शुक्रवार, 30 जुलाई 2021

जनता की भावनाओं से कब तक खेलेंगे आलाकमान!

 चाहें कोई भी दल हो, बदलाव के नाम पर राज्यों के जनमत से कर रहे खिलवाड़

जनता की भावनाओं से कब तक खेलेंगे आलाकमान!



प0नि0ब्यूरो

देहरादून। हाल के दिनों में देश के कई प्रदेशों में देखने को मिला कि वहां की सरकारों को उनके पार्टी के आलाकमानों ने बदल दिया। जहां ऐसा नहीं किया गया वहां पर पार्टी के संगठनात्मक ढ़ांचे में फेरबदल हो गई। मसलन उत्तराखंड़, पंजाब जैसे राज्य और कुछ और भी प्रदेश है जहां पर ऐसा बदलाव संभावित है। हालांकि इस काम में राजनीतिक दल आपस में होड़ करते नजर आते है। खासकर भाजपा और कांग्रेस में तो जैसे प्रतिस्पर्धा ही चल रही है। कोई मुख्यमंत्री बदल रहा है तो कोई पार्टी का प्रदेश में मुखिया। लेकिन हर ऐसी जगह से बगावती बू आ रही है।

दरअसल दल कोई सा भी हो, हर कोई बदलाव के नाम पर राज्यों के जनमत से खिलवाड़ करता नजर आ रहा है। चाहे कांग्रेस हो या भाजपा, इन राजनीतिक दलों में बदलाव की जद्दोजहद चल रही है। आगामी चुनाव में जीत का दबाव इतना ज्यादा है कि यह पार्टियां हर टोटके या उपाय आजमाने को तैयार है। इनको लगता है कि चेहरा बदल देने से जनता भूल जायेगी और यह दोबारा सत्ता को हासिल करने में कामयाब हो जायेंगे। 

अपनी जीत के लिए हर जतन करने को तैयार है। बदलाव की बयार बहाने को तैयार है। यानि हर किसी को बदल देंगे लेकिन क्या खुद को बदलने की इच्छा का दम है! कभी आपने सुना कि आलाकमान को बदल दिया गया? लेकिन प्रदेशों के मुखिया इतनी सहजता से बदले जा रहें है कि सवाल खड़े हो जाते है। जब इन्हें राज्यों का मुखिया बनाया जा रहा था तो क्यों नहीं सोचा गया कि इनके पास प्रशासनिक क्षमता नहीं है। यह राज्य के विधयकों को साध नहीं सकते। 

दिक्कत यही है कि किसी नेता की काबलियत को नापने का पैमाना आलाकमान के पास नहीं है। इसलिए जब तक बरतो नहीं, पता नहीं चलता कि कौन कितना काबिल है। हालांकि इस कमी को छिपाने की पूरजोर कोशिश होती है लेकिन जब जरूरत से ज्यादा भद पिट जाती है तो मजबूरन बदलाव की प्रक्रिया को परवान चढ़ाना पड़ता है। लेकिन यदि सामने वाला बन्दा अड़ गया तो परेशानी खड़ी हो जाती है। जैसे येदुरप्पा को ले लीजिए या फिर कैप्टन अमरिन्दर के मामले को देख लीजिए। जब उत्तराखंड़ जैसे राज्य के डमी सीएम को हटाने के वास्ते कई दिनों की मशकक्त हो गई तो बाकी तो दमदार थे। क्यों न पसीने छूटते आलाकमान के!

पसीने छूटे लेकिन आपने जो करना था, वह पूरा किया। लेकिन ऐसे में यह सवाल तो आलाकमान से जरूर किया जायेगा कि जनता की भावनाओं से कब तक खेलोगे आलाकमान? बदलाव के नाम पर जब चाहा तक राज्य में राजनीतिक अस्थिरता फैलाना बंद किया जाना चाहिये। इसके लिए जरूरी है कि आलाकमान खुद को पहचाने और अपने नेताओं की काबलियत को आजमाए ताकि उसे नेतृत्व प्रदान करने के बाद पछताना न पड़े कि बन्दा तो काबिल न था। जैसा कि आजकल देखने को मिल रहा है। यह समाधन मिल गया तो समस्या से निजात जरूर मिल जायेगी।


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