सोमवार, 7 दिसंबर 2020

 शिक्षा विकास का महत्वपूर्ण स्तम्भ 2

शिक्षकों की पदोन्नति की प्रक्रिया पारदर्शी व प्रदर्शन के आधर पर हो



प्रो0 डा0 मैथ्यू प्रसाद

देहरादून। मूलभूत सुविधाओं के साथ ही शिक्षकों को ज्ञानवर्धन एवं आचरण प्रगटीकरण, शिक्षार्थियों व उनके परिवारों के साथ व्यक्तिगत सम्बन्ध बनाने आदि की निपुणता हेतु नियमित प्रशिक्षण दिया जाना चाहिये। इसके साथ ही, शिक्षकों की पदोन्नति की प्रक्रिया पारदर्शी व उत्साहवधर््क तथा गुणवत्ता/प्रदर्शन के आधर पर होनी चाहिये। प्रदर्शन का मूल्यांकन, आचरण के अनेक बिन्दुओं पर आधारित हो सकता है जैसे- विषय का उत्कृष्ट ज्ञान तथा ज्ञान का सरलीकरण कर उसे रुचिकर बनाकर, शिक्षार्थियों के स्तर पर लाकर प्रदान करने का गुर सौम्य-आचरण, विनम्र अनुशासित, शिक्षार्थियों व उनके परिवार वालों के साथ आत्मीय सम्बन्ध् बनाने का गुण, समाज एवं देश-सेवा का भाव, शिक्षण व अन्य शिक्षण सम्बन्धी कार्यों के प्रति समर्पण, सदाचार आदि अनेक बिन्दुओं को शिक्षक के मूल्यांकन हेतु जोड़ा जा सकता है।



जहां तक छात्रों के प्रदर्शन का मूल्यांकन है, तो मेरा यह मानना है कि वर्तमान मूल्यांकन की प्रक्रिया को पूर्णरूपेण करने हेतु विचार किया जाना उचित होगा। मूल्यांकन, केवल परीक्षा में प्राप्त अंकों के अतिरिक्त, छात्र से जुड़े अन्य पहलुओं पर भी होना चाहिए, जैसे छात्रा की कक्षा में उपस्थिति ;कक्षा में प्रतिभागिताद्ध, आचरण ;समय-प्रबन्ध्नद्ध, विनम्रता ;सहिष्णुता, खुली व स्वतंत्रा सोच की प्रवृत्ति ;विषय की गहराई से ग्राह्यताद्ध, समरसता ;मित्राता का भावद्ध, सहयोग की भावना ;संयमद्ध, संघर्षशक्ति ;क्लेश में स्थिरताद्ध, खेल-कूद ; साहित्यिक एवं कलात्मक गतिविध्यिों में प्रदर्शन ;देशभक्ति की भावनाद्ध, समाज एवं देशसेवा का भाव आदि ऐसे अनेक बिन्दुओं पर आंकलन करना सार्थक होगा। मूल्यांकन सतत् और व्यापक होना चाहिये, उचित तो यह होगा कि परीक्षाएं अल्पावध् िमें, छोटी-छोटी इकाईयों में वर्षभर निरन्तर होती रहें। इससे शिक्षक व छात्रा को स्वयं, किसी विषय-वस्तु में अपनी कमजोरियों का पता चल जाता है और शिक्षक व छात्रा दोनों, समय रहते उसमें सुधर ला सकते हैं। इससे परीक्षा-मेनिया या परीक्षा-ज्वर जैसी मनोवृत्तियां भी ध्ूमिल हो जायंेगी।

इस तरह के पहलुओं का गुणात्मक विश्लेषण ;फनंसपजंजपअम ंदंसलेपेद्ध सहजता से किया जा सकता है, परन्तु  हमें इनका मात्रात्मक ;फनंदजपजंजपअम ंदंसलेपेद्ध करना होगा। गुणात्मक विश्लेषण कोे मात्रात्मक विश्लेषण में परिवर्तित कर, उसका संख्यात्मक पैमाना ;छनउमतपबंस ेबंसमद्ध बनाना होगा। मूल्यांकन की लगभग यही प्रक्रिया शिक्षकों के लिए भी लागू की जा सकती है।

जहां तक देश में शिक्षा, किस भाषा में प्रदान की जाये, की बात है, तो सर्वोच्च प्राथमिकता मातृभाषा को दी जानी चाहिये। यह तर्क कि केवल प्राथमिक स्तर तक की शिक्षा मातृभाषा में होनी चाहिये तथा उच्च शिक्षा अंग्रेजी में होनी चाहिये, शायद कसौटी पर खरा नहीं उतरेगा। उदाहरणार्थ कई ऐसे देश हैं, जैसे रूस, चीन, जापान, प्रफांस, जर्मनी, कोरिया, स्पेन आदि जिनमें शिक्षा मातृभाषा में दी जाती है, और इनमें से कुछ देश, विश्व के विकसित देशांें में गिने जाते हैं। तो यह तर्क की उच्च शिक्षा अंग्रेजी में ही दी जानी चाहिये, नहीं तो हम विश्व स्तर पर पिछड़ जायेंगे, सही नहीं है। हां, अंग्रेजी, चीनी, रूसी, प्रफेंच, जर्मन, स्पेनिश आदि भाषाओं का ज्ञान निःसंन्देह लाभकारी होगा।

विश्व के प्राचीन ग्रन्थ संस्कृत, इब्रानी, चीनी, अरबी, पफारसी आदि भाषाओं में हैं। भारत के प्राचीन ग्रन्थों में ज्ञान का अकूत भण्डार है, जो संस्कृत भाषा में है। अतः संस्कृत भाशा के ज्ञान से हम, हजारों वर्षों के अनुभव पर आधरित भारतीय संस्कृति को बेहतर समझ सकते हैं, जिससे हमारी शिक्षा संस्कारमय होगी। यही नहीं, कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग के लिए, संस्कृत भाषा ही सटीक मानी जाती है। मेरा तो यह मानना है कि कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग के विद्यार्थियों को संस्कृत भाषा का ज्ञान होना अत्यन्त लाभकारी सि( होगा। संस्कृत भाषा में कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग कर हम इस क्षेत्रा में विश्वगुरु भी बन सकते हैं। अंग्रेजी को पता नहीं क्यों इतना तूल दिया जाता है, और किस आधार पर अंग्रेजी को अर्न्तराष्ट्रीय भाषा कहा जाने लगा है, जबकि दुनिया के 212 देशों में से अध्किांश देशों में अंग्रेेजी प्रचलित नहीं है।

जब हम नई शिक्षा नीति की बात करते हैं तो इसके गहन अध्ययन से हम पायेंगे कि इसमें शिक्षा के लगभग सभी पहलुओं का विवेकपूर्ण समागम है। नई शिक्षा नीति मूल्यपरक ;संस्कारयुक्तद्ध, रोजगारपरक ;नवोन्मेशीद्ध, सदाचारी ;प्रबु( मानव विकासद्ध, समकालीन विषयों का समायोजन ;कौशल विकासद्ध, क्षमता-निर्माण ;अकादमिक क्रेडिट बैंकद्ध, चॉइस वेस्ड क्रेडिट प्रणाली ;समानान्तर प्रवेश प्रणाली ;स्ंजमतंस मदजतल ेलेजमउद्ध, अंर्तविषयी अध्ययन प्रणाली ;स्कूल ड्राप आउटस के लिए विशेष प्रबन्ध् ;विभिन्न अवध् िके सर्टीपिफकेट, डिप्लोमा व डिग्री पाठ्यक्रम आदि अनेक पहलुओं को संजोती है। इसमें मल्टीपल एंट्री व एग्जिट सिस्टम सबसे अध्कि उपयोगी प्रावधन है, जो ािक्षा में वांछित लचीलापन ;थ्समगमइपसपजलद्ध प्रदान करता है।

 देश के प्रधनमंत्राी नरेन्द्र मोदी जी वास्तव में पारखी हैं। व्यक्ति की क्षमताओं को समझने का उनमें अद्भुत गुण है। यही कारण है कि उन्होंने डा0 रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ को मानव संसाध्न विकास मंत्रालय ;वर्तमान में शिक्षा मंत्रालयद्ध की बागडोर सौंप दी। जब केन्द्रीय मंत्राी डा0 रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ ने इस मंत्रालय का पदभार ग्रहण किया, तभी मेरे साथ-साथ, मेरे कई सहयोगी शिक्षाविदों को यह आभास हो गया था कि अब राष्ट्रीय शिक्षा नीति में, दशकों से बहुप्रतीक्षित आमूल-चूल परिवर्तन अवश्य होगा। 

मालन पुल के मरम्मत का कार्य धीमी गति से होेने पर विधानसभा अध्यक्ष ने नाराजगी जतायी

 मालन पुल के मरम्मत का कार्य धीमी गति से होेने पर विधानसभा अध्यक्ष ने नाराजगी जतायी संवाददाता देहरादून। विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खण्डूडी भूषण न...