गुरुवार, 12 दिसंबर 2019

दून विश्वविद्यालय में सरकारी हस्तक्षेप बंद करने की मांग

दून विश्वविद्यालय में सरकारी हस्तक्षेप बंद करने की मांग
विश्वविद्यालय अपने नियम और कानूनों से संचालित होंः आरटीआई क्लब
संवाददाता
देहरादून। आरटीआई क्लब ने कहा है कि दून विश्वविद्यालय में शिक्षकों की नियुक्ति विवादों से घिरी हुई है। हालांकि उस पर सरकार या विश्वविद्यालय प्रशासन ने कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नही की है लेकिन हाल ही में विश्वविद्यालय के कुलपति को उच्च न्यायालय द्वारा पदच्युत करना एक ऐसी दुर्भाग्यपूर्ण घटना है जो उत्तराखंड में उच्च शिक्षा की उपेक्षा और उस के गिरते स्तर के कारकों को रेखांकित करती है। 
उत्तरांचल प्रेस क्लब में आयोजित एक प्रेस वार्ता के दौरान आरटीआई क्लब के पदाध्किारियों का कहना था कि प्रदेश सरकार ने दून विश्वविद्यालय में कुलपति के रिक्त पद को भरने के लिए 17 अक्टूबर 2017 को विज्ञापन प्रकाशित किया था। उसमें विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के मानकों के अनुकूल कुलपति की नियुक्ति में अन्य योग्यताओं के अतिरिक्त अभ्यर्थी का विश्वविद्यालय तंत्र में प्रोफेसर के पद पर 10 वर्ष का अनुभव होना अनिवार्य था। पद के लिए 69 अभ्यर्थियों ने आवेदन किया जिसमें से 65 अभ्यर्थी वंचित अर्हता पूर्ण करते थे। जबकि बर्खास्त कुलपति डा0 चंद्रशेखर नौटियाल का विश्वविद्यालय तंत्र में प्रोफेसर के पद पर कार्य करने का कोई अनुभव नहीं था। फिर भी अपर मुख्य सचिव डा0 रणवीर सिंह की अध्यक्षता में गठित चयन समिति ने कुलपति के लिए उपयुक्त 3 प्रत्याशियों की सूची में प्राथमिकता के आधार पर तीसरे नंबर पर डा0 चंद्रशेखर नौटियाल को सम्मिलित कर दिया और अंततः उनका चयन भी हो गया।
क्लब का कहना था कि डा0 नौटियाल भारतीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान लखनऊ में वैज्ञानिक, मुख्य वैज्ञानिक व निदेशक के पदों पर कार्य कर चुके थे। इन सब नियुक्तियों में प्रोफेसर के समकक्ष उनका निदेशक का कार्यकाल था जो मात्र साढे 6 वर्ष का था। अर्थात उनका समकक्ष पद पर भी 10 वर्ष से कम का अनुभव था। डॉक्टर नौटियाल को यह अहसास था कि उनके पास विज्ञप्ति में वांछित अर्हता के अनुसार विश्वविद्यालय तंत्र में प्रोफेसर पद पर 10 वर्ष का अनुभव नहीं है। इस कमजोरी को छुपाने के लिए उन्होंने चालाकी से अपने बायोडाटा में मुख्य वैज्ञानिक के आगे प्रोफेसर व निदेशक के आगे आउटस्टैंडिंग प्रोफेसर जोड़ दिया जोकि गलत था। उनके संस्थान में इस तरह के पद नाम नहीं है और ना ही वहां शिक्षण या प्रशिक्षण का कार्य होता है। आरटीआई क्लब ने आरोप लगाया कि उनका यह आचरण पद की गरिमा के विपरीत होने के कारण उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में यहां तक कह दिया कि डॉक्टर नौटियाल ने दून विश्वविद्यालय में कुलपति का पद छल कपट से हासिल किया है।
दिलचस्प तथ्य जो उच्च न्यायालय ने अपने 79 पृष्ठों के आदेश में उजागर किया है वह यह है कि अपर मुख्य सचिव डा0 रणवीर सिंह की अध्यक्षता में गठित तीन सदस्यीय चयन समिति ने अपनी सिफारिश में डा0 नौटियाल का नाम मुख्य वैज्ञानिक अथवा निदेशक के पद के आधार पर नहीं अपितु 27 वर्ष का शिक्षण और 12 वर्ष का प्रोफेसर के पद पर अनुभव के आधार पर कुलाधिपति राज्यपाल को प्रेषित किया। जबकि यह सब कुछ डॉ नौटियाल के बायोडाटा में अंकित नहीं था। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि डा0 नौटियाल का चयन पहले ही तय था और उनके द्वारा अपने बायोडाटा में प्रोफेसर व आउटस्टैंडिंग प्रोफ़ेसर लिखना और चयन समिति द्वारा उनके 27 वर्ष का चित्रण व 12 वर्ष का प्रोफेसर के पद पर काम करने का अनुभव बताना महज दिखाने के लिए कागजी खानापूर्ति की गई थी। अपनी नियुक्ति के तुरंत बाद डा0 नौटियाल द्वारा उत्तर प्रदेश सरकार के सेवानिवृत्त नौकरशाह डा0 हरशरण दास को दून विश्वविद्यालय में एनटीपीसी शेयर प्रोफेसर पद पर नियुक्त करना भी यही इंगित करता है।
आरटीआई क्लब ने कहा कि इस सारे घटनाक्रम में राज्य सरकार की चुप्पी और डा0 नौटियाल की उच्च न्यायालय द्वारा बर्खास्तगी के 1 सप्ताह से अधिक समय होने के बाद भी विश्वविद्यालय में वैकल्पिक व्यवस्था के रूप में कोई कार्यवाहक कुलपति की नियुक्ति न करना भी इस प्रकरण में सरकारी हस्तक्षेप की पुष्टि करता है। ऐसी स्थिति में उच्च शिक्षा की गुणवत्ता का नाश होगा, यह विचारणीय विषय है। इस पर अपनी चिंता व्यक्त करते हुए आरटीआई क्लब ने राज्यपाल एवं राज्य सरकार के उच्च अधिकारियों को 9 दिसंबर को पत्र प्रेषित किया जिसमें उन्होंने मांग की है कि दून विश्वविद्यालय में उत्पन्न रिक्त पद पर प्रभारी कुलपति की नियुक्ति की जाये और भविष्य में विश्वविद्यालय के संचालन में सरकार का अवांछित हस्तक्षेप बंद हो।
इस अवसर पर आरटीआई क्लब उत्तराखंड के अध्यक्ष डा0 बीपी मैठाणी, क्लब के महासचिव अमर सिंह घुंती, सचिव यज्ञ भूषण शर्मा, वरिष्ठ उपाध्यक्ष श्रीमती कमला पंत आदि मौजूद रहे।


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