रविवार, 19 जुलाई 2020

डा0 कफील खान की रिहाई के लिए वामपंथियों का देश भर में धरना-प्रदर्शन

डा0 कफील खान की रिहाई के लिए वामपंथियों का देश भर में धरना-प्रदर्शन



संवाददाता
लालकुआं। डा0 कफील खान को रिहाई के सवाल पर भाकपा (माले), आइसा, इनौस और ऐपवा के कार्यकर्ताओं ने बिहार, यूपी, उत्तराखंड, पंजाब सहित देश के विभिन्न भागों में प्रदर्शन किया। बैनर, पोस्टर के साथ सैकड़ों जगहों पर यह विरोध कार्यक्रम किया गया। डा0 कफील खान पर लगाए गए राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (रासूका) वापस लेने और उन्हें तत्काल रिहा करने की मांग की गई। उनका कहना है कि उत्तर प्रदेश की योगी सरकार द्वारा फर्जी मुकदमे लगाने के बाद तीसरी बार गोरखपुर के शिशु रोग विशेषज्ञ डा0 कफिल खान को जेल में डाला गया है।
भाकपा (माले) के पुरूषोत्तम शर्मा के अनुसार 2017 में गोरखपुर मेडिकल कालेज में लापरवाही के कारण आक्सीजन के अभाव में 60 से ज्यादा बच्चों की मौत हुई थी। डा0 कफिल ने इसके लिए सरकार की आलोचना की थी। इसी वजह से उनके पीछे उत्तर प्रदेश की योगी सरकार हाथ धोकर पड़ी हुई है। उनका कहना है कि आक्सीजन की कमी के लिए सरकार जिम्मेदार थी, लेकिन अगस्त 2017 में डा0 कफिल को ही बच्चों की मृत्यु के लिए जिम्मेदार ठहराकर उन्हें जेल भेज दिया गया।
उनका कहना है कि महीनों जेल में गुजारने के बाद आखिर वे जमानत पर बाहर आए और खुद सरकार द्वारा गठित जांच दल ने 2 साल बाद सितम्बर 2019 में उन्हें दोषमुक्त घोषित कर दिया। लेकिन जांच दल ने उन्हें योगी से माफी मांगने को कहा। डा0 कफिल ने माफी नहीं मांगी और वे योगी के निशाने पर आ गए।
शर्मा का कहना था कि 12 दिसम्बर 2019 को डा0 कफील ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में सीएए के खिलाफ आयोजित सभा को संबोधित किया था। उक्त सभा में उत्तेजक भाषण देने के झूठे आरोप में 29 जनवरी को उन्हें मुंबई हवाई अड्ढे से गिरफ्रतार कर जेल भेज दिया गया। 10 फरवरी को उन्हें इलाहाबाद हाई कोर्ट से जमानत मिल गई। लेकिन जेल से रिहा करने में जानबूझकर 3 दिन देर की गई। 13 फरवरी को कोर्ट ने उन्हें रिहा करने का आदेश फिर से जारी किया। लेकिन रिहाई की बजाय 14 फरवरी को उन पर 3 महीने के लिए रासुका लगा कर फिर डिटेन कर दिया गया। डिटेंशन की अवधि खत्म होने से पहले फिर 12 मई को रासुका की अवधि 3 महीने के लिए बढ़ा दी गई है।
उनके मुताबिक सरकार की नीतियों, फैसलों का विरोध करने के कारण डा0 कफिल पर रासुका लगाना नाजायज है। यह विरोध की आवाज दबाने का फांसीवादी कदम है। पूरा देश सरकार के रवैए की आलोचना कर रहा है और डा0 कफिल की रिहाई की मांग कर रहा है।
डा0 कफिल गोरखपुर के होने के कारण बिहार से सजीव रूप से जुड़े रहे हैं। जब चमकी बुखार से मुजफ्रफरपुर में हाहाकार मचा हुआ था, उन्होंने यहां कैम्प लगाकर बच्चों का मुफ्रत इलाज किया। विगत वर्ष की बाढ़ और पटना के जल जमाव के समय भी उन्होंने पटना सहित कई जगह लोगों का मुफ्रत इलाज किया। सीएए के खिलाफ चल रहे आंदोलन में भी उन्होंने भाग लिया। भाकपा (माले), आइसा, इनौस और ऐपवा के बैनर से डा0 कफिल की रिहाई के लिए आवाज उठाई गई।


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