धुरपुलि....
- पवन नारायण रावत
कोई आता है
कोई जाता है
रूकता कोई नहीं
सब व्यस्त हैं
इधर से उधर
यहाँ से वहाँ
सुनता कोई नहीं
जिसने भी लिया
यहीं से लिया
और
बन गया
जिसने भी दिया
यहीं पे दिया
और
चला गया
न कोई लेकर आया
न कोई लेकर गया
और
कोई ऐसा
कर भी नहीं सकता
जो भी आयेगा
एक घेरे में आयेगा
कहाँ से
नहीं मालूम
जो भी जायेगा
घेरा तोड़कर जायेगा
कहाँ
नहीं मालूम
जो कुछ है
सिर्फ और सिर्फ
इस घेरे के अन्दर है
सवाल ये है
के आखिरकार
ये किसकी रचना है
कौन है
जो सब कुछ
जानते हुए भी
इस घेरे से
बाहर है
मुझे लगता है
वो जो भी है
वही सब कुछ है
वह सब कुछ जानता है
और
इस संसार की
धुरपुलि पर
तसल्ली से बैठा रहता है
और
ध्यान से
देखता रहता है
कि
कोई आता है
कोई जाता है
रूकता कोई नहीं
सब व्यस्त हैं
इधर से उधर
यहाँ से वहाँ
सुनता कोई नहीं !
कविता संग्रह - उम्मीद की नदी / 2015 में प्रकाशित गढ़वाली कविता का हिन्दी वर्जन