मनमोहन मोबाइल
- मनमोहन लखेड़ा
जब तुम न थे, मैं बहुत खुश था।
आनंद में था, हंसता था, गाता था। गुनगुनाता था।
घूमता था िफरता था, उधम मचाता था।
दूर-दूर गांव में, अपने परायों के साथ, घंटों बतियाता था।
चाची-चाचा, मौसी-मौसा, दादा-दादी, नानी-नाना,
के संग मौज मनाता था।
हर सुख-दुख में हरेक के पास जाता था।
और अपने होने का सबको अहसास कराता था।
माता-पिता, भाई-बहन के पास बैठकर घंटों बतियाता था।
तब जीवन में बहुत आनंद ही आंनद था।
पर, जबसे तुम मेरी जिन्दगी में आये हो
जी का जंजाल बन गये हो।
जब से तुम्हें दिल से लगाया है मेरा सुख-चैन चला गया है।
आपने मुझे भयंकर ढ़ंग से झूठ बोलना भी सीख दिया है।
मेरा खाना-पीना, उठना-बैठना यहां तक कि नहाना
और बाहर जाना सब बेकार हो गया है।
एक प्रकार से इन सब पर आपका अधिकार हो गया है।
क्योंकि आपका कोई टाइम नही है। आप बेटाइम आ धमकते हो
अगर आपको सुना ना तो आप बार-बार परेशान करते हो।
सोचता हूं जब तुम न थे मेरी जिन्दगी कितनी शांत थी, सरल थी।
अपनी थी लेकिन अब आपके अधीन हो गई है।
आपने मुझे अपना इतना आदी बना दिया है कि
अब आपके बिना मेरा गुजारा मुश्किल है।
इसलिये मैं आपकों दिल से लगाये रहता हूं।
अब तो आपके बिना दिन सूना और रात बेगानी लगती है।
यूं कहूं, आपके बिना हर बात बेमानी लगती है।
आपसे ही मेरी सुबह और आपसे ही शाम होती है।
जिन्दगी अब तुम्हारे बिना एक कदम भी चल न पायेगी।
तुम न रही तो शायद मेरी धड़कन रूक जायेगी।