बुधवार, 30 सितंबर 2020

राज्यहित में नहीं नेता-नौकरशाही का टकराव

जिम्मेदार लोगों को विवाद से पहले सौ बार सोचना चाहिये



राज्यहित में नहीं नेता-नौकरशाही का टकराव
प0नि0ब्यूरो
देहरादून। प्रदेश में हाल फिलहाल जिस तरह जनप्रतिनिधियों एवं नौकरशाही के बीच तनातनी देखने को मिल रही है, वो बहुत ही गलत संदेश प्रस्तुत करती है। यह वास्तव में सत्ता में बैठे राजनेताओं की नेतृत्व क्षमता पर बड़ा प्रश्नचिन्ह लगाने वाली बात भी है। 
गलती किसकी है? यह बात अब गौण हो गई है। ऐसी नौबत ही क्यों आती है? क्योंकि सरकार में बैठे राजनेता और नौकरशाह एक दूसरे के प्रतिद्वंदी नही है, सहयोगी है। लेकिन आजकल उनका बर्ताव दुश्मनों सरीखा हो रखा है, जो प्रदेश के लिए किसी भी तरह से हितकारी नहीं कहा जा सकता। 
यह प्रदेश के लिए दुर्भाग्यपूर्ण हालात है। लेकिन प्रदेश के मुखिया का ऐसे प्रकरणों को गंभीरता से न लेना, उनकी अनुभवहीनता को उजागर करता है। वहीं यह बात उनकी नेतृत्व क्षमता की कमी को भी इंगित कर रहा है। वरना ऐसी अप्रिय स्थिति को टाला जा सकता था। लेकिन यहां पर प्रदेश के मुखिया का रवैया बेहद तटस्थ सा दिखाई दे रहा है। जो कि चौंकाने वाला है। 
खासकर तक जबकि ऐसे किस्से एक दो बार नहीं बल्कि बार-बार दोहराये जा रहें है। फर्क बस इतना है कि हर बार मंत्री बदल जाता है, अफसर बदल जाता है। लेकिन मूल में वहीं विवाद उभर कर आ जाता है। ऐसी परिस्थिति में प्रदेश के मुखिया को हस्तक्षेप करना चाहिये लेकिन यह दिख नहीं रहा। न नेता नौकरशाह की मान मर्यादा को रख रहा है और न ही नौकरशाह मंत्रियों या जनप्रतिनिधिें का मान रख रहा है। 
ऐसा लगता है जैसे इन सबके अपने अपने आका है जिनके इशारे पर यह लोग तमाम मर्यादाओं को तार-तार करने से गुरेज नहीं करते। सरकार के मुखिया मूक दर्शक बन तमाशा देख रहें है। ऐसा नहीं होना चाहिये। यह राज्यहित में घातक स्थिति है। क्योंकि चाहे राजनेता हो या नौकरशाह, उनको तमाम तरह की सुविधएं इसलिए मिलती है ताकि वे प्रदेश और जनता के विकास की जिम्मेदारी निभा सकें।


 


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