विज्ञान की नजर में घी खाने के शरीर में प्रभाव
लोग आज भी घी को मोटापा और बीमारी देने वाला मानते है
प0नि0डेस्क
देहरादून। वसा का एक शुद्व स्रोत घी किसी भी तरह के ट्रांसफैट से मुक्त होता है। एक साल तक कमरे के तापमान पर ही इसे शुद्व रूप में रखा जा सकता है। भारत और मध्य पूर्व के देशों में पारंपरिक खानपान में घी का इस्तेमाल होता आया है। पश्चिम में लोग इसे क्लैरिफाइड बटर के नाम से जानते हैं।
छह हजार साल से भी पुराने पारंपरिक चिकित्सा विज्ञान आयुर्वेद में घी के इस्तेमाल का जिक्र मिलता है। यह गाय के दूध से बनने वाला घी होता है। भारत के घरों में मक्खन को कम आंच पर पकाते हुए जिस पारंपरिक तरीके से घी निकाला जाता है उससे घी में विटामिन ई, विटामिन ए, एंटीआक्सीडेंट और दूसरे आर्गेनिक कंपाउंड सुरक्षित रहते हैं।
बिना नमक वाले बटर को गरम करने से भी तरल घी और मक्खन अलग हो जाते हैं। इसी तरल को पश्चिमी देशों में क्लैरिफाइड बटर या घी के नाम से बेचा जाता है। ज्यादातर तरह के तेल को तेज आंच पर गर्म किए जाने से उसमें से प्रफी रैडिकल कहलाने वाले अस्थिर तत्व निकलते हैं जो कि शरीर में जाकर कोशिका के स्तर पर बदलाव ला सकते हैं। वहीं घी का स्मोकिंग प्वाइंट 500° फारेनहाइट होने के कारण तेज आंच पर भी उनके गुण नष्ट नहीं होते।
घी में विटामिन ई के रूप में जो शक्तिशाली एंटीआक्सीडेंट पाया जाता है। वह शरीर में घूम रहे प्रफी रैडिकल्स को ढूंढ कर खत्म कर देता है। इस तरह कोशिकाओं और ऊत्तकों को प्रफी रैडिकल के नुकसान से बचाता है और कई बीमारियों की संभावना से भी।
घास के मैदानों में चरने वाली गायों के दूध से निकाला गया घी सबसे अच्छा माना जाता है। इसमें सीएलए यानि कान्जुगेटेड लिनोलेइक एसिड का भंडार मिलता है जो दिल की बीमारियों से लेकर कैंसर तक से लड़ने में मददगार होते हैं। आयुर्वेद में जलन और आंतरिक संक्रमण में इसके इस्तेमाल की सलाह दी जाती है। इसमें पाए जाने वाले ब्यूटाइरेट नाम के फैटी एसिड शरीर के इम्यून सिस्टम के लिए अच्छे माने जाते हैं। घी में एंटी वायरल और पाचन तंत्र के भीतर की सतह की मरम्मत के गुण भी पाए जाते हैं।
घी में मोनोसैचुरेटेड ओमेगा-3 पफैट काफी मात्रा में पाए जाते हैं। यह वही फैट हैं जो सालमन मछली में भी मिलते हैं और इस कारण से पश्चिम में काफी लोकप्रिय हैं और दिल को स्वस्थ रखने के लिए डाक्टर इसे खाने की सलाह भी देते हैं। चूंकि घी बनाने की प्रक्रिया में दूध के लगभग सारे ठोस हिस्से अलग कर दिए जाते हैं, इसलिए शर्करा (लैक्टोज) और प्रोटीन (केसीन) की एलर्जी वाले भी घी खा सकते हैं।
खाने में मौजूद कई तरह के विटामिनों और खनिजों के लिए घी एक माध्यम का काम करता है। यह पोषक तत्व घी में घुल कर ज्यादा आसानी से शरीर की पाचन तंत्र में सोखने लायक बन पाता है। घी फैट का स्रोत तो है ही और हाल तक हर तरह के फैट को लेकर विश्व में अच्छी धारणा नहीं थी। घी और कई तरह के मक्खन में भी सैचुरेटेड फैट होते हैं जिनका संबंध दिल की बीमारों से रहा है। अब तक ऐसी पर्याप्त स्टडी नहीं हुई है जो इसे सुरक्षित बता सकें।
अगर घी से कोई दिक्कत नहीं रही है तो इसे रोजाना अपने खानपान में शामिल रखें। आप जहां भी रहते हैं, जैसे परिवेश से आते हैं और परिवार के खानपान में जैसे घी शामिल रहा है वैसे ही खाना चाहिए। हालांकि अगर कोई स्वास्थ्य से जुड़ी दिक्कत है तो डाक्टर की सलाह लेकर ही घी लेना चाहिए।