मंगलवार, 23 जुलाई 2019

छपासः एक करिश्माई बीमारी

छपासः एक करिश्माई बीमारी
खबरीलाल
देहरादून। एक करिश्मे का छपास रोग से क्या ताल्लुक? सवाल जरूर आपके जेहन में टपक कर आ गया होगा। हालांकि यह कोई



टपका आम होता तो बड़ा स्वादिष्ट होता लेकिन यह समस्या है इसलिए पीड़ादायक अनुभव रहेगा। यह भी तय है कि हर अच्छा काम पीड़ा के साथ शुरू होता है। 


अब किसी प्रसव पीड़ा से जूझती स्त्राी से पूछिए तो तमाम कष्टों को सहन करते हुए वह मुस्कुरा देगी। एक सपफल व्यक्ति से सवाल करो तो वह सीना चौड़ा करके अपने कष्ट भरे दिनों का गुणगान करेगा। वह उन कष्टों को सकारात्मक लेने की बात करेगा। भले ही उन दिनों को वह याद भी नही करना चाहता होगा।  


अब मुद्दे की बात कर ली जाये। छपास रोग वाकयी करिश्माई बीमारी है, इसे साबित करने की जरूरत महसूस नही होती। जिन लोगों को यह बीमारी चिपकी है, वो न रो सकते है, न हंस सकने की कुव्वत है, वाले हालातों का सामना कर रहें है। शायद कभी सोचते भी होंगे लेकिन चूंकि हमारे यहां परम्परा है कि जिस घाव से दर्द नही उठता, उसका इलाज भी कोई नही करवाता। इसलिए सोच कभी हकीकत में तब्दील नही हो पाती है।  


यह कुछ वैसे ही है कि लोग आपसे आकर  कहें कि आप संघर्ष करो, हम आपके साथ है। लेकिन यकीन मानिये कि जब कभी ऐसा मौका आयेगा आप नितांत अकेले होंगे। आज के दौर में नेता कोसे जाते है, नौकरशाहों को कोसा जाता है। लेकिन सिपर्फ इसलिए कि ये मुंए हमसे आगे कैसे निकल गए। बाकी समाधन से इसका कोई लेना देना नही है। तो भी किसी कुण्ठित की तरह बाहर बैठकर गाइड करने की आदत आम हो गई है। इन सबसे छपास रोगी बेहतर है इसलिए वह करिश्माई बीमारी है।


हमारे देश में लोग करिश्माई है और यहां का सिस्टम भी। किसी ने ठीक कहा कि यहां सब कुछ भगवान के भरोसे चल रहा है। नही यकीन आता ना! हमें भी नही आता था परन्तु अब आंख मूंदकर करते है। दरअसल ऐसा इसलिए है कि हम लोग गलती तो मानते ही नही बल्कि उसका दोषारोपण दूसरे पर जरूर कर देते है।


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