रविवार, 22 दिसंबर 2019

शरणार्थी और घुसपैठियों का अंतर

एनआरसी और सीएबी में फर्क करना नही आता या करना नही चाहते!
शरणार्थी और घुसपैठियों का अंतर



प0नि0ब्यूरो
देहरादून। पूरे देश में एनआरसी और सीएबी को लेकर विपक्ष ने बवाल काट रखा है। एक समुदाय विशेष को वह बरगलाने में भी एक हद तक कामयाब हुआ है। उसकी इस कामयाबी के लिए सरकार को अवश्य दोषी करार दिया जा सकता है कि वह जनता के बीच इन दोनों बातों को स्पष्टता से समझा नही पायी। लेकिन आलोचकों की मंशा को लेकर भी सवाल है कि यह तथाकथित स्वयंभू बुद्विजीवी एनआरसी और सीएबी के फर्क को नही जानते या फर्क करना नही चाहते। 
हालांकि एनआरसी को लेकर लोगों में पर्याप्त संदेह है। इसका वाजिब कारण भी है। असम में जिस तरह से लोगों को अपनी नागरिकता सिद्व करने के लिए मशक्कत करनी पड़ी, वह कमी दूर की जानी चाहिये। ताकि लोगों की शंका का समाधान हो। अब सीएबी को जिस तरह से विपक्ष ने हिन्दू मुसलमान बना दिया, यहां भी सरकार को चाहिये कि वह सही बात को पुख्ता तरीके से जनता के बीच रखे। ऐसा लगता है कि मोदी सरकार बार बार आधी अधूरी तैयारी के साथ मैदान में उतरती है। जिसकी वजह से मैच के पहले हाफ में उसकी खासी किरकिरी होती है। बाद में भले ही जीत उसकी ही होती हो परन्तु चाहे सत्ता पक्ष हो या विपक्ष, उन्हें इस तरह लोगों की भावनाओं से खेलने की आजादी नही दी जा सकती।
यहां पर गौर करने की बात है कि पहले इस तरह के दस्तावेजों का रखरखाव करना हमारे देश के लोगों की आदत नही रही है। बहुत कम लोगों के पास पीढ़ी दर पीढ़ी के दस्तावेज उपलब्ध होंगे। ऐसे में नागरिकों और घुसपैठियों में फर्क करना मुश्किल काम है। वहीं हम केवल और केवल बांग्लादेशियों के पीछे पड़े हुए है जबकि हमारे पडोसी देशों जैसे श्रीलंका और नेपाल से भी बड़े पैमाने पर घुसपैठ होती रहती है। बेहतर जीवन जीने की ललक में यहां से भी भारी संख्या में लोग हमारे देश में आते है। आज के वैश्विक परिदृश्य को देखते हुए इन पर भी रोक जरूरी है।  
चूंकि हम अपने नागरिकों के लिए ही मूलभूत सुविधएं जुटाने में समर्थ नही है तो चाहे वो हिन्दू हो या मुसलमान, घुसपैठिये क्यों बर्दाश्त किए जायें? दूसरा तथ्य यह कि आज आतंकवाद और अपराधिक प्रवृति के विस्तार को देखते हुए, ऐसा करना घातक ही साबित होगा। वैसे भी नागरिकता का प्रमाणपत्र देना और उसके साक्ष्य जुटाना सरकार का काम होना चाहिये, न कि जनता का। अब समय आ गया है कि हमें अपने पडोसी देशों से मित्रता निभाने के लिए उनके नागरिकों को आवागमन की छूट देने की बजाय वीजा पासपोर्ट या वर्क परमिट की अनिवार्यता लागू करनी चाहिये। अब चाहे नागरिक बांग्लादेश के हो या नेपाल के। क्योंकि याद रखिये कि शरणार्थी और घुसपैठिये में अंतर है।


 


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