गुरुवार, 31 अक्तूबर 2019

टीबी के नये वैक्सीन की खोज

ट्यूबरकुलोसिस यानि टीबी के नये वैक्सीन की खोज



टीबी के इलाज में क्रांति लायेगा नया टीका
एजेंसी
नई दिल्ली। उम्मीद है कि नई वैक्सीन टीबी की बीमारी से दीर्घकालिक सुरक्षा देगी, जिससे दुनिया भर में हर साल करीब 15 लाख लोगों की मौत हो जाती है। बेहद संक्रामक यह रोग बैक्टीरिया की वजह से होता है और इसके इलाज के लिए दुनिया भर में दिया जाने वाला बीसीजी का टीका उतना कारगर नहीं है। इस नए टीके के शुरुआती परीक्षण सफल साबित हुए हैं लेकिन इसके लिए लाइसेंस मिलने में अभी कुछ और वर्ष लगेंगे।
इस रिसर्च में लगे दुनियाभर के शोधकर्ताओं की टीम ने हैदराबाद में फेफड़ों के स्वास्थ्य पर एक ग्लोबल समिट के दौरान इस वैक्सीन के बारे में बताया। यह वैक्सीन उस बैक्टीरिया के प्रोटीन से बनती है जो प्रतिरक्षा प्रक्रिया को शुरू करते हैं। शोधकर्ताओं ने बताया कि यह वैक्सीन शोध के अपने सबसे अहम चरण क्लिनिकल ट्रायल को पार कर चुकी है और दक्षिण अप्रफीका, केन्या और जाम्बिया में 3,500 से अधिक लोगों पर अब तक इसका परीक्षण किया जा चुका है।
टीबी विशेषज्ञों ने बताया कि यह टीका गेम चेंजर है। इस वैक्सीन की खास बात यह है कि यह उन वयस्कों पर भी प्रभावी है जो पहले से टीबी के बैक्टीरिया माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस से संक्रमित थे। ज्यादातर लोगों को जो माइक्रोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस से संक्रमित होते हैं उन्हें टीबी नहीं होता तो यह टीका इससे पूरी तरह छुटकारा दे देगा।
अगर सब कुछ सही रहा तो यह वैक्सीन सबसे जरूरतमंद मरीजों तक 2028 या उसके बाद पहुंच जाना चाहिए। टीके के कामों में अकसर रिसर्च को बड़े पैमाने पर किए जाने की ज़रूरत होती है। ड्रग फर्म ग्लैक्सोस्मिथक्लाइनल जीएसके करीब 20 वर्षों से टीबी के टीके पर काम कर रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन डब्लूएचओ के अनुसार 2018 में अनुमानित एक करोड़ लोग टीबी से बीमार पड़े, जो हाल के वर्षों में अपेक्षाकृत स्थिर संख्या है, जबकि दुनिया की करीब एक चौथाई आबादी अप्रकट रूप से टीबी से संक्रमित है।
निष्क्रिय रूप से मौजूद टीबी वाले लोगों को अपने जीवन में इस बीमारी के पनपने का 5 से 10 फीसदी तक खतरा होता है। इस बीच कई दवाओं के प्रतिरोधी टीबी मल्टीड्रग रेजिस्टेंट-टीबी वो टीबी है जिसमें पहले चरण की कम से कम दो एंटी टीबी ड्रग काम नहीं करते, जो लोगों के स्वास्थ्य लिए एक प्रमुख खतरा बना हुआ है। ड्रग रेजिस्टेंट-टीबी की पहचान और इलाज करना न केवल कठिन है बल्कि यह अधिक महंगा भी है।
पूरी दुनिया के अनुमानित मामलों के एक चौथाई से अधिक मरीजों के साथ भारत पर टीबी के रोगियों का सबसे अधिक बोझ है। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक देश में हर साल करीब 30 लाख नए टीबी के मामले दर्ज किए जाते हैं, इनमें से करीब एक लाख मल्टीड्रग रेजिस्टेंट के मामले होते हैं। इस बीमारी से हर वर्ष करीब 4 लाख भारतीयों की मौत होती है और इससे निबटने में सरकार सालाना करीब 17 लाख करोड़ रुपये खर्च करती है। 
भारत में टीबी के रोगियों की संख्या में गिरावट दर्ज की जा रही है, यह अच्छी खबर है। लेकिन भारत में टीबी के रोगियों की संख्या में उतनी गिरावट नहीं हो रही है। लक्ष्य को पूरा करने के लिए गिरावट की यह दर बहुत धीमी है। टीवी के रोगियों की संख्या में तेजी से गिरावट आए, इसके लिए इलाज और रोकथाम की गति को बढ़ाने की जरूरत है।


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