शनिवार, 24 अप्रैल 2021

जमाखोरी-कालाबाजारियों की मौज

 जमाखोरी-कालाबाजारियों की मौज



कोविड़-19 की बंदिशों के दौरान मजबूरी का उठा रहें फायदा

प0नि0ब्यूरो

देहरादून। कोविड़-19 की दूसरी लहर ने पूरे देश को स्तब्ध कर दिया है। कोरोना संक्रमण के तमाम रिकार्ड टूट गए और इस महामारी से मरने वालों का आंकड़ा भी रोज नया रिकार्ड बना रहा है। ऐसे वक्त में दवाओं की किल्लत और आक्सीजन की कमी ने आग में घी डालने का काम किया है। इस संकट की घड़ी में एकजुटता की जरूरत है लेकिन राजनीति हो रही है। इस बीच कुछ लोगों ने विपदा को अवसर में बदलने के लिए तमाम उल्टे धंधे शुरू कर दिए है। 

कोविड़ उपचार में उपयोगी रेमडेसिवर जैसी दवाओं एवं आक्सीजन की कमी में जमाखोरों तथा मुनाफाखोरों का बड़ा योगदान है। बात यहीं पर खत्म नहीं होती बल्कि ऐसे विकट हालात में अवसरवादी लोग साग-सब्जी से लेकर बीड़ी-सिगरेट और गुटखा जैसी वस्तुओं पर भी ग्रहण लगाए हुए है। लाकडाउन की संभावनाएं क्या बढ़ी, कालाबाजारी करने वाले मनमानी पर उतर आये है। जिसको जहां पर अवसर मिल रहा है, लूट मचाये दे रहा है।

गौरतलब है कि पिछले लाकडाउन के दौरान भी ऐसे संवेदनहीन लोग डाका डालने से बाज नहीं आये थे। तमाम जरूरी-गैरजरूरी उपभोग की वस्तुओं के दाम बेवजह बढ़ा दिए गए है। पिछली बार प्रफी डिश, बीड़ी-सिगरेट, गुटखा और मैगी जैसे उत्पादों में जमकर मुनाफाखोरी हुई। इस बार भी ऐसे स्वार्थी तत्वों ने सिर उठाना शुरू कर दिया है। इन पर अंकुश लगाये जाने की जरूरत है।

दून की बात करें तो यहां टेलीफोन ब्रांड़ बीड़ी और दिलबाग गुटखा ज्यादा चलन में है। ऐसे में इन उत्पादों के निर्माता एवं उसके वितरकों ने लाकडाउन जैसी बंदिशों के बीच गैर कानूनी तरीके से अपने उत्पादों के दाम बढ़ा दिए है। ऐसे लुटेरों पर सख्त कारवाई किए जाने की जरूरत है। जो कोविड़ महामारी के दौरान सरेआम लूट मचाने पर आमादा है। ऐसे लोगों पर रासूका जैसी सख्त धाराओं का इस्तेमाल होना चाहिये ताकि इन्हें सबक मिले।

विपदा की इस घड़ी में जबकि लोग जीवन-मृत्यु से संघर्ष की स्थिति में है, मुनाफाखोर लोग तमाम मानवीय संवेदनाओं को ताक में रखकर मजबूरी का नाजायज फायदा उठा रहें है। हालांकि ऐसा करते वक्त यह लोग मांग और आपूर्ति के डिसबैलेंस का हवाला देकर बचने की कोशिश करते है। लेकिन इस तरह के तर्क देकर माफी नहीं मिल सकती। मुनाफाखोरों का विरोध करने के लिए सरकार के साथ-साथ लोगों को भी आगे आना चाहिये। इस तरह के संवेदनहीन लोगों का सामाजिक बहिष्कार किया जाना चाहिये। सरकारी मशीनरी भी इनके खिलाफ सख्त कारवाई करें, यह उम्मीद की जाती है। ताकि लाशों के ढेर पर ऐसा गन्दा व्यवसाय न हो। इन कामों में संलिप्त चाहे कितना भी प्रभावशाली हो, उसको किए का दंड़ तो जरूर मिलना चाहिये। 

मुनाफाखोरी और जमाखोरी के खिलाफ ऐसी सख्ती बरती जानी चाहिये ताकि वह कदम नजीर बने और कोई भी शख्स ऐसा करते हुए सौ बार सोचे।


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