शुक्रवार, 16 जुलाई 2021

टूट गया सब्र का बांध और जानलेवा लापरवाही

 खतरा अभी टला नहीं और चला गया कोविड-19 का लोगों के मन से खौफ!

टूट गया सब्र का बांध और जानलेवा लापरवाही



प0नि0ब्यूरो

देहरादून। कोविड़ महामारी की दूसरी लहर मंद पड़ गई है। इसलिए संक्रमण की दर और इससे होने वाली मौतों का आंकड़ा कम होता जा रहा है। लेकिन जैसे जैसे कोविड का कहर थमता जा रहा है, लोग भी जानलेवा लापरवाही बरतने लगे है। इससे कोविड़ की तीसरी लहर की आशंका बलवती होती जा रही है। हद से ज्यादा लापरवाही के कारण लोगों पर सख्ती की जाने लगी है ताकि लोग कोरोना का प्रोटोकाल न तोड़ें। लेकिन यह काम इतना आसान भी नहीं है।

सोशल डिस्टेंसिंग और मास्क लगाने के मानकांे का पालन न कर लोग कोविड़ की तीसरी लहर को न्यौता दे रहें है। यही वजह है कि विशेषज्ञ भी सलाह दे रहें है कि लोगों को अभी खुली छूट न दी जाये वरना हालात पिफर से बेकाबू हो सकते है। लेकिन ऐसा लगता है जैसे लोगों के मन से कोरोना महामारी का खौफ चला गया जबकि अभी खतरा टला नहीं है। बल्कि बार-बार इसकी तीसरी लहर के आने की चेतावनी जारी की जा रही है। बावजूद इसके लोग लापरवाही छोड़ने को तैयार नहीं है। 

लंबे समय से लाकडाउन और कोरोना कफ्रर्यू जैसे सख्त प्रतिबंधें को झेलने के बाद लगता है लोगों के सब्र का बांध टूट गया है और इसके चलते लोग भी जानलेवा लापरवाही बरतने से बाज नहीं आ रहें है। खासकर पहाड़ों में जहां पर्यटन स्थलों पर पर्यटक उमड़ते है, लोग बेकाबू होकर सैर कर रहें है। कोई भी कोविड प्रोटोकाल का अनुपालन करने को तैयार नहीं है। सब जानते है कि ऐसा करना जानलेवा हो सकता है लेकिन ऐतिहात बरतना किसी को गंवारा नही हो रहा है।  

जबकि मानसून के दस्तक के साथ साथ बरसात और कुदरत भी बख्शने के मूढ में नहीं है। जगह जगह अतिवृष्टि से भारी नुकसान हो रहा है। लैंड स्लाइडिंग हो रही है। बाढ़ से हालात हो गए है। ऐसे हालात को देखते हुए यकीन हो रहा है कि कहावतें सही बनायी गई है। जब मुसीबत आती है तो एक के बाद एक आती है। यह दिखायी भी दे रहा है। सब कुछ ऐसे घट रहा है जैसे कुदरत हमारे सब्र का इम्तेहान ले रहा हो। लगातार नुकसान पर नुकसान का गणित बैठ रहा है। लेकिन नामुराद इंसान हार नहीं मानता। वह जूझ रहा है और यकीनन इन सबसे वह उबर भी जायेगा। 

हालांकि हमारी लापरवाही की वजह से कोरोना का संक्रमण तेजी से फैल सकता है। जबकि सच तो यह है कि कोरोना की दवा भले ही हम नहीं खोज पाये हों लेकिन इससे बचाव करना हमारे हाथ में है। यदि हम सोशल डिस्टेंसिंग का प्रोपर पालन करें, बार-बार हाथ धोयें और मास्क पहने तो निश्चित तौर पर कोरोना महामारी से बचा जा सकता है। लेकिन हम गलतियों से सबक लेने को तैयार नहीं है। यहीं वजह है कि जगह जगह कोरोना से बचाव के मानकों को हम तोड़ रहें है। 

कहते है कि भय बिन होए न प्रीति, लेकिन भय कहां रह गया है। उसे तो हमने काफी पीछे छोड़ दिया है। जबकि कोविड का साया हमारे आसपास ही मंडरा रहा है। ऐसे में ऐतिहात बरतना समझदारी भरा काम है लेकिन यह समझदारी कोई भी दिखाने को राजी नही हो रहा है। वाकयी हम आ बैल मुझे मार कह रहें है। 


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