रविवार, 8 दिसंबर 2019

मोबाइल इंटरनेट और कालिंग सेवाएं अब महंगी हो गई

निजी दूरसंचार कंपनियों द्वारा वित्तीय घाटे के नाम पर मनमाने दाम वसूलने की तैयारी



मोबाइल इंटरनेट और कालिंग सेवाएं अब महंगी हो गई
प0नि0ब्यूरो
देहरादून। इस तरह की लूट संभवतया हमारे देश के अलावा कहीं नही हो सकती। जैसी कि पहले भी आशंका जतायी जाती रही है कि प्रफी की आदत लगाकर लोगों को बाद में ब्लैकमेल किया जायेगा। देशभर में जिस तरह से दूरसंचार प्रदाता कंपनियों ने मोनोपोली चला रखी है, वह कम से कम यही साबित करता है। लेकिन अपफसोस की बात है कि सरकार मूकदर्शक बनी हुई है और जनता के कानों में भी जूं नही रेंग रही। इतनी बड़ी लूट के बावजूद सबने आंखें मूंद रखी है।
गौर हो कि निजी दूरसंचार कंपनियों ने अपने वित्तीय घाटे की भरपाई के लिए अपने उपभोक्ताओं पर काल और डाटा की दरों में 50 फीसदी तक की भारी बढ़ोतरी की घोषणा की है। वोडापफोन-आइडिया, रिलायंस जियो और एयरटेल ने टैरिपफ प्लान बढ़ाने घोषणा की जो करीब चार साल में पहली वृद्वि है। सितंबर में खत्म हुई दूसरी तिमाही में वोडाफोन-आइडिया और एयरटेल ने बड़े घाटे का दावा किया है। ऐसा माना जा रहा है कि वे इसलिए भी दरें बढ़ा रही हैं। वहीं जियो को इस अवधि में मुनाफा हुआ है।
दूरसंचार सेवा प्रदाताओं ने दिसंबर के शुरू में ही दरें बढ़ाने की घोषणा की थी। कंपनियों ने बयान जारी कर अपने विभिन्न प्लान की बढ़ी दरों की जानकारी दी। वोडाफोन आइडिया ने कहा कि उसने सिर्फ अनलिमिटेड डेटा एवं कालिंग की सुविधा वाले प्रीपेड प्लान की दरें बढ़ाई है। वहीं एयरटेल ने सीमित डेटा एवं कालिंग वाले प्लान की शुल्कों में भी संशोधन किया है। वोडाफोन-आइडिया की नई दरें 3 दिसंबर से लागू हो गई है। 
जियो ने भी मोबाइल सेवाओं की दरें बढ़ाने की घोषणा की है। जियो की नई दरें 6 दिसंबर से प्रभावी होंगी और 40 प्रतिशत तक महंगी होंगी। कंपनी से जुड़े अधिकारियों ने बताया कि कंपनियां इस फैसले पर बाजार की प्रतिक्रिया देखने के बाद इनमें संशोधन या नए प्लान की पेशकश कर सकती है। वोडाफोन-आइडिया ने दरों में 42 प्रतिशत तक की वृद्वि की है जबकि एयरटेल 50.10 प्रतिशत और रिलायंस जियो 40 प्रतिशत तक की वृद्वि कर रहे है। 
ऐसे में सवाल उठता है कि इसका हम पर असर क्या होगा। तो बता दें कि इससे डाटा और काल दोनों महंगी हो जायेंगी। वहीं इन कंपनियों का मासिक, सालाना पैक भी महंगा होगा और प्रीपेड उपभोक्ताओं पर अतिरिक्त बोझ पड़ेगा। ऐसे में जाहिर सी बात है कि पोस्टपेड उपभोक्ता भी दरों में बढ़ोतरी से अछूते नही रहेंगे। 
लेकिन सवाल अनसुलझे रह जाते है कि सरकार की नीतियों के कारण अधिकांश छोटी दूरसंचार कंपनियां पहले ही प्रतिस्पर्धा से बाहर हो गई थीं। पहले तो बड़ी कंपनियों ने जमकर चांदी काटी लेकिन अब नीतियों का असर उन पर भी पड़ने लगा तो वे मनमानी पर उतारू हो गई। आखिर पूरा का पूरा घाटा केवल सरकारी नीतियों से तो हुआ नही। इसके पीछे उक्त कंपनियों की खराब मैनेजमेंट भी जिम्मेदार रहा है। ऐसे में उपभोक्ताओं पर एकदम से बोझ डालना कहां तक उचित है। खासकर घाटे का हवाला देते हुए।
सरकार भी खामोश है क्योंकि चंद बची यह दूरसंचार कंपनियां अपना व्यवसाय बंद करने की ध्मकी देकर एक तरह से ब्लैकमेल ही कर रहीं है।


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