शुक्रवार, 26 जून 2020

2050 तक आर्कटिक समुद्र में कोई बर्फ नहीं बचेगी

2050 तक आर्कटिक समुद्र में कोई बर्फ नहीं बचेगी



एनसीपीओआर ने चेतावनी दी कि पर्यावरण के लिए यह अच्छा संकेत नहीं
एजेंसी
नई दिल्ली। राष्ट्रीय ध्रूवीय एवं महासागर अनुसंधान केंद्र (एनसीपीओआर) ने ग्लोबल वार्मिंग के कारण आर्कटिक समुद्र के बर्फ में कमी पाई है। समुद्र के बर्फ में कमी की वजह से स्थानीय रूप से वाष्पीकरण, वायु आर्द्रता, बादलों के आच्छादन तथा वर्षा में बढोतरी हुई है। आर्कटिक समुद्र का बर्फ जलवायु परिवर्तन का एक संवेदनशील संकेतक है और इसके जलवायु प्रणाली के अन्य घटकों पर प्रतिकारी प्रभाव पड़ते हैं।
एनसीपीओआर ने यह नोट किया है कि पिछले 41 वर्षों में आर्कटिक समुद्र के बपर्फ में सबसे बड़ी गिरावट जुलाई 2019 में आई। पिछले 40 वर्षों (1979-2018) में समुद्र के बर्फ में प्रति दशक -4.7 प्रतिशत की दर से कमी आती रही है, जबकि जुलाई 2019 में इसकी गिरावट की दर -13 प्रतिशत पाई गई। अगर यही रुझान जारी रहा तो 2050 तक आर्कटिक समुद्र में कोई बर्फ नहीं बच पाएगी, जोकि पर्यावरण के लिए खतरनाक साबित होगा।
1979 से 2019 तक उपग्रह डाटा से संग्रहित डाटा की मदद से एनसीपीओआर ने सतह ऊष्मायन की दर तथा वैश्विक वायुमंडलीय परिसंचरण में बदलावों को समझने का प्रयास किया है। अध्ययन में यह भी बताया गया कि आर्कटिक समुद्र के बर्फ में गिरावट और ग्रीष्म तथा शरद ऋतुओं की अवधि में बढोतरी ने आर्कटिक समुद्र के ऊपर स्थानीय मौसम एवं जलवायु को प्रभावित किया है। जलवायु परिवर्तन का एक संवेदनशील संकेतक होने के कारण आर्कटिक समुद्र के बर्फ कवर में गिरावट का जलवायु प्रणाली के अन्य घटकों जैसे कि ऊष्मा और गति, जल वाष्प तथा वातावरण और समुद्र के बीच अन्य सामग्री आदान-प्रदान पर मजबूत फीडबैक प्रभाव पड़ा है। चिंताजनक तथ्य यह है कि जाड़े के दौरान बर्फ के निर्माण की मात्रा गर्मियों के दौरान बर्फ के नुकसान की मात्रा के साथ कदम मिला कर चलने में अक्षम रही है।
एनसीपीओआर के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक डा0 अविनाश कुमार, जो इस अनुसंधान से जुड़े हैं, ने कहा कि वैश्विक वार्मिंग परिदृश्य की पृष्ठभूमि में अध्ययन प्रदर्शित करता है कि वैश्विक महासागर-वातावरण वार्मिंग ने आर्कटिक समुद्र के बर्फ की गिरावट की गति को तेज किया है। अध्ययन ने निर्धारण एवं प्रमाणीकरण के लिए उपग्रह अवलोकनों एवं माडल पुनर्विश्लेषण डाटा के अनुप्रयोग को प्रदर्शित किया, जिसने 2019 की समुद्र के बर्फ की मात्रा में गिरावट को अब तक के दूसरे सर्वाधिक समुद्र बर्फ के न्यूनतम रिकार्ड से जोड़ा। हालांकि इस वर्ष कोई मौसम से संबंधित कोई उग्र घटना नहीं हुई है, 2019 की गर्मियों में समुद्र के बर्फ की मात्रा के प्रसार एवं समुद्र के बर्फ की मात्रा में त्वरित गिरावट प्रबल रही और इसके साथ उत्तरी गोलार्ध ने भी खासकर बसंत और गर्मी के मौसम के दौरान रिकार्ड उच्च तापमान का अनुभव किया।
उन्होंने कहा कि इस दर पर समुद्र के बर्फ की कमी, जिसका संबंध पृथ्वी पर रहने वाले सभी जीवों के साथ है, का बढ़ते वैश्विक वायु तापमान एवं वैश्विक महासागर जल परिसंचरण के धीमेपन के कारण बहुत विनाशकारी प्रभाव पड़ सकता है। डा0 अविनाश कुमार के नेतृत्व में इस टीम में पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के एनसीपीओआर की जूही यादव और राहुल मोहन शामिल हैं। शोध पत्र जर्नल्स आफ नैचुरल हेजार्ड्स में प्रकाशित किया गया है।


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