंटल सिस्टम फायदा दे रहा है या इसके नुकसान हैं। आर्मी में पलटन की इज्जत सबसे ऊपर मानी जाती है। किसी भी फौजी से बात कर लीजिए वह पलटन की इज्जत को सबसे ज्यादा अहमियत देता दिखेगा। 
साफ है कि पलटन की इज्जत फौजियों को जोश देती है। एक रेजिमेंट का अधिकारी अक्सर अपनी रेजिमेंट वालों को दूसरी रेजिमेंट वालों से ज्यादा अहमियत देता है। उम्मीद सुधर की प्रक्रिया यूनिफार्म के बदलाव तक सीमित न रहकर अन्य जरूरी उपाय भी इसके साथ-साथ चलते रहेंगे।


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