शुक्रवार, 24 दिसंबर 2021

जितना देंगे, उसी अनुपात में वापस मिलेगा

 जितना देंगे, उसी अनुपात में वापस मिलेगा

अन्यथा आशीर्वाद तो दूर की ठहरी, कुछ नहीं मिलने वाला



हरीश बड़थ्वाल

नई दिल्ली। प्रकृति का विधान है, दिए बिना कुछ नहीं मिलेगा और देने या निःस्वार्थ सेवा की प्रवृत्ति होगी तो बिन मांगे मिलता रहेगा, सफलताएं कदम चूमेंगी। इसके विपरीत, मांगने की आदत होगी तो कुछ नहीं मिलेगा। एक प्रसंग रेलयात्रा में सेठ के सामने गिड़गिड़ाते भिखारी का है। सेठ ने दो टूक कहा, ‘मेरा उसूल है, एवज में कुछ पाए बिना किसी को एक धेला नहीं देता!’ भिखारी ने गंभीर मुद्रा में नजर गड़ाते सेठ को देखा और चल पड़़ा। सेठ की कही उसे लग गई थी। कुछ सप्ताह बाद उसी गाड़ी में सेठ ने कुछ फूल खरीदे। पैसे चुकाते वक्त फूलवाले को घूर कर देखा। दोनों ने एक दूसरे को पहचान लिया, फूल विक्रेता पिछले दिनों का भिखारी था। भावुक हो कर उसने जीने की सही राह दिखाने के लिए सेठ का अहसान जताया, ‘पाने के लिए पहले कुछ करने की आपकी नसीहत ने मेरे दिन पलट दिए!’

उपलब्धियां और सम्मान व्यक्ति को विशिष्ट पहचान दिलाते हैं, उसके सुचारु जीवन के लिए अपरिहार्य हैं। उसे अभिशप्त कहा जाएगा जिसकी कोई पूछ नहीं दिया जाता। ऐसा व्यक्ति कालांतर में परिवार-समाज ही नहीं, स्वयं पर बोझ बन जाएगा। तथापि एक स्वतंत्र अस्मिता बतौर व्यक्ति तभी उभरेगा जब उसमें दूसरों की बेहतरी की ठान रखी हो यानी उसमें देने का भाव मुखर हो। उपलब्धि के प्रकरण में ‘देने’ का स्थान ‘लेने’ से उच्चतर और गरिमापूर्ण है। किंतु स्मरण रहे, शुरुआत देने से होगी और पहल आपको करनी है। 

                                                                        हरीश बड़थ्वाल

देने का परिक्षेत्र धन या भौतिक वस्तुएं प्रदान करने से कहीं परे है। बीमारी, शोक या दुष्कर परिस्थिति से त्रस्त परिजन की व्यथा धैर्य से सुनने मात्र से आप उसे राहत पहुंचाते हैं। कुछ प्रसंगों में अपनी उपस्थिति मात्र तो कुछ में दूसरों के अंतरंग सरोकारों में सक्रिय भागीदारी से उनके लिए संबल बनते हैं। परिजनों, सहवासियों, सहयोगियों की बेहतरी में आपकी अभिरुचि जितनी वास्तविक रहेगी, योगदान मनोयोग से, स्वतः ही उच्च गुणवत्ता का तथा दूसरे के लिए उपयोगी रहेगा। असल और बनावटी में अंतर धुंधलाने के कारण सेवाएं या कुछ भी देने के लिए सुपात्र का चयन आजकल चुनौतीपूर्ण है, इसके लिए विशेष सूझबूझ और विवेकशीलता आवश्यक हैं।

उपलब्धि या सफलता स्वयं में लक्ष्य नहीं हो सकती बल्कि व्यक्ति के सतत निवेशों का स्वाभाविक प्रतिफल होती है। युवा मोटिवेशनल लेखक टोनी गास्किन कहते हैं कि प्रेम, धन-संपत्ति और सफलता के पीछे न दौड़ें। स्वयं को निरंतर निखारते रहें। तब आप एक नए संस्करण बतौर प्रस्तुत होंगे, तब इच्छित वस्तुएं आपके पास स्वतः खिंची चली आएंगी। भले ही निष्ठागत व्यवहार, लगनशीलता, उत्कृष्ट और परहितकारी तौरतरीकों को मान्यता या प्रसिद्वि मिलने में समय लगता है किंतु न भूलें, आपके पीछे विभिन्न दायरों में समय-समय पर आपकी मंशाओं, सोच और कार्यों की पड़ताल का सिलसिला जारी रहता है और उनकी राय आपके बारे में प्रायः सटीक रहती है। और इसी के साथ आपकी उपलब्धियों का लेखा-जोखा शुरू होता है। मन और निष्ठा से निष्पादित कार्य में व्यक्ति के समूचे कौशल प्रयुक्त होते हैं और उसमें दूसरों को देने का भाव प्रधान रहता है और सेवा या दी गई वस्तु लाजवाब होती है। ‘देने’ के भाव से अभिप्रेरित व्यक्ति स्वयं उन्नत और भीतर से अधिक सुदृढ़, परिपूर्ण और संतुष्ट रहेगा।

देन-लेन में निष्ठा का नियम आशीर्वाद के आदान-प्रदान में भी लागू होता है। अनेक व्यक्ति उन सयानों से आशीर्वाद पाना अपना अधिकार समझते हैं जिनकी सुध लेना तो दूर बल्कि जिन्हें हेय मानते हुए उनसे सदा दूरी बनाए रखी। आशीर्वाद तो बड़ी बात हुई, एक तुच्छ सी चीज आपको यूं ही कोई क्यों देगा? आशीर्वाद बर्गर या सिमकार्ड की भांति बाजार में सहज उपलब्ध होने वाली वस्तु नहीं है। जिससे हमें पाना है पहले उसे स्वयं से श्रेष्ठतर, उच्चतर मानना होगा, उसके समक्ष रस्मी तौर पर नहीं हृदय से नतमस्तक होना पड़ेगा। देने वाला असल और बनावटी मंशाओं और फितरत को बखूबी समझता है। आप भले ही कुछ न दें, यह भी आवश्यक नहीं कि आप उसके सानिध्य में रहें। किंतु उसके विचारों, भावनाओं को श्रेष्ठ समझते हुए वैसा करने का यत्न करेंगे तो वह हृदय से आप पर आशीर्वचन बरसाएगा और आप के दिन खुशनुमा हो जाएंगे।

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