सोमवार, 19 अगस्त 2019

बैंकों के पास भविष्य की रणनीति तैयार करने का अवसर

बैंकों के पास भविष्य की रणनीति तैयार करने का अवसर
प0नि0ब्यूरो
देहरादून। केन्द्र सरकार द्वारा बैंकों को पूंजी उपलब्ध करा कर उनके वित्तीय स्थिति को पटरी पर लाने की पहल हुई। इसके अलावा कानून एवं नियमन तथा बैंकों की संरचना में बदलाव के प्रयास भी हुए हैं लेकिन देश की अर्थव्यवस्था को गति प्रदान करने एवं बैंकिंग सेक्टर को चाक चौबंद किए जाने की दिशा में अभी बहुत कुछ किया जाना शेष हैं। इस क्रम में सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र के तमाम बैंकों को निचली शाखा से लेकर शीर्ष प्रबंधन तक आंतरिक चर्चा कर भविष्य के लिए रूपरेखा तैयार करने के निर्देश दिए है। एक महीने तक चलने वाली इस चर्चा की शुरूवात हो चुकी है। इसके तहत शाखा स्तर की चुनौतियों और कामकाज के साथ-साथ पफंसे हुए कर्ज की वसूली और विभिन्न ऋण योजनाओं की समीक्षा की जानी है। यह याद रखने वाली बात है कि बैंकिंग सेक्टर अर्थव्यवस्था बुनियाद है। 
अनेक बाहरी और घरेलू कारणों से आर्थिक वृद्वि में गतिरोध आ रहा है तथा निश्चित तौर पर इसका नकारात्मक असर बैंकों पर भी पड़ रहा है। हालांकि सरकार और रिजर्व बैंक ने लगातार प्रयास किए है कि व्यक्तिगत, व्यावसायिक और औद्योगिक स्तर पर बैंक ऋण दें तथा अपने वित्तीय अनुशासन को भी मजबूत बनायें। लेकिन बचत घटने और कर्ज की मांग कम होने तथा जोखिम के चलते कर्ज देने से परहेज के कारण ऋण भी अपेक्षित मात्रा में मुहैया नहीं कराया जा रहा। आज की कमजोर अर्थव्यवस्था ने बैंकों को मुश्किल में डाल दिया है। हाल ही में बैंकों को पूंजी देने के साथ ब्याज दरों में कमी कर इस स्थिति से निकलने के सरकार द्वारा प्रयास तो हुए हैं लेकिन इनके नतीजे कुछ समय बाद ही सामने आयेंगेे।
मौजूदा आर्थिक चिंताओं से उबरने और भविष्य की आशंकाओं से निबटने के लिए बैंकों ने अपने स्तर पर भी पहल की है तथा उन्हें विशेषज्ञों के सुझाव भी लगातार मिल रहे हैं। सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार के0 सुब्रमण्यन ने सुझाव दिया है कि ऋण की मांग करने वालों के चुनाव और निगरानी के लिए सार्वजनिक बैंकों को एक स्वतंत्र इकाई का गठन करना चाहिए। हालांकि कुछ विशेषज्ञ तो यह भी धरणा रखते है कि ऋण प्रदान करते समय बैंकों को जोखिम की बहुत अधिक चिंता नहीं करनी चाहिए। वहीं हाल ही में सरकारों द्वारा छोटे बैंकों के विलय से बड़े बैंकों के गठन और डिजिटल तकनीक के अधिक उपयोग पर भी जोर दिया जाता रहा है। 
इसके अलावा बेंकिंग सैक्टर में प्रबंधन और सेवा की गुणवत्ता बेहतर करने की मांग भी लंबे समय से चलती आ रही है। जिसका समाधन फिलहाल प्राथमिकताओं में दिखाई नही देता। गौरतलब है कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने उद्योग को पूंजी प्रदान करने के साथ-साथ देहात और दूर-दराज तक अपनी सेवाएं दी हैं तथा वित्तीय व्यवस्था से समाज के निचले पायदान पर खड़े लोगों को जोड़ने का काम भी किया है। ऐसे में अर्थव्यवस्था के आधार के मजबूत होने तथा उसकी बढ़त के कमजोर होने के मौजूदा माहौल ने बैंकों को एक खास अवसर दिया है कि वह इसका लाभ उठाते हुए अनिश्चिंताओं से खुद को बाहर निकाले एवं देश की अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करने में अपना अमूल्य योगदान दे। फिलहाल बैंकों के पास मौका है कि वे महीनेभर की चर्चा में अपनी खामियों और खूबियों को पहचान कर भविष्य के लिए दीर्घकालिक रणनीति तैयार करें।


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