शुक्रवार, 13 सितंबर 2019

दिल्ली, कर्नाटक, लखनऊ की मैगजीनओं को विशेषांक के नाम पर लुटाए सवा करोड

जीरो टालरेंस सरकार भ्रष्टाचार पर आंखें मूंदे बैठी 



दिल्ली, कर्नाटक, लखनऊ की मैगजीनओं को विशेषांक के नाम पर लुटाए सवा करोड
संवाददाता
देहरादून। सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई सूचना में प्रदेश में विज्ञापन विशेषांक के नाम पर बंदरबांट को लेकर एक खुलासा हुआ है। 50,000 करोड़ के कर्ज में डूबी सरकार जन-धन को लुटाने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है। इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि प्रदेश में किस तरह से विज्ञापन के नाम पर लूट मची है।
जनमंच के अध्यक्ष मनमोहन लखेड़ा द्वारा सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई सूचना से खुलासा हुआ है कि प्रदेश के समाचार पत्रों को विज्ञापन नही मिल रहा जबकि लखनऊ, कर्नाटक की पत्रिकाओं को 14 महीनों के दौरान सरकार ने सवा करोड़ बांट दिए। सूचना अधिकार से मिली जानकारी के मुताबिक सरकार ने बाहरी पत्रिकाओं पर बड़ी कृपा दिखाई है। प्राप्त सूचना के मुताबिक उन्हें सूचना विभाग के माध्यम से विज्ञापन विशेषांक जारी किए गए। 
हैरानी की बात यह है कि जो सूचना विभाग उत्तराखंड के समाचार पत्रों को पांच-दस हजार का विज्ञापन देकर नियम कानून का पाठ पढ़ाता है वही विभाग बाहरी प्रदेशों से प्रकाशित होने वाली मैगजीन ऊपर मेहरबान हो रखा है। सूत्रों की मानें तो सरकार में बैठे एक सलाहकार और सूचना के कुछ अफसरों को इसकी एवज में खूब मोटा माल मिला है। 
आरटीआई से प्राप्त सूचना चौंकाने वाली है। दिल्ली, लखनऊ, कर्नाटक की 14 पत्रिकाओं को विशेषांक हजार, दस हजार नही बल्कि पूरे 19 लाख, 11 लाख, चार लाख, सात लाख के कुल मिलाकर सवा करोड़ के विज्ञापन बांटे गए। सूचना के अफसरों ने उक्त पत्रिकाओं को जिन दरों में विशेषांक दिए उनका सत्यापन करना भी उचित नहीं समझा।
दरों पर नजर पड़ते ही बंदरबांट की शंका और बलवती हो जाती है। सवा करोड़ सिर्फ 14 पत्रिकाओं में अपनी छवि चमकाने पर खर्च करने से सरकार पर भी सवाल खड़े होने लगे हैं। जबकि विज्ञापन नियमावली में राज्य के बाहर से प्रकाशित समाचार पत्रों एवं पत्रिकाओं को 25 हजार से एक लाख रूपये तक के विज्ञापन दिए जाने का प्रावधान है। लेकिन नियमावली से इतर सूचना के महावीरों ने यह कमाल कर दिखाया है।
जनमंच के अध्यक्ष मनमोहन लखेड़ा और उक्रांद के महानगर अध्यक्ष सुनील ध्यानी कहते हैं कि इस प्रदेश में सरकार नाम की चीज ही नहीं है। खनन, शराब, जमीनों, विज्ञापनों की लूट मची है। उनका कहना है कि डबल इंजन की मजबूत सरकार के जीरो टोलरेंस मुखिया की आंखों के सामने यह सब हो रहा है और वह मुंह सिल कर बैठे हैं। विज्ञापनों के नाम पर जिस प्रकार से बंदरबांट सामने आई है उससे लगता है कि सरकार के साथ सूचना विभाग के अपफसर मिलीभगत कर खजाने को लूट आने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे हैं।़ साभार दैनिक जनलहर


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