गुरुवार, 2 जुलाई 2020

सीएए विरोधी आंदोलन के 200 दिन

सीएए विरोधी आंदोलन के 200 दिन



मेरा देश फिर उठ खड़ा होगा!
पुरुषोत्तम शर्मा
लालकुआं। संशोधित नागरिकता कानून के खिलाफ संघर्ष के 200 दिन पूरे हुए। 100 दिन आंदोलन के और लाक डाउन के बाद आंदोलनकारियों के ऊपर सत्ता की साजिशों और दमन के 100 दिन हो गए, पर लड़ाई जारी है। हम जानते हैं कि इस आंदोलन ने वर्तमान सत्ता की चूलें हिला दी थी। 
मोदी-शाह के नेतृत्व में इस देश में जनता के अधिकारों, लोकतंत्र और संविधान पर जो हमले सत्ता द्वारा पिछले 6 वर्षों से चलाए जा रहे हैं, उसके खिलाफ एक नए भारत के संघर्ष के बीज इस आंदोलन के अंदर से अंकुरित हो रहे थे। देश का पूरा लोकतांत्रिक जनमत और आंदोलनकारी समूह इस आंदोलन के इर्द गिर्द एकताबद्व हो रहे थे। मोदी-शाह की सत्ता इस आंदोलन से इसी लिए भयभीत है। 
दिल्ली और यूपी में उनकी पुलिस के क्रूर दमन और संघी गुंडों के सत्ता प्रायोजित हमलों के बावजूद वह आंदोलन शांतिपूर्ण बना रहा। जिस गांधी, अम्बेडकर, भगत सिंह, मौलाना अबुल कलाम का इतिहास मिटा कर वर्तमान सत्ता हत्यारे गोडसे को महामानव बता देश पर थोपना चाह रही थी, देश के करोड़ों लोगों ने उसके बरखि़लाफ़ आजादी के इन नायकों की तस्वीरें ले सड़कों पर उतर कर उनकी इन साजिशों को चकनाचूर कर दिया था।
संविधान को बचाने की शपथ, लोकतंत्र को बचाने की शपथ, भारत की विविधता में एकता की गंगा जमुनी संस्कृति को बचाने की शपथ, जब संविधान की प्रति और तिरंगा झंडा हाथ में लेकर लाखों लोग लेने लगे तो सत्ताधारी डरने लगे। क्या दुनिया की कोई भी लोकतांत्रिक सरकार अपने संविधान और अपने राष्ट्रीय झंडे की कसमों से डरती है भला? 
500 रुपए की दिहाड़ी पर आई भीड़, बिरयानी के लालच में आई भीड़, पाकिस्तान के पैसे से जुटाई भीड़ के दुष्प्रचार के साथ ही शाहीनबाग और जामिया में संघी गुंडों द्वारा फायर कराने के बाद भी आंदोलन उग्र नहीं हुआ। इसके बावजूद जब इस आंदोलन के नेतृत्व की डोर उन महिलाओं की हाथ आ गई, जिन्हें आरएसएस  प्रमुख मोहन भागवत चूल्हा चौका और पति को खुश करने की सीमा में बांधना चाहते हैं, तो फिर फासिस्ट सत्ता का भयभीत होना और भी लाजमी था।
पर कोरोना संकट और लाक डाउन के बाद इस आंदोलन को सत्ता के दमन और साजिशों से कुचलने की तुम्हारी साजिशें कामयाब नहीं होंगी। साम्प्रदायिक विभाजन और युद्वोन्मादी अंधराष्ट्रवाद की राजनीति से भरी तुम्हारी काठ की हांडी भी चूल्हे पर कब तक चढ़ेगी?
पर देखना! मेरा देश फिर उठ खड़ा होगा। कोरोना को परास्त करने के बाद भारत की जनता अपने संविधान और लोकतंत्र पर उमड़े खतरे को भी परास्त कर के रहेगी। 135 करोड़ देशवासी अपनी गंगा जमुनी संस्कृति की हिफाजत करते हुए एक नए भारत की नींव रखेंगे! निश्चित ही उस नए भारत की नींव के नीचे फासीवाद की कब्र होगी।


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