शुक्रवार, 18 फ़रवरी 2022

सब धरा धरे रह जाते हैं

 दिशा सही न हो तो ज्ञान, हुनर, धन-संपत्ति सब धरा धरे रह जाते हैं, न ही मंजिल मिलती है

हरीश बड़थ्वाल


हरीश बड़थ्वाल

नई दिल्ली। महाज्ञानी हैं, समझदार हैं, सूझबूझ में कमी नहीं फिर भी वह नहीं हासिल कर पाए जिसके अरमान दिल में सदा संजोए गए थे। क्योंकि दिशा सही न थी। दूसरी बात- जितना जल्द दिशा तय कर लेंगे उसी मात्रा में शेष जीवन आनंद और संतुष्टि से जी सकेंगे।

सूटबूट में एक व्यक्ति सड़क किनारे पालथी मारे जमीन पर आड़ी-तिरछी रेखाएं गढ़ रहा था। आनेजाने वाले यह सोच कर कि जरूर कुछ पास है, इकट्ठा होने लगे। वे फुसफुसा रहे थे ‘तांत्रिक है, मुफ्रत में गुर सिखा रहा है।’’ देखते-देखते खासी भीड़ लग गई थी। जग की यही रीत है। बन ठन कर तैयार, सभी एक दूसरे को जैसे तैसे पछाड़ने की होड़ में हैं। जाना कहां है, क्यों जाना है, यह नहीं मालूम!

वो दिन न रहे तो ये दिन भी बहुरेंगे

कोई नहीं कह सकता, आज हम जिस स्थिति में हैं, हमारे पास जो है, जितना है वैसा कब तक चलता रहेगा? हमारी मौजूदा स्थिति या पहचान से अधिक अहम वह दिशा है जिस ओर हम अग्रसर हैं। बाह्य सौंदर्य को समय के साथ ढ़ल जाना है। धन-संपति चलायमान है, आज इधर तो कल दूसरे के पाले में अथाह होने पर पहले तो छिन जाने का जोखिम है, दूसरा उसके बूते सुख-शांति से जीवन बिताना सुनिश्चित नहीं हो जाता। एकबारगी प्रतिष्ठा, लोकप्रियता, कारोबार, राजनीति या वैभव की बुलंदियों पर पहुंचे अनेक किरदार अब धूल छानते मिल जाएंगे क्योंकि उन्हें दिशा बोध न था।



सूचना विस्फोट के युग में उपलब्ध विकल्पों की भरमार व्यक्ति को पशोपेश में खड़़ा कर देती है, क्या करें, क्या न करें। दिशाहीनता के चलते यह नहीं सूझता कि घर-परिवार, समाज या कार्यस्थल में दूरगामी हित में सर्वाेत्तम क्या रहेगा। जिसकी सुविचारित दिशा हो उससे कुछ ज्ञान मिल भी जाए किंतु जो स्वयं बहे जा रहे हैं, दूसरों को कैसे थामेंगे? संतान की शिक्षा, कैरियर या जीवनसाथी के चयन में अनेक मातापिता स्वयं आश्वस्त न होने पर पल्ला झाड़ लेते हैं कि वह स्वयं निर्णय ले।

बुद्वि, ज्ञान या हुनर काफी नहीं हैं मंजिल पाने के लिए

उपयुक्त दिशाज्ञान के अभाव में विशिष्ट गुणों, पर्याप्त जानकारी, सूझबूझ और हुनर के बावजूद सयानी उम्र तक भटकते मिल जाएंगे। दिलोदिमाग में पसरे खालीपन को संत-फकीरों की वाणी या संगतों से भी तृप्ति नहीं मिलती। ढ़लती उम्र तक न सूझना कि शेष दिन कैसे गुजरेंगे यह दर्शाता है कि सामर्थ्य और रुझान के अनुकूल कार्यदिशा का चयन नहीं हुआ। खुशनुमां बुढ़ापे की नींव युवावस्था में पड़़ती है, यह कौंधा ही नहीं। जीवनमूल्यों और दिशा की अस्पष्टता के चलते जनजीवन में मानसिक विकृतियां, दांपत्य अनबन और विच्छेद, कदाचार, लूट-खसोट तथा अन्य अवांछित घटनाओं में तेज बढ़त जारी है।

लक्ष्य उच्च होंगे तो उड़ान भी ऊंची होगी

मोटी पगार, गाड़ी, निजी फ्रलैट, एक अदद सुंदर, वरीयतः कमाऊ पत्नी तक जीवन के लक्ष्यों तक सीमित रखना सही दिशा का संकेतक नहीं हैं। प्रकृति की बृहत योजना में मनुष्य को अथाह सामर्थ्य इस आशय से प्रदान नहीं की गई कि वह निम्नतर जीव-जंतुओं की भांति जीवनपर्यंत केवल अपनी गुजरबसर और सुख सुविधाएं जुटाने-बटोरने में लिप्त रहे। सोच और गतिविधियों को निजी हितों तक सीमित रखने का अर्थ है लोकहित के परम मानवीय कर्तव्य की अवहेलना और आत्मिक उन्नति में अवरोध, ये दोनों ईश्वरीय विधान की अनुपालना के विरुद्व हैं, और इसीलिए मानसिक और भावनात्मक विकृति बतौर दंडनीय हैं।

आपसे बेहतर आपको कोई नहीं जानता

एक राह चुन लेने के बाद वापसी दुष्कर होती है, अतः दिशा का चयन भावावेश में नहीं, सुविचार से करना होगा चूंकि यह संबंधों, कैरियर या कारोबारी प्रोन्नति और चित्त को अनुकूल मुदा में रखने में ठोस भूमिका निभाता है। अपनी योग्यताओं, खूबियों और कौशल का आपको ज्ञान है। आपसे बेहतर आपको कोई नहीं जानता, अपनी दिशा स्वयं नहीं चुनेंगे तो दूसरा आपको मनचाही दिशा में ले जाएगा। इससे पहले कि परिस्थितियां आपको अप्रिय, अनचाहे गलियारों तक पहुंचा दें जिसके लिए आप निर्मित नहीं हैं, साहस दिखाएं और जीवन को समुचित दिशा दे डालें हालांकि यह सरल नहीं है। अपने कंफर्ट जोन से बाहर आने के बाद भी संघर्ष, जग हंसाई और आलोचनाओं के दौर से गुजरना पड़ेगा। फिर भी दूरदृष्टि अपनाते हुए ऐसी राह का चयन करना होगा जो आपके सार्थक और तुष्टिदाई भविष्य के निर्माण में सहायक हो। यह कार्य जितना जल्द संपन्न होगा, उसी अनुपात में अनुगामी जीवन बेहतर होगा। जीवन में मायने दिशा के हैं, तय की गई दूरी या रफ्रतार के भी नहीं। कदम भले ही छोटे हों, अविरल चलते रहेंगे तो सही गंतव्य तक पहुंचना तय है। सही राह पर भटक भी जाएं तो चिंता नहीं करनी चाहिए।

(हरीश बड़थ्वाल के अन्य आलेख उनके ब्लाग (www.bluntspeaker.com) में उपलब्ध हैं।)

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