गुरुवार, 9 जनवरी 2020

विधानसभा के समक्ष नहीं रखा गया मानवाधिकार आयोग का आठ सालों का लेखा जोखा

 विधानसभा के समक्ष नहीं रखा गया मानवाधिकार आयोग का आठ सालों का लेखा जोखा

धारा 28 में हर वर्ष राज्य मानवाधिकार आयोग का प्रतिवेदन सरकार को प्रस्तुत करने व विधानसभा के समक्ष रखने का है प्रावधान

संवाददाता

काशीपुर। प्रदेश में मानवाधिकार सरंक्षण के कितने भी दावे किये जाये लेकिन हकीकत कुछ ओर ही है। विभिन्न बार सूचना मांगने पर उत्तराखंड मानवाधिकार आयोग ने 2012 से 2018 तक 7 वर्षों की अलग-अलग रिपोर्ट के स्थान पर एक रिपोर्ट सरकार को उपलब्ध करा दी है लेकिन इसे एक साल से अधिक समय से सरकार दवाये बैठी है और कार्यवाही करके विधानसभा के समक्ष नहीं रख रही है और सूचना अधिकार के अन्तर्गत इसकी प्रति भी उपलब्ध नहीं करायी जा रही है। उत्तराखंड शासन के गृह विभाग के लोक सूचना अधिकारी द्वारा नदीम उद्दीन को उपलब्ध करायी गयी सूचना से यह खुलासा हुआ है।

काशीपुर निवासी सूचना अधिकार कार्यकर्ता नदीम उद्दीन ने उत्तराखंड मानव अधिकार आयोग के नोडल विभाग गृह विभाग से मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम 1993 के प्रावधानों के अन्तर्गत वार्षिक प्रतिवेदन तथा विशेष प्रतिवेदन सरकार को उपलब्ध कराने तथा उसे विधानसभा के समक्ष रखने की सूचना मांगी थी। गृह विभाग के लोक सूचना अधिकारी/अनुभाग अधिकारी धीरज कुमार ने अपने पत्रांक 195 द्वारा नदीम को सूचना उपलब्ध करायी है।

उपलब्ध सूचना के अनुसार उत्तराखंड मानव अधिकार आयोग ने अपने गठन की तिथि 19-07-2011 से दिनांक 16 अक्टूबर 2019 तक की अवधि में वर्ष वार वार्षिक रिपोर्ट एवं विशेष रिपोर्ट उत्तराखंड सरकार को प्रेषित नहीं की है। यद्यपि सात वर्षों की एक रिपोर्ट 2012-18 की प्रति 20 दिसम्बर 2018 को गृह विभाग को उपलब्ध करायी गयी है जिसे एक वर्ष से अधिक बीतने पर भी विधानसभा के समक्ष नहीं रखा गया है। 

गृह विभाग ने सूचना अधिकार के अन्तर्गत मानवाधिकार आयोग द्वारा 2012-18 की सात वर्ष की एक रिपोर्ट बनाकर प्रस्तुत करने की सूचना तो दी है लेकिन इसकी प्रति देने से इंकार कर दिया है। लोक सूचना अधिकारी ने अवगत कराया है कि उत्तराखंड राज्य मानव अधिकार आयोग की वार्षिक रिपोर्ट/विशेष रिपोर्ट को विधानसभा के पटल पर रखे जाने से पूर्व यथा प्रक्रिया मंत्रिमंडल की बैठक में रखा जाता है। आयोग की वार्षिक रिपोर्ट/विशेष रिपोर्ट की सुरक्षा एवं गोपनीयता के दृष्टिगत वर्तमान में इसकी सूचना दिया जाना संभव नहीं है।

नदीम द्वारा इसकी प्रथम अपील करने पर विभागीय अपीलीय अधिकारी/अपर सचिव उत्तराखंड शासन के विभागीय अधिकार/अपर सचिव गृह अतर सिंह ने भी अपने 05 दिसम्बर 2019 के निर्णय में सुरक्षा एवं गोपनीयता का बहाना करते हुये रिपोर्ट की प्रति उपलब्ध न कराने को सही माना।

नदीम ने बताया कि इससे स्पष्ट है जहां मानव अधिकार आयोग अपने कर्तव्यों की अनदेखी करके हर वर्ष समय से आयोग का लेखा-जोखा वार्षिक रिपोर्ट के रूप में नहीं दे रहा है, वही राज्य सरकार जो 2012-18 सात वर्ष की एक साथ रिपोर्ट दी गयी है उसे न तो सार्वजनिक कर रही है और न ही इस पर कार्यवाही करके विधानसभा के समक्ष ही रख रही है। यह प्रदेश में मानवाधिकार संरक्षण के लिये अच्छा संकेत नहीं है।

नदीम ने जानकारी दी कि मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम 1993 की धारा 28(1) के अन्तर्गत आयोग का यह कर्तव्य है कि प्रत्येक वर्ष के समाप्त होने के बाद पूरे वर्ष के लेखा-जोखा , उसे प्राप्त मानवाधिकार हनन की शिकायतों की जांच आदि तथा प्रदेश में मानवाधिकार संरक्षण के लिये अपनी संस्तुतियों का उल्लेख करते हुये वार्षिक रिपोर्ट राज्य सरकार को प्रेषित करें तथा आवश्यकता होने पर विशेष रिपोर्ट प्रस्तुत करे धारा 28(2) के अन्तर्गत इस रिपोर्ट को विधानसभा के पटल पर रखना राज्य सरकार का कर्तव्य है। इससे जहां आयोग की जवाबदेही तथा पारदर्शिता सुनिश्चित होती है, वहीं मानवाधिकार संरक्षण सुनिश्चित होता है।

 

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