बुधवार, 13 अप्रैल 2022

जवानों से कराया घर का काम तो वेतन जेब से देना होगा

 जवानों से कराया घर का काम तो वेतन जेब से देना होगा



असम सरकार ने इस शोषण पर अंकुश लगाने की दिशा में ठोस पहल की

एजेंसी

गुवाहाटी। असम में अब किसी भी पुलिस अफसर को किसी भी बटालियन के पुलिसकर्मी का इस्तेमाल निजी घरेलू कार्यों में करने की इजाजत नहीं होगी। मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा ने बटालियन के कमांडेंट सीओ और तमाम पुलिस अधीक्षकों से इस बारे में 10 दिनों के भीतर एक लिखित हलफनामा देने का निर्देश दिया है। उन्होंने कहा है कि किसी भी घरेलू सहायक के इस्तेमाल की स्थिति में संबंधित अधिकारी को अपनी जेब से उसका वेतन देना होगा। सरमा ने उन आरोपों पर रिपोर्ट देने का सख्त निर्देश दिया है जिसमें कहा गया है कि विभिन्न पदों पर तैनात पुलिस अधिकारियों ने निजी सुरक्षा अधिकारी, हाउस गार्ड और घरेलू सहायक आदि को बिना इजाजत के निजी तौर पर रखा है। मुख्यमंत्री सरमा के पास गृह विभाग भी है।

मुख्यमंत्री ने कहा कि ऐसे आरोप हैं कि कुछ पुलिस अधिकारियों ने विभिन्न सशस्त्र बटालियनों के कर्मियों को निजी और घरेलू कामों में लगाया है। उन्होंने कहा कि उन्होंने सशस्त्र बटालियनों के कमांडेंट और विभिन्न जिलों के पुलिस अधीक्षकों से इस मामले में 10 दिनों के भीतर विस्तृत रिपोर्ट और जानकारी देने के लिए कहा है। उनका कहना था कि पुलिस वालों की भर्ती कानून और व्यवस्था को बनाए रखने और सरकारी जिम्मेदारियों को निभाने के लिए की जाती है। वह कहते हैं कि अगर उच्चाधिकारियों की रिपोर्ट, हलफनामे या जांच के दौरान कोई अधिकारी किसी निजी सुरक्षा गार्ड या दूसरे जवान से निजी काम लेता है तो उसे उसका वेतन भी देना होगा।

इससे पहले असम कैबिनेट ने फैसला किया था कि सुरक्षा समीक्षा के आधार पर और संवैधानिक पदों पर रहने वालों के लिए ही एक निजी सुरक्षा अधिकारी पीएसओ को तैनात किया जाएगा। देश में सुरक्षा बलों के उच्चाधिकारियों पर निचले पद वाले जवानों से निजी काम लेने या आवास पर घरेलू सहायक के तौर पर इस्तेमाल करने की परंपरा पुरानी है। आरोप लगते रहें है कि ताकतवर लाबी की सक्रियता के कारण यह मामला ठंडे बस्ते में चला जाता है। एक रिपोर्ट से यह बात सामने आई थी कि उच्चाधिकारियों के अलावा तमाम मंत्रियों, पूर्व अधिकारियों और कई अन्य लोगों के घरों पर ऐसे जवानों की तैनाती होती है। 

खास बात यह है कि इन जवानों को वर्षों से बगैर किसी लिखित आदेश के मौखिक तौर पर तैनात किया गया है। घरों पर इनकी भूमिका ड्राइवर, कुक या निजी सहायक की रह गई है। सीआरपीएफ जवानों को सहायक, ड्राइवर, कुक या अन्य किसी काम से घर पर रखने वाले वीवीआईपी नेताओं की सूची में मौजूदा केंद्रीय मंत्री, पूर्व मंत्री, केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधिकारी के अलावा सीआरपीएफ के डीजी, पूर्व डीजी, एडीजी, आईजी और डीआईजी तक शामिल हैं। 

असम सरकार की इस पहल की सराहना हो रही है लेकिन यह भी शक है कि क्या जमीन पर यह आदेश लागू हो सकेगा? एक अधिकारी के आवास पर बीते 3 वर्षों से तैनात एक जवान ने नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा कि हम तो अधिकारियों के आदेश से मजबूर हैं। उनका मौखिक आदेश नहीं मानने की स्थिति में सर्विस रिकार्ड खराब हो सकता है और नौकरी तक से हाथ धोना पड़ सकता है। राज्य सरकार की मंशा तो ठीक है लेकिन क्या सुरक्षा बलों के उच्चाधिकारियों की मजबूत लाबी मुफ्रत सहायक का मौका अपने हाथ से निकलने देगी!

कोलकाता में एक पूर्व पुलिस अधिकारी कहते हैं कि असम की यह पहल सकारात्मक है। पुलिसवालों का काम आम लोगों की सुरक्षा करना और कानून व व्यवस्था की स्थिति बनाए रखना है, किसी अधिकारी के घर की साग-सब्जी लाना या उसके बच्चों को स्कूल पहुंचाना नहीं।

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