सोमवार, 27 अप्रैल 2020

हाईकोर्ट के 50 और सुप्रीम कोर्ट के 33 फीसदी जज चंद घरानों के बेटे-भतीजे!

हाईकोर्ट के 50 और सुप्रीम कोर्ट के 33 फीसदी जज चंद घरानों के बेटे-भतीजे!



एक सर्वे में देश की ज्यूडिशरी के हाल उजागर होने का दावा
एजेंसी
नई दिल्ली। देश की सर्वाेच्च न्यायालय में 33 फीसदी जज और हाईकोर्ट के 50 फीसदी जज ऐसे हैं, जिनके परिवार के सदस्य पहले ही न्यायपालिका में उच्च पदों पर रह चुके हैं। यह बात सामने आई है मुंबई के एक वकील मैथ्यूज जे नेदुमपारा की रिसर्च में। दरअसल, नेदुमपारा वही वकील हैं, जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट में नेशनल ज्यूडिशियल अपॉइंटमेंट कमीशन (छश्र।ब्) एक्ट को चुनौती देते हुए याचिका लगाई है। उन्होंने अपनी यह रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की संवैधानिक पीठ को सौंपी है। नेदुमपारा के मुताबिक यह व्यवस्था कोलेजियम सिस्टम की वजह से पैदा हुई है, जिसमें जज ही दूसरे जजों को नियुक्त करते थे।
नेदुमपारा ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट के 1990 के कुछ फैसलों से कॉलेजियम सिस्टम बना, जिससे उच्च न्याय संस्थानों में नियुक्तियां मनमर्जी से होने लगीं, जहां सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्ट के पूर्व और सिटिंग जज, गवर्नर, मुख्यमंत्रियों, कानून मंत्री, बड़े वकील और रसूखदार लोगों का फेवर किया जाता है।
रिपोर्ट के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट में मौजूदा समय में 31 जज हैं। इनमें से 6 जज पूर्व जजों के बेटे हैं। रिपोर्ट में 13 हाईकोर्ट के 88 जजों की नियुक्तियों की जानकारी है, जो या तो किसी वकील, जज या न्यायपालिका से ही जुड़े किसी व्यक्ति के परिवारवाले हैं।
नेदुमपारा का दावा है कि उनकी जानकारी का स्रोत सुप्रीम कोर्ट की आधिकारिक वेबसाइट और 13 हाईकोर्ट के सितंबर-अक्टूबर 2014 तक के डेटा पर आधारित हैं। उन्होंने कहा कि बाकी हाईकोर्ट्स का तुलनात्मक डेटा मौजूद ही नहीं था।
उन्होंने कहा कि कॉलेजियम सिस्टम गुप्त तरीके से काम करता है, जहां उच्च न्यायापालिकाओं में खाली पदों का नोटिफिकेशन ही नहीं निकलता, न ही इनका एडवर्टाइजमेंट होता है। गौरतलब है सुप्रीम कोर्ट में बार एसोसिएशन की तरफ से पेश हुए वकील दुष्यंत दवे ने कॉलेजियम सिस्टम पर हमला करते हुए कहा था कि इसमें मेरिट को नजरअंदाज किया जाता है और ऐसे जज नियुक्त होते हैं, जो ऊंचे और बड़े लोगों को राहत देते हैं और आम आदमियों के मामलों में नाकाम होते हैं।


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