यों ही नहीं कहा जाता कि कुछ भी बोलो, जरा सोच समझ कर बोलो
बातों के बतंगड़ में बेवजह खपायी जा रही उर्जा!
प0नि0ब्यूरो
देहरादून। हालिया दिनों में प्रदेश के मुखिया के बयानों से देशभर में काफी बवाल हुआ है। हालांकि उनके बयान के पीछे कोई गलत मंशा नहीं थी लेकिन कमियां खोजने वाले विपक्ष और खबरों को सनसनीखेज बनाने की ख्वाहिश रखने वाले मीडिया ने बातों का पूरी तरह से बतंगड़ बना डाला। वहीं इसका विपक्ष ऐसे विरोध करने लगा जैसे कोई बड़ा अपराध हो गया हो। यह बात जरूर है कि एक बड़े पद पर बैठे व्यक्ति से इस तरह के बयानों की अपेक्षा आमतौर पर नहीं की जाती।
यों ही नहीं कहा जाता कि कुछ भी बोलो, जरा सोच समझ कर बोलो। यदि यह गलती कि तो निश्चित ही बवाल कटेगा ही। इसलिए सौ बातों का तोड़ एक चुप्पी कहलाती है। जरूरी नहीं कि हर विषय पर बोलना ही है। यदि विवादास्पद बात मुंह से निकलनी है तो बेहतर होगा कि चुप रहा जाये। एक के बाद एक लगातार ऐसी बात कह देना जिससे विवाद बढ़ जाये, किसी भी तरह उचित नहीं है। खासकर यदि ऐसा प्रदेश का मुखिया बात कहता है।
हालांकि प्रदेश की राजनीति में आजकल बेवजह ही बातों के बतंगड़ में उर्जा खपायी जा रही है। वैसे भी विपक्ष ने तो जैसे असहयोग आंदोलन की कसम खा रखी है। वहीं सत्ता पक्ष भी ठान कर बैठा है कि मेल मिलाप से राजकाज नहीं करना है। इसलिए पक्ष और विपक्ष में संवादहीनता पैदा हो गयी है। इसका खामियाजा प्रदेश की जनता को चुकाना पड़ रहा है। पिफर अब तो विरोध सही या गलत के लिए नहीं हो रहा है। विरोध महज विरोध के लिए हो रहा है।
चार साल तक भाजपा ने आंख मूंद कर रखी और अचानक उसे अहसास हुआ कि गड़बड़ हो गयी। फिर प्रदेश की परम्परा के मुताबिक मुख्यमंत्री बदल दिया गया। अब धीरे-धीरे जीरो टालरेंस की पोल भी खुलने लगी है। जबकि पहले भी पर्दा हटाकर दिखाया जा रहा था और सावन के अंधे को हरा ही हरा दिखायी दे रहा था। लेकिन ग्रहण इतना गहरा था कि भाजपा सरकार चार साल के जश्न को नहीं मना सकी। तो फिर भाजपा ने अपना और प्रदेश की जनता के चार साल को बर्बाद क्यों होने दिया? यह सवाल बार-बार खड़ा हो रहा है लेकिन भाजपा के पास जवाब मौजूद नहीं है।
हालांकि पार्टी ने मुख्यमंत्री को बदल दिया लेकिन नये मुखिया अपनी कही बातों से लपेटे में आ जा रहें है। बार-बार वे ऐसी गलती कर रहें है जिससे पार्टी को असहज होना पड़ रहा है। जबकि इसमें कोई दोराय नहीं कि वे विनम्र व्यक्ति है। बस जुबान फिसल जाती है। उनको नही भुलना चाहिये कि समूचा विपक्ष उनकी कही को लपकने को तैयार बैठा है। फिल्ड़िंग सजी हुई है और कैच छूटने वाला नहीं है। ऐसे में खामखां को गलत शाट मारना आखिर कहां की समझदारी है!
उम्मीद है कि आगे उनसे ऐसी गलती नहीं होगी। क्योंकि वे खुद आत्ममंथन कर रहें होंगे और आलाकमान की भी नसीहत मिल रही होगी। वैसे भी चुनाव को ज्यादा वक्त नहीं बचा है और जनता के बीच जाने पर बातें नहीं आपके काम ही काम आयेंगे।
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