शुक्रवार, 7 अगस्त 2020

लम्बकेश्वर महादेव में भक्तों को मिलती है आध्यात्मिक एवं दिव्य ऊर्जा

लम्बकेश्वर महादेव में भक्तों को मिलती है आध्यात्मिक एवं दिव्य ऊर्जा


गंगोलीहाट दर्शन



नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय भस्माङ्गरागाय महेश्वराय
नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय तस्मै नकाराय नमः शिवाय।।
पवन नारायण रावत
गंगोलीहाट। हिन्दू धर्म में श्रावण मास को साल का सबसे पवित्र माह माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार सावन के महीने में भगवान भोलेनाथ को जल चढ़ाना एवं उनकी पूजा करना विशेष फलदायी माना जाता है। इस माह में सोमवार को व्रत रखते हुए जो भी श्रद्धालु शिव शंकर का ध्यान एवं दर्शन कर उन्हें जल चढ़ाते हैं निश्चित ही उन पर शिव शंकर की विशेष कृपा होती है। इसलिये श्रद्धालू भी इस माह में शिव शंकर के दर्शनों के लिये लालायित रहते हैं एवं नीलकंठ भगवान भोलेनाथ के दर्शनों के लिये सुदूर स्थलों में स्थित शिवालयों के दर्शन कर उनकी पा प्राप्त करते हैं। तो आइये, हम भी श्रावण के पवित्र माह में आपको भगवान भोलेनाथ के लम्बकेश्वर महादेव स्वरूप में पवित्र दर्शनों के लिये ले चलते हैं। 
गंगोलीहाट के नजदीक 1800 मीटर ऊंचाई पर स्थित हैं लम्बकेश्वर महादेव



लेखक पवन नारायण रावत



पिथौरागढ़ जिले के गंगोलीहाट से लगभग 20 किमी दूरी पर बेरीनाग की तरफ स्थित है राम मंदिर। यहां तक आप अपने वाहन से सीधा पहुंच सकते हैं। आगे झलतोला गांव से होकर लगभग 5 किमी की पैदल मार्ग से भोलेनाथ के लम्बकेश्वर स्वरूप का दर्शन करने पहुंच सकते हैं। स्थानीय लोग इसे लमकेश्वर देवता भी कहते हैं।
शुरुआती दो किमी की चढ़ाई लगभग सीधी है। सैलानियों के लिये यहां पर गेस्ट हाउस भी मौजूद हैं। जहां वाहन से भी पहुंचा जा सकता है। इसके आगे पैदल, आप और सिर्फ आपकी आस्था। यकीन मानिये जब आप श्रद्धा की डगर पर एक एक कदम आगे बढ़ रहे होंगे तो हर कदम पर आपका जोश और उत्साह बढ़ता ही जायेगा। 
सुन्दर मनोरम घने बांज और बुरांस के वृक्षों की शीतल छाया के बीच चलते हुए थकान भी आपको ऊर्जा ही प्रदान करेगी। तरह तरह की दुर्लभ वनस्पतियां एवं चिकित्सकीय गुणों से भरपूर पौधे एवं सुन्दर पुष्प आपके रास्ते की लम्बाई, ंऊंचाई एवं कठिनाई को अपनी खूबसूरती के आगोश में छिपा लेंगे। इन सबसे गुजरते हुए जब आपको ऊंचाई पर स्थित मन्दिर का गेट नज़र आयेगा आपकी थकान मानो छू मंतर हो जायेगी।
देवदार की घनी छटाओं के बीच स्थित शिवालय



श्रद्वालूओं के साथ  बाबा भास्करानंद 



समुद्र तल से लगभग 1800 मीटर की ऊंचाई पर देवदार के घने वृक्षों के बीच स्थित हैं लम्बकेश्वर महादेव। एक सुन्दर प्राकृतिक एवं रमणीक स्थान पर लम्बकेश्वर महादेव के दर्शन करते ही आपकी अब तक की सारी थकान काफूर हो जायेगी। मन्दिर का मनोरम दिव्य स्थल आपको नव स्फूर्ति से भर देगा। शिवालय का आध्यात्मिक ऊर्जा क्षेत्र एवं हरियाली से सराबोर चारों तरफ का वातावरण आपको यहां ध्यान की गहराई में उतर जाने को मजबूर कर देगा।
ऐसे हुई मन्दिर की स्थापना
मन्दिर की स्थापना के बारे में बताया जाता है कि लगभग 2-3 शताब्दी पहले यहां के स्थानीय निवासी अपनी गाय चराने यहां आया करते थे। उनकी गायों में से एक गाय ऐसी थी जिसके थन दिन भर भरे रहते पर घर लौटने से पूर्व ही उसका सारा दूध समाप्त हो जाता। शाम को उसे दुहने पर जरा भी दूध नहीं मिलता था। गांव वालों को शक हुआ कि कोई गाय का दूध चोरी कर रहा है इसलिये उन्होंने गाय का पीछा किया। इस पर उन्हें पता चला कि गाय एक स्थान पर खड़े होकर स्वयं अपना दूध दुह देती है। जब खुदाई की गई तो इस स्थान पर अनन्त तक धंसा हुआ एक शिवलिंग पाया गया। स्थानीय लोगों द्वारा इसकी पूजा अर्चना शुरू कर दी गयी।
अंग्रेज अधिकारी से जुड़ी है जनश्रुति
लम्बकेश्वर महादेव के बारे में पुराने लोग यह भी बताते हैं कि आजादी से पूर्व झलतोला स्टेट में अंग्रेजों का एक बंगला हुआ करता था जिसमें एक अंग्रेज अधिकारी रहा करते थे। एक दिन  शिकार खेलते हुए अंग्रेज़ अधिकारी लम्बकेश्वर महादेव तक पहुंच गए। स्थानीय लोगों को शिवलिंग की पूजा अर्चना करते देख अंग्रेज़ अधिकारी उनका मज़ाक बनाने लगे एवं उन्होंने शिवलिंग पर गोली चला दी। ऐसा करते ही उन्हें लकवा पड़ गया। उन्हें किसी तरह उठाकर बंगले पर लाया गया। तभी से लोगों में इस ज्योतिर्लिंग पर आस्था और बढ़ गयी।
बाबा माधवदास ने कराया वर्तमान लम्बकेश्वर मन्दिर का निर्माण और विष्णु मंदिर की स्थापना



बाबा भास्करानंद



आध्यात्मिक मार्ग के साधक बाबा भास्करानंद जी बताते हैं कि राजस्थान के महात्मा निर्मल दास बाबा ने यहां पर लगभग 40 साल तक तपस्या की। उस समय भोजन और पानी का भी कोई साधन नहीं था। वे कन्दमूल फल खाकर ही तपस्या में लीन रहते थे। उनके पश्चात राजस्थान से ही 1985 के आसपास बाबा माधवदास यहां आये। स्थानीय ग्रामीणों के सहयोग से बाबा माधवदास ने ही लमकेश्वर मन्दिर का निर्माण कराया। बाबा ने ही राजस्थान से भगवान विष्णु की मूर्ति लाकर लमकेश्वर से लगभग आधा किमी दूर चढ़ाई पर भगवान विष्णु मंदिर की भी स्थापना की। इस स्थान को झंडीधार कहा जाता है।
श्रावण में बड़ी आस्था से आते हैं श्रद्धालु



मंदिर में दर्शन के लिए आए श्रद्वालूगण



दो वर्ष पूर्व अश्विन की पूर्णिमा को यहां आये बाबा भास्करानंद जी बताते हैं कि उस दिन यहां मेले का आयोजन होता है। स्थानीय ग्रामीणों द्वारा पहली फसल का भोग लम्बकेश्वर बाबा को चढ़ाया जाता है। महाशिवरात्रि पर भी यहां विराट मेले का आयोजन होता है साथ ही श्रावण के महीने भर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। बाबा भास्करानंद का कहना है कि अलौकिक शक्तियों से भरपूर यह स्थान अपने आप में दिव्य ऊर्जा का श्रोत है। बाबा लम्बकेश्वर की कृपा से ही यहां निर्जन वन होने पर भी सजीव प्राकृतिक वातावरण एवं जीवन्तता है। झंडीधार से पर्वतराज हिमालय की विभिन्न चोटियों के जैसे विस्तृत और नजदीक दर्शन यहां से होते हैं उतने शायद ही कहीं से होते हों। इस नयनाभिराम दृश्य एवं प्राकृतिक सौंदर्य को महसूस करने देश के कोने कोने एवं विदेशों से भी सैलानी यहां पहुंचते हैं और बाबा लम्बकेश्वर के दर्शन कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
ऐसे पहुंचें लम्बकेश्वर महादेव



यहां पहुंचने के लिये आपको हल्द्वानी से अल्मोड़ा के रास्ते पनार होते हुए गंगोलीहाट लगभग 214 किमी सड़क मार्ग से अथवा हल्द्वानी-अल्मोड़ा से सेराघाट होते हुए 200 किमी सड़क मार्ग के रास्ते गंगोलीहाट पहुंचकर यहां पहुंच सकते हैं। गंगोलीहाट से लगभग 15 किमी दूर जाड़ापानी से पैदल 7-8 किमी खड़ी चढ़ाई पर चढ़कर अथवा 20 किमी दूर राम मन्दिर से झलतोला होते हुए लगभग 6 किमी की पैदल यात्रा कर लम्बकेश्वर महादेव के दर्शन किये जा सकते हैं।
तो अब देर किस बात की। सावन भी है और आपके हृदय में उमड़ रही बूंद बूंद श्रद्धा और आस्था भी। तो अबकी बार लम्बकेश्वर महादेव के जलाभिषेक और दर्शनों से बेहतर और क्या।


टीम पर्वतीय निशान्त


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