चीनी सेना का पीछे हटना भारत की जीत
प0नि0ब्यूरो
देहरादून। लंबे इंतजार के बाद चीन ने अपने सैनिकों को पीछे हटाने की प्रक्रिया शुरू की है। पूर्वी लद्दाख में चीनी अतिक्रमण पर भारत ने जिस तरह का कड़ा रुख अख्तियार किया, उससे चीन झुकने को मजबूर हुआ। भारत और चीन के बीच यह टकराव पिछले साल मई में तब शुरू हुआ था जब चीनी सेना ने इस क्षेत्र में भारत के कब्जे वाले इलाकों में पैर जमा लिये। इसके बाद जून में चीनी सैनिकों ने गलवान घाटी में भारतीय सैनिकों पर हमला कर दिया, जिसमें 20 जवान शहीद हो गए। इसके बाद दोनों देशों के बीच तनाव चरम पर पहुंच गया।
गलवान घाटी में सैन्य टकराव के बाद तनाव कम करने और सैनिकों की वापसी के लिए सैन्य और कूटनीतिक स्तर पर वार्ताओं के लंबे दौर चले। मास्को में भी भारत और चीन के रक्षा व विदेश मंत्रियों की वार्ताएं हुईं। लेकिन चीन के अड़ियल के रुख की वजह से सुलह के प्रयास निष्फल रहे। हाल में सैन्य कमांडरों की वार्ता में बनी सहमति के बाद ही चीन पैंगोंग और पूर्वी लद्दाख में एलएसी से सटे इलाकों से अपने सैनिक हटाने को तैयार हुआ। लेकिन हर बार वह भारत पर इस बात के लिए दबाव डालता रहा कि अग्रिम मोर्चों से सैनिकों को हटाने का काम पहले वह करे। जबकि रणीनितिक लिहाज से अहम इन ठिकानों से सैनिकों की संख्या कम करने का काम दोनों देशों को समान रूप से करना था।
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने राज्यसभा में पैंगोंग झील इलाके से भारत चीन के सैनिकों के पीछे हटने की पुष्टि की और साफ किया कि चीन अपनी सेना की टुकड़ियों को उत्तरी किनारे में फिंगर-8 के पूरब की दिशा की तरफ और भारत अपनी सेना की टुकड़ियों को फिंगर 3 के पास अपने स्थायी ठिकाने धन सिंह थापा पोस्ट पर रखेगा। सैनिकों को हटाने की यही प्रक्रिया दोनों देश झील के दक्षिणी हिस्से में भी करेंगे। अगर चीन की मंशा साफ होती तो गतिरोध इतना लंबा नहीं खिंचता। पड़ोसी देशों के साथ विवादों को लेकर इस वक्त चीन की दुनिया भर में आलोचना हो रही है।
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के एजेंडे पर सहयोग को लेकर भारत और चीन के बीच बात हुई है। देखना यह है कि सैनिकों की वापसी के कदम पर वह कितनी ईमानदारी दिखाता है। अभी भी वह कोई छल कर जाए, जैसी उसकी प्रवृत्ति है, तो हैरानी नहीं होना चाहिए।
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