गुरुवार, 18 जून 2020

वह वजह जिसके लिए मंदिर अवश्य जाना चाहिए

लोग भक्ति, आस्था और इच्छापूर्ति के लिए जाते है लेकिन इनसे कई लाभ 



वह वजह जिसके लिए मंदिर अवश्य जाना चाहिए
प0नि0डेस्क
देहरादून। मंदिर अथार्त मन का दरवाजा। जहां मन को शांति की अनुभूति होती है और आध्यात्म का अहसास होता है। ऐसी जगह पर जाने के लिए वैसे तो किसी कारण या चमत्कार की जरूरत नही किन्तु कहा जाता है कि मानव अपने हर काम को किसी न किसी स्वार्थ के कारण ही करता है। 
मंदिर में स्थापित भगवान की मूर्ति आस्था और विश्वास का केंद्र होती है। मंदिर की वजह से मन में आस्था का विकास होता है और मंदिर ही धर्म का प्रतिनिधित्व करता है। जब भी हम किसी मंदिर के सामने से गुजरते है तो सिर अपने आप मंदिर के सामने झुक हो जाता है। लोग मंदिर में भगवान की भक्ति, आस्था और इच्छापूर्ति के लिए जाते है लेकिन मंदिर जाने के कई लाभ मिलते है। 
मंदिर मन का द्वार होता है। यह एक ऐसी जगह है जहां मन को सुख और शांति का आभास होता है। जहां अपने अंदर एक नयी शक्ति को अनुभव कर सकते है। जहां जाने से मन-मस्तिष्क प्रफुल्लित हो जाता है और आतंरिक सुख मिलता है। जहां जाने से पूरा शरीर उत्साह से और उमंग से भर जाता है। मंदिर में मंत्रों का उच्चारण होता रहता है तो मंत्रो का स्वर, घंटे-घड़ियाल, शंख और नगाडांे की ध्वनियां सुन कर मन को अच्छा लगता है।
मंदिर और मंदिर में होने वाली हर घटना के पीछे एक वैज्ञानिक कारण होता है। मंदिर का निर्माण भी वैज्ञानिक विधि के अनुसार किया जाता है। मंदिर का निर्माण पूरे वास्तुशिल्प के हिसाब से बनाया जाता है, जिससे मंदिर में हमेशा शांति और दिव्यता उत्पन्न होती रहे। मंदिर के गुम्बद के शिखर के केंद्र बिंदु के बिलकुल ठीक नीचे मूर्ति की स्थापना की जाती है। ऐसा ध्वनि सिद्वांत को ध्यान में रख कर किया जाता है। ताकि जब भी मंत्रोचारण किया जाये तो मंत्रों का स्वर और अन्य ध्वनियां गुम्बद में गूंजती रहे और वहां उपस्थित सभी लोग इससे प्रभावित हो सके।
मूर्ति का और गुम्बद का केंद्र एक ही होता है जिससे मूर्ति में निरंतर उर्जा प्रवाहित होती रहती है और हम जब मूर्ति के सामने शीश को झुकाते है, भगवान के चरणों को स्पर्श करते है और भगवान के सामने नतमस्तक होते है तो वो उर्जा हमारे शरीर में प्रवाहित हो जाती है। मंदिर से मन, शरीर और आत्मा को पवित्रता मिलती है जिसकी वजह से हम अंदर और बाहर से शुद्व होते है। मंदिर में बजने वाले शंख और घंटो की ध्वनियां वातावरण को शुद्व करती है।
हम जब मंदिर में जाते है तो घंटा बजा कर ही प्रवेश करना चाहिए। घंटा देव भूमि को जाग्रत करता है जिससे हमारी प्रार्थना सुनी जा सके। घंटे और घड़ियाल की ध्वनि दूर तक सुनाई देती है और मंदिर के आसपास के सारे वातावरण को शुद्व करती है। लोगांे को भी पता चल जाता है कि आगे मंदिर है। मंदिर में जिस देवता या भगवान की मूर्ति की स्थापना होती है। उनके प्रति हमारी आस्था और हमारा विश्वास होता है और जब भी हम उस मूर्ति के सामने नतमस्तक होते है तो हम अपने आप को एकाग्र  पाते है और हमारी यही एकाग्रता हमंे भगवान के साथ जोड़ती है और उस वक्त हम अपने भीतर भी ईश्वर की उपस्थिति को अनुभव करते है। 
हम मंदिर में स्थापित देवताओं के सामने नतमस्तक होते है जो एक योग का भी हिस्सा होता है। इससे शारीरिक, मानसिक तनाव से मुक्ति मिलती है साथ ही हमारा आलस दूर हो जाता है। मंदिर में एक प्रथा परिक्रमा की भी होती है जिसमें पैदल चलना पड़ता है। यह एक प्रकार का व्यायाम है। परिक्रमा नंगे पैरो से करनी होती है और एक शोध में पता चला है कि नंगे पैरो से मंदिर में जाने से पग तलों में एक्यूप्रेशर होता है। ये शरीर के कई अहम बिन्दुओं पर अनुकूल दबाव डालते है, जिससे स्वास्थ्य में लाभ मिलता है।
मंदिर को वैज्ञानिक शाला के रूप में बनाने के पीछे ऋषि-मुनियों का यही लक्ष्य था कि हम प्रतिदिन सुबह अपने कामांे पर जाने से पहले मंदिर जाकर सकारात्मक उर्जा को ले सके और शाम को जब हम अपने घर थक कर आते है तो उस वक्त भी हम मंदिरों से उर्जा को ले कर अपने कर्तव्यों का पालन कर सके।
मंदिर सिर्फ आस्था और हमारे विश्वास का ही केंद्र नही बल्कि मंदिर हमारी सोच, विचार, व्यवहार, कर्तव्यों, स्वाथ्य का भी केंद्र है। हमंे प्रतिदिन मंदिर जरुर जाना चाहिए ताकि मंदिर से होने वाले चमत्कारिक और आध्यत्मिक लाभों का पफायदा उठा पाए। 


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