शनिवार, 4 जुलाई 2020

पितृपक्ष के 1 महीने बाद नवरात्र

165 साल बाद आया ऐसा संयोग
पितृपक्ष के 1 महीने बाद नवरात्र



पं0 चैतराम भट्ट
देहरादून। आमतौर पर पितृ पक्ष के समापन के अगले दिन से नवरात्र आरंभ हो जाती है और घट स्थापना के साथ 9 दिनों तक नवरात्र की पूजा होती है। पितृ अमावस्या के अगले दिन से प्रतिपदा के साथ शारदीय नवरात्र का आरंभ हो जाता है जो कि इस साल नहीं होगा। इस बार श्राद्व पक्ष समाप्त होते ही अधिमास लग जाएगा। अधिमास लगने से नवरात्र और पितृपक्ष के बीच एक महीने का अंतर आ जाएगा। आश्विन मास में मलमास लगना और एक महीने के अंतर पर दुर्गा पूजा आरंभ होना ऐसा संयोग करीब 165 साल बाद आ रहा है।
लीप वर्ष होने के कारण ऐसा हो रहा है। इस बार चातुर्मास जो हमेशा चार महीने का होता है, पांच महीने का होगा। ज्योतिष के मुताबिक 160 साल बाद लीप ईयर और अधिमास दोनों ही एक साल में हो रहे हैं। चातुर्मास लगने से विवाह, मुंडन, कर्ण छेदन जैसे मांगलिक कार्य नहीं होंगे। इस काल में पूजन पाठ, व्रत उपवास और साधना का विशेष महत्व होता है। इस दौरान देव सो जाते हैं। देवउठनी एकादशी के बाद ही देव जागृत होते हैं।
इस साल 17 सितंबर को श्राद्व खत्म होने के अगले दिन अधिमास शुरू हो जाएगा। 17 अक्टूबर से नवरात्रि व्रत रखे जाएंगे। 25 नवंबर को देवउठनी एकादशी होगी। जिसके साथ ही चातुर्मास समाप्त होंगे। इसके बाद ही शुभ कार्य जैसे विवाह, मुंडन आदि शुरू होंगे।
पंचांग के अनुसार इस साल आश्विन माह का अधिमास होगा। यानी दो आश्विन मास होंगे। आश्विन मास में श्राद्व और नवरात्रि, दशहरा जैसे त्योहार होते हैं। अधिमास लगने के कारण इस बार दशहरा 26 अक्टूबर को दीपावली भी 14 नवंबर को मनाई जाएगी।
एक सूर्य वर्ष 365 दिन और करीब 6 घंटे का होता है, जबकि एक चंद्र वर्ष 354 दिनों का माना जाता है। दोनों वर्षों के बीच लगभग 11 दिनों का अंतर होता है। ये अंतर हर तीन वर्ष में लगभग एक माह के बराबर हो जाता है। इसी अंतर को दूर करने के लिए हर तीन साल में एक चंद्र मास अतिरिक्त आता है, जिसे अतिरिक्त होने की वजह से अधिमास का नाम दिया गया है।
अधिमास को मलमास भी कहते हैं। दरअसल इसकी वजह यह है कि इस पूरे महीने में शुभ कार्य वर्जित होते हैं। इस पूरे माह में सूर्य संक्रांति न होने के कारण यह महीना मलिन मान लिया जाता है। इस कारण लोग इसे मलमास भी कहते हैं। मलमास में विवाह, मुंडन, गृहप्रवेश जैसे कोई भी शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं।
पौराणिक मान्यताओं में बताया गया है कि मलिनमास होने के कारण कोई भी देवता इस माह में अपनी पूजा नहीं करवाना चाहते थे और कोई भी इस माह के देवता नहीं बनना चाहते थे, तब मलमास ने स्वयं श्रीहरि से उन्हें स्वीकार करने का निवेदन किया। तब श्रीहरि ने इस महीने को अपना नाम दिया पुरुषोत्तम। तब से इस महीने को पुरुषोत्तम मास भी कहा जाता है। इस महीने में भागवत कथा सुनने और प्रवचन सुनने का विशेष महत्व माना गया है। साथ ही दान पुण्य करने से मोक्ष के द्वार खुलते हैं।


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