शनिवार, 18 अप्रैल 2020

वजूद पर संकट से जूझते निजी अस्पताल

वजूद पर संकट से जूझते निजी अस्पताल



प0नि0ब्यूरो
देहरादून। निजी अस्पतालों के लिए इस समय अपने कर्मचारियों को वेतन देना ही मुश्किल हो रहा है। बाह्य रोगी विभाग ओपीडी और पहले से निर्धारित आपरेशन के लिए मरीजों की आवक थम गई है क्योंकि मरीज अस्पताल जाने से बचने की हर संभव कोशिश कर रहे हैं।
कोरोना वायरस के आतंक और लाकडाउन के हालातों के बीच अस्पतालों की आमदनी में भारी कमी के कारण कर्मचारियों को समय पर वेतन देना कठिन हो गया है। अस्पतालों में ओपीडी से इन-पेशेंट डिपार्टमेंट आईपीडी में आने यानी भर्ती होने वाले मरीजों की संख्या 10 से 12 फीसदी है। ओपीडी में मरीजों की संख्या न्यूनतम हो गई है, इसलिए इक्का दुक्का मरीज ही भर्ती हो रहा है। निजी अस्पताल में खासकर छोटे अस्पतालों के सामने जो संकट खड़ा हो गया है, इसके लिए वे तैयार नहीं थे। जानकारों का मानना है कि बड़ी अस्पताल श्रृंखलाओं को भी कारोबार सामान्य होने के लिए कम से कम छह महीने जूझना होगा।
अस्पतालों पर यह असर अचानक पड़ा है। यह तब तक बना रहेगा, जब तक भारत में कोरोनावायरस के मामले नियंत्रण में नहीं आ जाते। यह असर कब तक रहेगा, इसका अनुमान लगाने का कोई तरीका नहीं है। लेकिन इतना जरूर कह सकते है कि अस्पतालों के लिए कारोबार सामान्य होने की उम्मीद अभी दूर की कौड़ी है। पहले से तय की जाने वाली सर्जरी अब तक के सबसे निचले स्तर पर आ गई हैं। वित्त वर्ष 2021 की पहली छमाही में सर्जरी के मामले बेहद कम रहने के आसार हैं और इसके चलते आमदनी भी कमजोर रहने वाली है।
अस्पताल कोविड-19 के मरीजों को संभालने के लिए अपने कर्मचारियों को तैयार नहीं कर पाए हैं, जिसके परिणाम स्वरूप उन्हें परिचालन बंद करने को मजबूर होना पड़ रहा है। मसलन लाकडाउन के शुरूवाती दौर में मुंबई में दो अस्पताल बंद हो गए क्योंकि उनके यहां मरीज पाजिटिव पाए गए थे। इनमें से एक अस्पताल के करीब 65 डाक्टरों और नर्सों को क्वारंटीन में रखना पड़ा। मुंबई में दो प्रमुख अस्पतालों को पहले ही सील कर दिया गया जबकि इन दोनों अस्पतालों को कोविड-19 के मरीजों के इलाज का केंद्र बनाया गया था।
अस्पतालों को सबसे पहले अपने कर्मचारियों के लिए व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरणों पीपीई पर पैसा खर्च करने की जरूरत है, भले ही वे कोविड-19 के मरीजों का इलाज कर रहे हों या नहीं। इन किट की कीमत कम से कम 1,800 रुपये प्रति इकाई है। यही वजह है कि छोटे अस्पताल इन किट का इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं या दोबारा इस्तेमाल कर रहे हैं। कुछ एक ही किट पूरे दिन पहन कर रहे हैं, जिसके दौरान वे विभिन्न मरीजों की जांच कर रहे हैं। यह आपदा को न्योता देना है।
निजी अस्पताल इस संकट को पार करने के लिए सरकार से प्रोत्साहन पैकेज या अन्य किसी तरह की सहायता की मांग कर रहे हैं। अस्पतालों में आने वाले मरीजों की संख्या 50 फीसदी घट गई है, जबकि आपूर्ति पर लागत 10 से 30 फीसदी बढ़ गई है। उन्हें बिजली, वेंटिलेटर और पूंजी खर्च जैसी बुनियादी लागतों पर प्रोत्साहन की दरकार है। यदि यह उद्योग निजी क्षेत्र के रूप में अपना वजूद नहीं बचा पाया तो चिकित्सा प्रणाली पूरी तरह बैठ जाएगी।
अस्पतालों के लिए वेतन, बिजली बिल, सालाना मरम्मत अनुबंध जैसे बहुत से तय खर्च हैं और ये किसी ठीकठाक अस्पताल के लिए कई करोड़ रुपये में होते हैं। पहले से तय होने वाली सर्जरी और ओपीडी के लिए मरीज नहीं आने से कोई आमदनी नहीं हो रही है और निजी अस्पताल मुश्किल दौर से गुजर रहे हैं। छोटे क्लीनिक और अस्पताल पहले ही बंद होने के कगार पर हैं। हालांकि इस संकट की घड़ी में यह उद्योग सरकार के साथ है, लेकिन उद्योग की समस्या का कोई समाधान खोजा जाना चाहिए। 
ऐसे हालात में ज्यादातर छोटे क्लीनिक वेतन नहीं दे सकते और कर्मचारी पहले ही छोड़कर चले गए हैं। अप्रैल के अंत से ज्यादा बड़े अस्पतालों के पास कार्यशील पूंजी खत्म हो जाएगी और वे अपने खर्च पूरे करने की स्थिति में नहीं होंगे। यह बहुत खतरनाक स्थिति है क्योंकि कर्मचारी काम पर नहीं आएंगे। ऐसा पहले ही कुछ अस्पतालों में हो रहा है। 
अस्पतालों ने मांग की है कि सरकार तीन महीने तक बिजली के बिल माफ करे, वस्तुु एवं सेवा कर जीएसटी में छूट दे और टैक्स एरियर जारी करे और अस्पतालों के अंग्रिम पंक्ति के कर्मचारियों की सुरक्षा के लिए कदम उठाए। सरकार से कहा गया है कि वह वेंडरों से सुरक्षा साजोसामान दिलाने में मदद करे। ये वेंडर पहले ही सरकारी अस्पतालों को आपूर्ति कर रहे हैं।
कुछ छोटे अस्पतालों ने अपने परिसर सरकार को बिना कर्मचारियों के मुफ्रत में मुहैया कराया है। ऐसे अस्पतालों ने अपने परिसरों के इस्तेमाल के लिए किराया नहीं मांगा है, लेकिन इस अवधि के दौरान बिजली-पानी के बिलों का भुगतान करने को जरूर कहा है। इलाज के दौरान भारी भरकम बिल बनाने के मामले में निजी अस्पतालों की छवि भले ही खराब रही हो लेकिन ऐसे हालात में यदि निजी अस्पतालों को सहारा नहीं दिया गया तो देश की स्वास्थ्य व्यवस्था को गहरा आघात लग सकता है। 



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