गुरुवार, 12 दिसंबर 2019

ई-वेस्ट मैनेजमेंट पर गति फाउंडेशन की रिपोर्ट


ई-वेस्ट मैनेजमेंट पर गति फाउंडेशन की रिपोर्ट

एक बड़ी मोबाइल कंपनी के अधिकृत डीलर देशव्यापी ई-वेस्ट मैनेजमेंट नियमों की सरेआम उड़ा रहे धज्जियां



अध्ययन में ई-वेस्ट प्रबंधन को लेकर लोगों में जागरूकता का अभाव और ई-कचरे के अवैज्ञानिक विघटप की बात भी आई सामने

संवाददाता

देहरादून। पर्यारण एक्शन और परामर्श के क्षेत्र में कार्य करने वाले देहरादून स्थित समूह गति फाउंडेशन ने देहरादून में ई-कचरा प्रबंधन पर एक विस्तृत अध्ययन रिपोर्ट जारी की है। यह रिपोर्ट मुख्य रूप से तीन बिन्दुओं पर आधारित है- देश की टाॅप तीन में शामिल एक मोबाइल डीलरों द्वारा अपनाए जा रहे ई-कचरा प्रबंधन के तरीके, शहर में ई-कचरा प्रबंधन और ई-कचरा प्रबंधन के मामले में आम नागरिकों की जागरूकता।

अध्ययन में मोबाइल कंपनी के 14 अधिकृत केन्द्रों का दौरा किया गया। 130 से अधिक लोगों के साथ ऑनलाइन साक्षात्कार किया गया और शहर में ई-कचरा रिसाइकिल करने वाले लोगों के साथ बातचीत की गई। अध्ययन टीम ने राजपुर रोड, जाखन, दिलाराम, बल्लूपुर और जीएमएस रोड स्थित मोबाइल कंपनी के अधिकृत शो-रूम्स का दौरा किया।
इस अध्ययन में कई चैंकाने वाले तथ्य सामने आये हैं। अध्ययन में पाया गया कि कंपनी के कई अधिकृडीलर भारत सरकार द्वारा अधिसूचित ई-कचरा प्रबंधन नियम-2016 का सरेआम उल्लंघन कर रहे हैं।
94 प्रतिशत मोबाइल डीलरों के पास ई-कचरा निपटान के लिए एक अलग डस्टबिन नहीं है, जैसा कि नियम 7 (1) के तहत उल्लिखित है। 88 प्रतिशत मोबाइल डीलरों को ई-कचरा (प्रबंधन) नियम-2016 के बारे में कोई जानकारी ही नहीं है। 63 प्रतिशत मोबाइल डीलर तो ऐसे भी हैं, जिन्हें 'ई-वेस्ट' शब्द की जानकारी तक नहीं है। नियम 5 (1) (डी) के अनुसार, मोबाइल डीलरों और ब्रांड मालिकों को वापस खरीद  स्कीम या डिपॉजिट रिफंड योजना चलानी अनिवार्य है, ताकि खराब हो चुके इलेक्ट्रोनिक उपकरण को उपभोक्ता से वापस लिया जा सके। हैरानी की बात है कि एक भी मोबाइल डीलर को या तो वापस खरीद (बाई बैक) स्कीम की जानकारी नहीं है या उसके पास डिपॉजिट रिफंड स्कीम चलाने की कोई व्यवस्था ही नहीं है। अधिकांश मोबाइल डीलर अपने ई-कचरे को कबाड़ी को बेच रहे हैं, जो नियम 7 (3) का उल्लंघन है। यह नियम ई-कचरे को अधिकृत और पंजीकृत रिसाइकिलर्स को सौंपने की बात करता है।
गति फाउंडेशन के संस्थापक अध्यक्ष अनूप नौटियाल कहते हैं कि ई-कचरा प्रबंधन नियम-2016 इस समस्या से निपटने में कारगर साबित हो सकते हैं। लेकिन मोबाइल डीलर इसका पालन नहीं कर रहे हैं। ई-कचरा मिट्टी, पानी और हवा को प्रदूषित कर रहा है और इस तरह से यह पारिस्थितिकी के लिए गंभीर खतरा पैदा कर रहा है। वे कहते हैं कि कंपनियों को अपने उत्पाद उत्पन्न होने वाले ई-कचरे के प्रबंधन की सुविधा आवश्यक रूप से उपलब्ध करवानी चाहिए।
अध्ययन का दूसरा भाग नागरिक सर्वेक्षण पर आधारित है। 90 प्रतिशत नागरिकों को शहर के किसी पंजीकृत ई-वेस्ट रिसाइकलर के बारे में जानकारी नहीं है। 10 मे से 9 लोगों प्रतिशत ने सहमति व्यक्त की कि कंपनियों को अपने उत्पादों के ई-कचरे के बाद के उपभोक्ता-उपयोग की जिम्मेदारी लेनी चाहिए। 50 प्रतिशत नागरिक इसे स्थानीय कबाड़ीवाले को बेचकर ई-कचरे का निपटान कर रहे हैं। अध्ययन से स्पष्ट होता है कि शहर के नागरिकों में ई-कचरा प्रबंधन नियम-2016 के बारे में जागरूकता बहुत कम है। मात्र 20 प्रतिशत लोगों को इन नियमों की जानकारी है। मोबाइल फोन और संबंधित सामान ई-कचरे के उत्पादन के लिए सबसे अधिक जिम्मेदार हैं। ज्यादातर लोग अपने खराब हो चुके इलेक्ट्रोनिक उपकरणों को कूड़ेदान में फेंक देते हैं।
गति फाउंडेशन के पब्लिक पॉलिसी एंड कम्युनिकेशंस हेड ऋषभ श्रीवास्तव के अनुसार शहर में ई-कचरे के निपटान के लिए कोई बुनियादी ढांचा तक नहीं है। ऐसे में कंपनियों की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है। कंपनी ई-कचरे के प्रति लोगों को जागरूक करने के साथ ही इसका संग्रह और निपटान करने में राज्य की एजेंसियां की मदद कर सकती हैं। अध्ययन में यह भी पता चला है कि शहर में बड़ी संख्या में अवैध इकाइयां ई-कचरे के अवैज्ञानिक तरीके से निराकरण या पुनर्चक्रण में लगी हुई हैं, जो इस क्षेत्र की मिट्टी और जल निकायों को दूषित कर रही हैं। इन अवैध इकाइयों से अधिकांश ई-कचरा उत्तर प्रदेश के पड़ोसी शहरों सहारनपुर और मुरादाबाद में ले जाकर डंप किया जा रहा है। अध्ययन के निष्कर्षों के आधार पर, फाउंडेशन ने एक मोबाइल कंपनी को एक लीगल नोटिस भेजा है। 

ऋषभ श्रीवास्तव के अनुसार शहर में अवैध व असुरक्षित तरीके से ई-कचरे का निष्तारण करने वालों के खिलाफ एकजुट होने की आवश्यकता है। वे कहते हैं कि गति फाउंडेशन देहरादून में ई-कचरे की समस्या से निपटने के लिए लगातार कार्य कर रहा है।

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