शुक्रवार, 20 सितंबर 2019

केन्द्र सरकार ने क्यों लगाया ई-सिगरेट पर बैन

केन्द्र सरकार ने क्यों लगाया ई-सिगरेट पर बैन



एजेंसी
नई दिल्ली। वर्ष 2007 में जब ई-सिगरेट बाजार में इस वादे के साथ आई थी कि वह लोगों को धूम्रपान की लत छुड़ाने में मदद करेगी। लेकिन जब स्वास्थ्य मंत्रालय को संदेह हो गया कि इसका असर वादे से ठीक विपरीत हो रहा है और यह और लोगों को धूम्रपान के लिए उकसा रही है, सरकार ने इस पर पाबंदी लगा दी।
सरकार ने जाना कि ई-सिगरेट आम लोगों के साथ ही खास तौर पर युवाओं में निकोटिन पर निर्भरता को महामारी का रूप दे रही है।
आईसीएमआर के अनुमान के मुताबिक भारत में ई-सिगरेट के 400 ब्रांड्स और 7700 से ज्यादा फ्लेवर्स (निकोटिन के साथ और निकोटिन के बगैर) मिलते रहे हैं। भारत में ई-सिगरेट का इस्तेमाल करने वालों की संख्या को लेकर अपर्याप्त आंकडों के कारण यह समझ पाना मुश्किल है कि प्रतिबंध से आम व्यक्ति पर कितना असर पड़ेगा। लेकिन यह सवाल तो उठ ही खड़ा होता है- ई-सिगरेट कैसे काम करती हैं और क्या विज्ञान में ऐसा कोई आधार है जो यह साबित कर सके कि वह धूम्रपान की लत छोड़ने में मदद करती है?
अमेरिकी खाद्य व दवा प्रशासन (एफडीए) ने अब तक ई-सिगरेट को धूम्रपान बंद करने में सहायक के तौर पर मंजूरी नहीं दी है। ऐसा कोई भी प्रमाण उपलब्ध नहीं हैं कि वह किसी व्यक्ति को धूम्रपान की लत से निजात दिलाने में मददगार होती हैं। विश्व तंबाकूरहित दिवस पर 31 मई 2019 को आईसीएमआर ने एक श्वेत पत्र जारी किया, जिसके मुताबिक ई-सिगरेट में मौजूद निकोटिन की अल्प मात्रा का कथित उद्देश्य से विपरीत असर हो सकता है। वह धूम्रपान न करने वालों को भी निकोटिन का आदी बना सकती है।
इंडियन जर्नल ऑफ मेडिकल रिसर्च में प्रकाशित श्वेत पत्र में ईएनडीएस को इंसानी सेहत के लिए संभावित खतरा करार दिया। एक ऐसा खतरा है जिसका असर गर्भ से कब्र तक होता है।
ई-सिगरेट्स के अधिकांश ब्रांड्स में एल्डेहाइड्स, टार्पिन्स, भारी धातु और सिलिकेट कणों जैसे घातक पदार्थ होते हैं।
यह हमारे शरीर की तकरीबन हर एक महत्वपूर्ण प्रणाली को प्रभावित कर सकते हैं, जिसमें कार्डियोवेस्कुलर प्रणाली के साथ हमारी रोग प्रतिरोधक प्रणाली भी शामिल है।
अनुसंधानकर्ताओं के मुताबिक चिंता की बात यह भी है कि उसके दुष्परिणाम भी धूम्रपान की लत की तरह ही होते हैं। ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में प्रकाशित एक लेख में वेपिंग के साथ ई-सिगरेट लिक्विड (ईसीएल) के नकारात्मक प्रभावों की चर्चा की गई है। इंस्टीट्यूट ऑफ इनफ्लेमेशन एंड एजिंग, बर्मिंघम, यूके के अनुसंधान के मुताबिक ईसीएल के संघनित उत्पाद (कंडेंसेशन प्रॉडक्ट), फेफड़ों के लिए मूल लिक्विड से भी ज्यादा घातक होते हैं। यह मैक्रोफेंजेस (एक किस्म की रोग प्रतिरोधक कोशिका) को प्रभावित कर फेफड़ों में मौजूद वायुकोषों, एलवेओली, में सूजन की वजह बनते हैं। इससे व्यक्ति पर फेफड़ों की लंबी बीमारी (क्रोनिक ऑब्स्ट्रक्टिव पल्मनरी डिसीज/सीओपीडी) का खतरा बढ़ जाता है।
एक अन्य अध्ययन में पाया गया कि वेप्स द्वारा छोड़े गए अतिसूक्ष्म कणों ने रक्त-वायु सीमा को लांघकर डीएनए में प्रवेश कर लिया, जिससे कैंसर का खतरा गया। विशेषज्ञों की ई-सिगरेट के दुष्परिणाम साथी के धूम्रपान से दूसरों को होने वाले दुष्परिणामों जितने ही घातक हैं।
सरकार ने यह महसूस किया कि ई-सिगरेट के नफे-नुकसान को परे रखकर इन पर पूर्ण प्रतिबंध न लगाया जाए, लेकिन इनके उत्पादन और इस्तेमाल पर नियंत्रण की आवश्यकता महसूस की गई।  भारत में खाद्य सुरक्षा और मानक (प्रतिबंध व बिक्री पर प्रतिबंध) नियम 2011 के तहत निकोटिन का इस्तेमाल पहले से ही नियंत्रित है।


 


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