संस्मरणः रौबदार शख्शियत के आगोश में एक सौम्य हृदय इंसान थे ठाकुर सुक्खन सिंह
पवन नारायण रावत
गंगोलीहाट। हा, हा हा हा...हा....। तेज ठहाकों की आवाज इशारा कर रही थी कि अपनेपन के अधिकार के साथ ठाकुर साहब पधार रहे हैं।
आइये आइये आइये साहब, अबके कई महीने बाद दर्शन दिये हैं। उनका स्वागत करते हुए उन्हें सम्मान सहित बैठने का आग्रह करता हूं। जिसे सहर्ष स्वीकार करते हुए वे अपना झोला उतारकर सामने एक तरपफ रखते हुए तसल्ली से बैठते।
अरे साहब, आपकी चाय का स्वाद दिमाग से उतर रहा था और आपके पड़ोस से गुजर रहा था तो सोचा चलो आज ही स्वाद ताजा कर लें। चेहरे पर मुस्कुराहट लाते हुए ठाकुर साहब बोले। वैसे भी आप अगर हमें देख लेते तो पिफर आर्डर पहले ही दे देते। और हमारी खैर भी नहीं होती। ठहाका लगाते हुए पिफर से ठाकुर साहब बोल पड़े। उनके आदेश में उनका स्नेह छिपा था। जिसे वे चेतन भाई के साथ समय-समय पर हमारे कार्यालय आकर हमसे साझा किया करते।
ठाकुर साहब से परिचय पत्राकार मित्रा चेतन जी के माध्यम से हुआ। पर एक मुलाकात में ही वे दिल के करीब हो चले थे। रौबदार चेहरा, बड़ी बड़ी मंूछें, करीने से सजे संवरे बाल, नाक पर टिका शानदार चश्मा। कंधे के एक छोर से कमर के दूसरे छोर तक टिका काले रंग का थैला। जिसमें कई खाने थे। इसमें उनका कैमरा एवं अन्य सामान रहता था। उनके चेहरे पर एक रौबदार मुस्कान, जो वास्तव में उनके व्यक्तित्व का असल चेहरा थी। अक्सर खिली रहती। रौबदार शख्सियत के आगोश में एक सौम्य हृदय इंसान थे ठाकुर सुक्खन सिंह।
उम्र में हमसे दुगुने रहे हों। पर मजाल है कि उनकी तरह जोश, उमंग और उत्साह हम अपने कार्य में दिखा पाते। उनके जैसी कर्मठता तो आज तक भी एक लक्ष्य की भांति ही है। आप इस उम्र में इतनी कड़ी धूप में आखिर इतनी भागदौड़ कर क्यों रहे हैं? जर्नलिस्ट यूनियन आपफ उत्तराखंड की देहरादून इकाई के अध्यक्ष रहे ठाकुर साहब से सवाल दागकर जब भी मैं उत्तर आने का इंतजार करता, तब तक वे कुर्सी पर बैठे-बैठे एक गहरी नींद के झोंके से वापस आ चुके होते।
भाई साहब, इतनी कड़ी धूप में शहर का चक्कर लगाने के बाद आपकी चाय पीने का जो आनन्द है, उसका मजा सिपर्फ मैं ही ले सकता हूं। चाय की चुस्की और मासूम मुस्कान के साथ उनका जवाब होता। पिफर बातों-बातों में ओएनजीसी में अपने कार्यकाल से जुड़े कई यादगार किस्से बड़े चाव से सुनाते। उससे भी अधिक तन्मयता से हम सुनते। अपनी इसी किस्सागोई के दौरान ही वे प्रिंटिंग प्रेस में प्रयोग किये जाने वाले विभिन्न क्रियाकलाप एवं उनमें उनके लम्बे अनुभव के बारे में भी बताते। जिस कारण वे हमेशा अपने सेवाकाल में महत्वपूर्ण कार्यों से अक्सर ही घिरे रहते।
बेहद सरल व्यक्तित्व के धनी ठाकुर साहब सदैव युवाओं की मदद को तत्पर रहते। अपने वार्तालाप में अक्सर इसका जिक्र करते। एक बार सुबह-सुबह मुझसे नये कार्यालय में मिलने आये। थैले से डायरी, कैलेंडर और एक थैला निकालकर मेरे हवाले किया और कंघी से बाल बनाते हुए बोले, हम तो दुनिया को कैमरे में कैद करते हैं। बचकर जाओगे कहां? और अब तो आप हमारे घर के नजदीक आ गये हो। अब तो रोज सुबह मुलाकात होगी। इतने में एक मित्रा ने उनके कैलेंडर की तारीपफ की तो अपने थैले से निकलकर एक टेबल कैलेंडर उन्हें भी दे दिया। मित्रा प्रसन्न हुआ और ठाकुर साहब संतुष्ट। कहा अगले दिन पिफर आऊंगा, अब तो पड़ोसी हूं।
एक दिन चेतन जी ने बताया कि वे ओएनजीसी के नजदीक ही एक सड़क दुर्घटना का शिकार हो गये हैं। कापफी लम्बे समय तक अपनी बाहरी दिनचर्या से दूर रहे। मुलाकात सिपर्फ उनकी खबरों तक सीमित रही जो चेतन जी के मापर्फत ही प्राप्त हो पातीं। लम्बे समय बाद एक बार सिपर्फ पफोन पर ही बात हो पायी। चाय जरूर पियूंगा, अरे हुज़ूर, आपको ऐसे ही थोड़े छोड़ेंगे। जल्द आऊंगा। पफोन पर यही आखिरी बातचीत उनसे हुई।
समय बीतता गया। ना मेरा पुराना आपिफस रहा, ना मैं उनका पड़ोसी। सिपर्फ अब वे हमारे ग्रुप एडमिन रह गये थे। ठाकुर की खबर के मापर्फत। लम्बे समय तक बद्री विशाल के छायाकार रहे। हमारे संगठनात्कम कार्यक्रम में भी विशेष रूप से शामिल रहते। कार्यक्रम तो जो कवर करते, सो करते। मेरी जरूर दो चार पफोटो हमेशा अलग से खींच देते। वे उम्र के पाबंद कभी नहीं रहे। यही कारण रहा कि उनके परिचितों और दोस्तों का खजाना हमेशा समृ( रहा। यही सीख हमें भी हंसते मुस्कुराते सिखा गये। उनकी उदार सोच के लैंस का कैनवास इतना बड़ा था कि उसमें सभी के लिये अपनेपन के खुशनुमा रंग भरे पड़े थे।
12 अगस्त 2020 को प्रातःकाल करीब 76 वर्ष की आयु में लंबी बीमारी के उपरान्त वे अनन्त यात्रा पर चल दिये। परिजनों के साथ उनके चाहने वाले अपनों के लिये यह अपूर्णनीय क्षति है। यादों के सुनहरे कैनवास पर अपनी सौम्य मुस्कान के साथ सदैव हम सबकी स्मृतियों में बने रहेंगे, ठाकुर साहब!
(पर्वतीय निशान्त टीम)