मंगलवार, 5 मई 2020

देश में शराब पीना गुनाह हो गया!

सोशल मीडिया में बकायदा चल रही शराब विरोधी मुहिम
देश में शराब पीना गुनाह हो गया!



प0नि0ब्यूरो
देहरादून। सोशल मीडिया में आजकल बकायदा शराब विरोधी मुहिम दिखायी दे रही है। कोई शराब की दुकानें खोले जाने का विरोध कर रहा है तो बहुत से लोग इस पर कोरोना टैक्स लगाने की वकालत कर रहें है। तमाम तरह की इन पोस्ट को देखकर लगता है कि जैसे देश में शराब का सेवन करना अपराध हो। लेकिन एक बात हैरान अवश्य करती है कि जब लाकडाउन के दौरान शराब की दुकानें बंद थी, तब भी जो अवैध रूप से शराब बिकी, उसका किसी ने विरोध नहीं किया?
तब ऐसे लोगों के मुंह पर ताला लगा रहा जबकि छह सौ की शराब की बोतल हजार दो हजार की अवैध रूप से बिक रही थी। कुछ ऐसा ही हाल बीड़ी सिग्रेट का हो रखा है। दस का बंडल पंद्रह से बीस का हो गया। तमाम तरह के सिग्रेटों के ब्रांड ब्लैक में बिकने लगे। हैरानी होती है कि जब बाजार में, समाज में अवैध तौर पर यहीं चीजें बिकती है तो यह तथाकथित समाज सुधारक चूं तक नहीं किया करते। लेकिन वैध् रूप से बिकने पर उन्हें विरोध का मुद्दा मिल जाता है। 
यहां पर हमें नहीं भुलना चाहिये कि देश जहान में कोरोना वायरस से बचाव के लिए लाकडाउन लागू किया गया है। इसका मतलब यह नहीं कि सरकारें देश में बीड़ी सिग्रेट और शराब बंद करके बैठ जाये। यह व्यवस्था तो युद्व के दौरान भी बाधित नहीं हुआ करती। फिर जो लोग शराब को तमाम तरह की बुराईयों की जड़ कहते नहीं अघाते, उन्हें नहीं भुलना चाहिये कि यह चीजें केवल विलासिता से जुड़ी हुई नहीं है। प्राचीनकाल से ही इन्हें सामाजिक मेल मिलापों में अनिवार्य रूप से शामिल किया जाता रहा है। इस सांस्कृतिक विरासत को स्मरण रखा जाना चाहिये। 
इन वस्तुओं का उपभोग कुलीन वर्ग भले ही विलासिता के लिए करता हो परन्तु मजदूर वर्ग तो अपनी आज की थकान मिटाकर अगले दिन की मेहनत के लिए तैयार होने के लिए करता रहा है। अब कोई इसे नशे के तौर पर इस्तेमाल करे तो उसमें शराब का और पीने के शौकीनों की क्या गलती है? सच ही है अपने गलत है, यह मानने का साहस नहीं इसलिए शराब को बलि का बकरा बना दिया गया है।
कायदा तो यह होता कि शराब को नशे के तौर पर पीने वालों को परिवार, समाज और कानून के तहत कसा जाता लेकिन यह साहस तो होता नहीं, खुुदक शराब पर निकाल दी जाती है। यही विरोध करने वाले अक्सर इसे विवाह आदि समारोहांें के दौरान अपनी प्रैस्टिज का सवाल बनाकर काकटेल के बहाने परोसते देखे जाते है।
कमाल की बात है कि यदि उनकी बात को सही मान भी लें तो यह बात हजम नहीं होती कि ऐसे लोग अवैध तौर पर शराब बेचने वालों के घरों पर प्रदर्शन क्यों नहीं करते है? जबकि सरकारी ठेकों पर हर सीजन पर इनका प्रदर्शन जारी रहता है। शराब पर पहले ही अनाप शनाप टैक्स लादा गया है, ऐसे में अतिरिक्त टैक्स लगाने की वकालत करने वालों को याद रखना चाहिये कि शराब पीने वालों ने दिया ही है। किसी का उन्होंने कर्जा नहीं चुकाना जो उनपर लगान वसूला जाये। यह न्याय संगत नहीं और न ही तर्कसंगत है।
जो लोग शराब के शौकीनों द्वारा लोकडाउन के उल्लंघन की बात को तूल दे रहें है उन्हें याद रखना चाहिये कि बाजार में, सड़क में, जहां पुलिस प्रशासन राशन बंट रहा है, वहां किसी की नजर क्यों नहीं जाती? क्या वहां लाकडाउन की ऐसी की तैसी नहीं हो रहीं है? यह हमारी अनुशासनहीनता वाली प्रवृति का परिणाम है इसलिए केवल शराब के शौकीनों पर सवाल उठाना सहीं एवं न्यायोचित नहीं है। यह कोई क्यों नहीं कहता कि आबकारी विभाग तथा वहां मौजूद पुलिस प्रशासन क्या कर रहें है।


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