बुधवार, 11 सितंबर 2019

श्राद्व के 16 दिनों में विशेष पूजा कर पूर्वजों के प्रति श्रद्धा प्रकट करने का अवसर

श्राद्व के 16 दिनों में विशेष पूजा कर पूर्वजों के प्रति श्रद्धा प्रकट करने का अवसर



पं0 चैतराम भट्ट
देहरादून। पुराणों के अनुसार मृत्यु के बाद भी जीव की पवित्र आत्माएं किसी न किसी रूप में श्राद्ध पक्ष में अपनी परिजनों को आशीर्वाद देने के लिए धरती पर आती हैं। पितरों के परिजन उनका तर्पण कर उन्हें तृप्त करते हैं। भाद्रपद पूर्णिमा से आश्विन माह की अमावस्या तक 16 दिन की विशेष अवधि में श्राद्ध कर्म किए जाते हैं। श्राद्ध को पितृपक्ष नाम से भी जाना जाता है। इस बार 13 सितंबर से श्राद्ध पक्ष शुरू हो रहे हैं, जो कि 28 सितंबर को सर्वपितृ अमावस्या के साथ समाप्त होंगे।
इस बार पितृपक्ष में तिथि क्षय और तिथि वृद्धि भी हो रही है। इस बार पितृपक्ष में पंचांग में तिथियों की गणना के अनुसार पूर्णिमा का श्राद्ध 13 सितंबर को और प्रतिपदा का श्राद्ध 14 तारीख को किया जाना चाहिए। वहीं द्वितिया तिथि का श्राद्ध दो दिन यानी 15 और 16 तारीख को किया जा सकता है। इसके साथ ही एकादशी और द्वादशी का श्राद्ध एक ही दिन यानी 25 सितंबर को होगा। इसी गणना के अनुसार 26 सितंबर को त्रयोदशी का श्राद्ध करना चाहिए। इसके बाद चतुर्दशी और अमावस्या का श्राद्ध क्रमश: 27 और 28 सितंबर को किया जा सकता है।
श्राद्ध का अर्थ है, अपने पितरों के प्रति श्रद्धा प्रकट करना। शास्त्रों के अनुसार जिस किसी के परिजन अपने शरीर को छोड़कर चले गए हैं, उनकी तृप्ति और उन्नति के लिए श्रद्धा के साथ जो शुभ संकल्प और तर्पण किया जाता, उसे श्राद्ध कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि मृत्यु के देवता यमराज श्राद्ध पक्ष में जीव को मुक्त कर देते हैं, ताकि वे स्वजनों के यहां जाकर तर्पण ग्रहण कर सकें।
जिस किसी के परिजन चाहे वह विवाहित हों या अविवाहित, बच्चा हो या बुजुर्ग, स्त्री हो या पुरुष उनकी मृत्यु हो चुकी है उन्हें पितर कहा जाता है। पितृपक्ष में मृत्युलोक से पितर पृथ्वी पर आते हैं और आशीर्वाद देते हैं। पितृपक्ष में पितरों की आत्मा की शांति के लिए उनको तर्पण किया जाता है। पितरों के प्रसन्न होने पर घर पर सुख शांति आती है।
श्राद्ध वाले दिन अल सुबह उठकर स्नान-ध्यान करने के बाद पितृ स्थान को सबसे पहले शुद्ध कर लें। इसके बाद पंडित जी को बुलाकर पूजा और तर्पण करें। इसके बाद पितरों के लिए बनाए गए भोजन के चार ग्रास निकालें और उसमें से एक हिस्सा गाय, एक कुत्ते, एक कौए और एक अतिथि के लिए रख दें। गाय, कुत्ते और कौए को भोजन देने के बाद ब्राह्मण को भोजन कराएं। भोजन कराने के बाद ब्राह्मण को वस्त्र और दक्षिणा दें।
पितृपक्ष में पूर्वजों का स्मरण और उनकी पूजा करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है। जिस तिथि पर हमारे परिजनों की मृत्यु होती है उसे श्राद्ध की तिथि कहते हैं। बहुत से लोगों को अपने परिजनों की मृत्यु की तिथि याद नहीं रहती ऐसी स्थिति में शास्त्रों में इसका भी निवारण बताया गया है। शास्त्रों के अनुसार यदि किसी को अपने पितरों के देहावसान की तिथि मालूम नहीं है तो ऐसी स्थिति में आश्विन अमावस्या को तर्पण किया जा सकता है।
किस दिन किसका श्राद्ध
1. पंचमी श्राद्ध - जिनकी मृत्यु पंचमी तिथि को हुई हो या जिनकी मृत्यु अविवाहित स्थिति में हुई है उनके लिए पंचमी तिथि का श्राद्ध किया जाता है।
2. नवमी श्राद्ध - इसे मातृनवमी के नाम से भी जाना जाता है। इस तिथि पर श्राद्ध करने से कुल की सभी दिवंगत महिलाओं का श्राद्ध हो जाता है।3. चतुर्दशी श्राद्ध - इस तिथि उन परिजनों का श्राद्ध किया जाता है जिनकी अकाल मृत्यु हुई हो जैसे कि दुर्घटना से, हत्या, आत्महत्या, शस्त्र के द्वारा आदि।4. सर्वपितृ अमावस्या - जिन लोगों के मृत्यु के दिन की सही-सही जानकारी न हो, उनका श्राद्ध आमावस्या को किया जाता है।


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