बुधवार, 1 अप्रैल 2020

कहीं मुसीबत का सबब न बन जायें प्रवासियों की पहाड़ वापसी

गांव पहुंचे प्रवासी लोग यदि कोरोना संक्रमित हुए तो हालात भयावह हो जायेंगे
कहीं मुसीबत का सबब न बन जायें प्रवासियों की पहाड़ वापसी



प0नि0ब्यूरो
देहरादून। राज्य के पर्वतीय क्षेत्र जो कभी पलायन की वजह से उजाड़ हो गए थे आज वहां पर रौनक देखी जा रही है। जो काम सरकारें नही कर पायी उसे कोरोना के खौफ ने कर दिखाया है। लेकिन समय और हालात के साथ एक बड़ा बदलाव भी आ गया है। इन प्रवासियों के लौटने से पहाड़ के लोग खुश नही है। लोग कोरोना की दहशत के चलते इनसे दूरी भी बनाए हुए हैं। 
प्रवासी लोगों के गांव आने से स्थानीय लोगों में शक और डर दोनों है। इसकी बड़ी वजह कोरोना वायरस का संक्रमण है। चूंकि ज्यादातर लोग आईसोलेशन और क्वारंटाइन से भाग रहें है, ईमानदारी से लाकडाउन और संक्रमण से बचाव के लिए परहेज करने से कतरा रहें है इसलिए स्थानीय लोगों का संदेह करना वाजिब भी है। क्योंकि भले ही उन्होंने सोशल सेपरेटिंग का पालन किया, संक्रमण का खतरा प्रवासियों की वजह से उनपर मंडराने लगा है। 
हालांकि ज्यादातर गांव वापसी करने वाले कोरोना के खौफ से ज्यादा लाकडाउन की सख्ती से घबराकर यहां पहुंचे है। क्योंकि उनको लगता है कि पहाड़ों पर अच्छे से टाइम पास हो जायेगा। आने जाने पर कोई प्रतिबंध नही होगा। यहीं वजह रही कि रूद्रप्रयाग के जिलाधिकारी को संदेश देना पड़ा कि लाकडाउन के हालात में खेलकूद को कतई बर्दाश्त नही किया जायेगा। आप भले ही गांव आ गए हों लेकिन लाकडाउन से छूट नही मिलने वाली है। 
अब तो लोग भी जागरूक हो गए है। इसलिए कई जगह पर तो बकायदा लोग मांग कर रहें है कि सरकार और प्रशासन ऐसे लोगों के गांव आने पर रोक लगाये ताकि कोरोना की महामारी पहाड़ी क्षेत्रों में न फैले। उनकी यह मांग जायज भी है। हाल ही में कोटद्वार में विदेश से लौटा युवक कोरोना से संक्रमित पाया गया था। ऐसे में यदि उसपर नजर न जाती तो जाने कितने लोगों को वह संक्रमित कर सकता था। गांव वापसी करने वालों की संख्या परेशानी का सबब बन सकती है।
बताया जा रहा है कि हजारों लोग हाल ही में गांव वापस लौटे हैं। ऐसे में गांव लौटे प्रवासी लोगों में से कोई भी कोरोना संक्रमित हुआ तो पहाड़ों के हालात भयावह हो सकते है। क्योंकि यह सच किसी से छिपा हुआ नही है कि पहाड़ों में मौजूद अस्पतालों में डाक्टरों, पैरामेडिकल स्टाफ और संसाधनों की कमी है। अधिकांश अस्पताल महज रैफरल सेंटर का रोल अदा करते है। 
स्थानीय लोगों का डर वाजिब है जिसकी वजह से उन्हें लगता है कि प्रवासियों की गांव वापसी कहीं उनके लिए मुसीबत का सबब न बन जाये। प्रधनमंत्री ने अपने संबोधन में कहा है कि सोशल डिस्टेसिंग बनाए लेकिन खुद से दूर न करें। लेकिन गांव वापसी के बाद जो हरकत प्रवासी लोग कर रहें है वो उचित नही है। ऐसे मुश्किल हालात में आप पिकनिक नहीं मना सकते। अपने मजे के लिए दूसरों को संकट में डालेंगे तो अपने भी आपसे कन्नी तो काटेंगे ही। इसलिए लाकडाउन का मजाक बनाने की बजाय उसका पालन करें।


माईगव हेल्पडेस्क पर डिजिलाकर सेवाओं का उपयोग

  माईगव हेल्पडेस्क पर डिजिलाकर सेवाओं का उपयोग व्हाट्सएप उपयोगकर्ता $91 9013151515 पर केवल नमस्ते या हाय या डिजिलाकर भेजकर कर सकते है चैटबाट...