गुरुवार, 23 जनवरी 2020

हृदय रोग के उपचार में कैलाश अस्पताल ने रचा कीर्तिमान

हृदय रोग के उपचार में कैलाश अस्पताल ने रचा कीर्तिमान



कम वजन के नवजात शिशु से लेकर अधेड़ उम्र की महिला का किया सफलतम उपचार
प०नि० संवाददाता
देहरादून। कैलाश अस्पताल एवं हृदय रोग संस्थान में हृदय रोगियों के अलग-अलग मेडिकल केस में हुए सफल ऑपरेशनों ने ह्रदय रोग से बचाव की नई उम्मीद जगाई है। दोनों के केसों में चुनौती थी क्योंकि एक मामला नवजात शिशु का था जिसकी उम्र महज 4 महीने थी और वजन सामान्य से बहुत कम 3.5 किलोग्राम के करीब था। वहीं दूसरी मरीज करीब 50 वर्ष की महिला थी जिसके दिल में 20 मिलीमीटर का छेद था।



इस बारे में जानकारी देते हुए डा0 अखिलेश पांडे ने बताया कि 4 महीने की बच्ची निमोनिया की शिकायत के साथ अस्पताल में उपचार के लिए लाई गई। अस्पताल ने जब उस पर निगरानी रखते हुए इसको जांच की तो ज्ञात हुआ कि बच्ची के फेफड़ों एवं शरीर में खून ले जाने वाली नलिया आपस में जुड़ी हुई है। उन्होंने बताया कि ऐसे मामलों में जोखिम बहुत ज्यादा रहता है और ऑपरेशन की प्रक्रिया भी जटिल होती है।
ऐसे विकट हालात में कैलाश अस्पताल के विशेषज्ञों की पूरी टीम बच्ची का ऑपरेशन किया जो कामयाब रहा। इस दौरान शल्य चिकित्सकों ने बच्ची की दोनों नलियों के बीच पर्दा लगा दिया। ऑपरेशन के बाद बच्ची पूरी तरह स्वास्थ्य और उसे अस्पताल से छुट्टी दे दी गई है। वहीं दूसरे केस में एक अधेड़ उम्र की महिला जिसकी उम्र 50 वर्ष के करीब थी को अस्पताल लाया गया। उक्त महिला को सांस फूलने थकान और धड़कन तेज होने की शिकायत थी।
जब चिकित्सकों मैं उसका एक इकोकार्डियोग्राफी की तो खुलासा हुआ कि उसके दिल में 20 मिलीमीटर का छेद है। इस जांच के लिए 3डी इंडोस्कोपिक कार्डियोग्राफी तकनीकी मदद ली गई। इससे महिला के दिल में एक और 5 मिली मीटर छेद का पता चला।



इस केस की देखरेख करने वाले डॉक्टर राज प्रताप सिंह ने बताया कि गुरु इनमें 5 मिली मीटर के एक छोटे छेद के माध्यम से एक छतरीनुमा डिवाइस द्वारा उक्त 26 मिली मीटर के छेद को बंद कर दिया गया। उन्होंने बताया कि 3डी इमेजिंग डिवाइस के मार्गदर्शन में डिवाइस को दिल में दाखिल किया गया।
डॉक्टर राज प्रताप सिंह के मुताबिक इस पूरे ऑपरेशन में किसी भी सर्जरी या चीरे की जरूरत नहीं पड़ी, छेद भी तुरंत बंद हो गया। डा0 सिंह के मुताबिक रोगी को 12 घंटे के भीतर चलने फिरने की अनुमति प्रदान की गई और मात्र 1 दिन की निगरानी के बाद अस्पताल से छुट्टी दे दी गई।
उनका कहना था कि यह उपचार कम खर्चीला तो है ही, साथ ही इससे अस्पताल में भर्ती होने की अवधि कम होती है, शरीर में कोई निशान नहीं रहता। वही बीमारी और सर्जरी से कम समय में मरीज उबर जाता है यानी मरीज 1 हफ्ते के भीतर सामान्य जीवन को शुरू कर सकता है।
इस अवसर पर कैलाश अस्पताल एवं हृदय रोग संस्थान के निदेशक पवन शर्मा, अस्पताल के एमएस डा0 सतीश सिन्हा, डा0 एसपी गौतम, डा0 रोहित श्रीवास्तव एवं सहयोगी स्टाफ की टीम भी मौजूद रही।


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