बुधवार, 29 जनवरी 2020

डूम्स-डे ग्लेशियर के पिघलने का खतरा

डूम्स-डे ग्लेशियर के पिघलने का खतरा



यदि पिघला तो 12 बड़े देशों में मचेगी तबाही
एजेंसी
लंदन। अंटार्कटिका के पश्चिमी इलाके में स्थित एक बड़ा ग्लेशियर तेजी से टूटता जा रहा है। ये कोई छोटा-मोटा ग्लेशियर नहीं है और इसका आकार लगभग गुजरात के क्षेत्रफल के बराबर है। इतना ही नहीं यह समुद्र के अंदर कई किलोमीटर की गहराई तक डूबा हुआ है। सबसे बड़ी चिंता की बात ये है कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण यह तेजी से पिघल रहा है। अगर ऐसा हुआ तो पूरी दुनिया के सभी समुद्रों का जलस्तर अगले 50 सालों में 2 फुट और 70 सालों में करीब 5 फुट तक बढ़ जाएगा। इस ग्लेशियर का नाम है थ्वायटेस। इसे लोग डूम्स-डे ग्लेशियर भी कहते हैं। यानी वो ग्लेशियर जो कयामत वाले दिन पिघलेगा।
पिछले 30 सालों में इसके पिघलने की दर दोगुनी हो गई है। ग्लेशियर का क्षेत्रफल 192,000 वर्ग किलोमीटर है. यानी कर्नाटक के क्षेत्रफल 191,791 वर्ग किलोमीटर से थोड़ा बड़ा और गुजरात के क्षेत्रफल 196,024 वर्ग किलोमीटर से थोड़ा छोटा। सबसे बड़ी बात ये है कि थ्वायटेस ग्लेशियर समुद्र के अंदर चौड़ाई 468 किलोमीटर है। इस ग्लेशियर से लगातार बड़े-बड़े आइसबर्ग टूट रहे हैं। ब्रिटेन में स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ एक्सटर के प्रोफेसर अली ग्राहम ने बताया कि हाल ही में इस ग्लेशियर में छेद किया गया जिसके जरिए एक रोबोट को इस ग्लेशियर के अंदर भेजा गया। तब यह पता चला कि समुद्र के अंदर से यह ग्लेशियर बहुत तेजी से टूट रहा है।
इसके अंदर ग्रेट ब्रिटेन के आकार का छेद हो चुका है। प्रोफेसर अली ग्राहम ने बताया कि अगले 250 सालों में वैश्विक तापमान 2 से 2.7 डिग्री सेल्सियस बढ़ जाएगा। इससे यह ग्लेशियर पूरी तरह पिघल जाएगा। इसके पीछे ग्लोबल वार्मिंग सबसे बड़ा कारण होगा। अगर यह ग्लेशियर टूटा तो दुनियाभर के समुद्रों का जलस्तर 2 से 5 फुट बढ़ जाएगा। इसका असर पूरी दुनिया के तटीय इलाकों पर पड़ेगा। मालदीव जैसे कई द्विपीय देश पानी में समा जाएंगे।
अमेरिका का शहर बोस्टन तो समुद्री जलस्तर बढ़ने पर आने वाली आपदा की तैयारी में अभी से जुट गया है। बोस्टन अपने तटीय इलाकों को करीब 11 फीट ऊंचा कर रहा है ताकि ग्लेशियर टूटने से अगर समुद्री जलस्तर बढ़े तो उसके लोगों और शहर को नुकसान न हो। अगर थ्वायटेस ग्लेशियर साल 2100 तक पूरा पिघल गया तो 12 विकासशील देशों की करीब 9 करोड़ आबादी को रहने के लिए नई जगह तलाशनी होगी। इतने बड़े पैमाने पर लोगों का विस्थापन दुनियाभर के देश बर्दाश्त नहीं कर पाएंगे और कई देशों की आर्थिक स्थिति बिगड़ जाएगी।


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