बुधवार, 24 जून 2020

छपासः एक मौकापरस्त बीमारी

छपासः एक मौकापरस्त बीमारी



खबरीलाल
देहरादून। भाई-भतीजावाद और मौकापरस्ती हालांकि बुरे प्रसंग माने जाते है लेकिन यह सभी को प्रिय होते है। संसार में ऐसा कौन है जो अवसर मिलने पर इन प्रवृतियों को उजागर न करता हो!  
तो भी इन प्रवृतियों को हमारे बीच में हेय दृष्टि से देखा जाता है। लेकिन कभी अपने आप से मनन करके विचार कीजिएगा कि क्या भाई-भतीजावाद या मौकापरस्ती बुरी चीज है? भई इसका दूसरा दृष्टिकोण भी समझिए, हर कोई आजमाये हुए को ही वरियता देता है ना। ऐसे में अपनों को लाभ प्रदान किया गया तो इसमें खराबी क्या है? अनजान आदमी को जिम्मेदारी थोड़े ही दी जाती है। इसलिए जानकार को मौका देना, कहां तक गलत है।
हालांकि दुनिया में ऐसा कौन होगा जो हाथ आये अवसर को जाने देगा। तो भी लोग मौकापरस्ती को बुरा मानते है। इस तरह तो छपास रोग भी एक बुरी बीमारी हुई! क्योंकि छपास रोग पूरी तरह से मौकापरस्त बीमारी है जिसका रोगी अवसर को अक्सर भुना लेता है।
अब बात मौकापरस्ती की करें तो हर कोई इस बात से सहमत होगा कि हाथ आये मौके को जाने देना समझदारी नही होती। ऐसे में किसी के भाग में छींका फूटा तो वह क्यों न चाटे? फिर जो छत्ता काटता है, वहीं हाथ भी चाटेगा। तो महानुभावों इन दोनों प्रवृतियों में खराबी कहां पर है? वैसे बुरा देखने लगो तो दूध भी सैकड़ों जर्म की वजह से खराब चीज होनी चाहिये। लेकिन नहीं वह तो सेहत के लिए बेहद लाभकारी होता है।
तो क्या भाई-भतीजावाद और मौकापरस्ती गरीब की बीवी है? जो हर कोई उसे भाभी बना लेता है? वरना रूतबे वालों की घरवालियां तो मैडम कहलवाती है। किसी की जुर्रत नही होती कि वह उन्हें बहन जी या भाभी कह ले। वो तो गरीब आदमी है जिसके साथ बंधने पर सबला भी अबला में तब्दील हो जाती है। वैसे भी बारिश की बूंदों ने धरती पर ही गिरना होता है। वो भी आसमान से गिरना होता है। छपास का रोगी उनको अपने में समेट लेता है तो इसमें गुनाह कैसा हो गया!


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