शुक्रवार, 9 अक्तूबर 2020

आधुनिक खेती ने खाद्य उत्पादन को ही बना दिया जलवायु के लिए खतरा

आधुनिक खेती ने खाद्य उत्पादन को ही बना दिया जलवायु के लिए खतरा



नेचर में प्रकाशित शोध के अनुसार नाइट्रोजन फर्टिलाइजर जलवायु के लिए इस कदर खतरा बन गए हैं कि इनके चलते पेरिस समझौते के तहत जलवायु से जुड़े लक्ष्य पूरे होते नहीं दिखते
क्लाइमेट कहानी
देहरादून। आज से 111 साल पहले 1909 में जब जर्मन वैज्ञानिक फ्रिट्ज हेबर ने दुनिया को बताया कि नाइट्रोजन और हायड्रोजन के रिएक्शन से अमोनिया बनती है, तब किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि खाद्य उत्पादन बढ़ाने वाले और बेहतर करने वाले नाइट्रोजन उर्वरकों का आधार बनने वाली यह खोज आगे चल के पूरी मानव जाति के लिए एक भारी खतरा बनेगी।
आज, 2020 में विज्ञान हमें बता रहा है कि नाइट्रोजन फर्टिलाइजर जलवायु के लिए इस कदर खतरा बन गए हैं कि इनके चलते न सिर्फ पेरिस समझौते के तहत जलवायु से जुड़े लक्ष्य पूरे होते नहीं दिखते, बल्कि इन उर्वरकों ने खाद्य उत्पादन तक को कटघरे में खड़ा कर दिया है।
भारत जैसे कृषि प्रधान देश में खाद्य उत्पादन पर जलवायु को नुकसान पहुंचाने का आरोप लगे तो यह बड़ी विकट परिस्थिति की ओर इशारा करती है। भारत तो वो देश है जो हमेशा से देसी कृषि तकनीकों का समर्थक रहा है लेकिन बाजारवाद के दबाव में आधुनिक कृषि तकनीक और उर्वरक हमें ही खाने को तैयार बैठे दिखते हैं।
दरअसल नेचर मैगज़ीन में छपे आबर्न विश्वविद्यालय के ताजा शोध से पता चलता है कि नाइट्रस आक्साइड के बढ़ते उत्सर्जन कि वजह से पेरिस समझौते के जलवायु लक्ष्यों को पूरा न होने का खतरा है।
ऐसा इसलिए क्योंकि दुनिया भर में भोजन के उत्पादन में नाइट्रोजन उर्वरकों के बढ़ते उपयोग से वातावरण में नाइट्रस आक्साइड की सांद्रता या कंसन्ट्रेशन्स बढ़ रहा है। यह एक ग्रीनहाउस गैस है जो कार्बन डाइआक्साइड की तुलना में 300 गुना अधिक प्रभावी है और मानव जीवन की तुलना में वायुमंडल में लंबे समय तक रहती है।
यह खोज आबर्न यूनिवर्सिटी के स्कूल आफ फारेस्ट्री एंड वाइल्डलाइफ साइंसेज में एनड्रयू कार्नेजी पफेलो और इंटरनेशनल सेंटर फार क्लाइमेट एंड ग्लोबल चेंज रिसर्च के निदेशक प्रोफेसर हैक्विन टीयान के नेतृत्व में हुए एक अध्ययन का हिस्सा है। ये अध्ययन आज दुनिया की सबसे प्रचलित विज्ञान पत्रिका नेचर में प्रकाशित हुआ है।
प्रोफेसर हैक्विन टीयान ने 14 देशों के 48 अनुसंधान संस्थानों के वैज्ञानिकों के एक अंतरराष्ट्रीय संघ को साथ लेकर ग्लोबल कार्बन प्रोजेक्ट और इंटरनेशनल नाइट्रोजन इनिशिएटिव की छत्रछाया में इसका सह-नेतृत्व किया। अध्ययन का उद्देश्य और शीर्षक था, ‘वैश्विक नाइट्रस आक्साइड स्रोतों का एक व्यापक मात्राकरण और हानि’, इस प्रभावकारी ग्रीनहाउस गैस नाइट्रस आक्साइड का अभी तक का सबसे व्यापक मूल्यांकन जो इसके उत्पादन के भी स्रोतों और उससे होने वाले नुकसानों की पूरी जानकारी देता है ।
टीयान के आबर्न सहयोगी जिसमे प्रोफेसर शुफेन पान, पोस्टडाक्टोरल फेलो रोंगिंग जू, हाओ शि, युआनजी याओ और स्नातक छात्र नाइकिंग पैन भी शामिल हैं, ने और 57 वैज्ञानिकों की एक अंतरराष्ट्रीय शोध टीम ने सह-लेखक के रूप में काम किया।
ये अध्ययन, जलवायु परिवर्तन को तेजी से प्रभावित करने वाली एक खतरनाक प्रवृत्ति की ओर इशारा करता है। नाइट्रस आक्साइड पूर्व-औद्योगिक स्तरों के मुकाबले 20 प्रतिशत तक बढ़ा है इसके अलावा विभिन्न मानव गतिविधियों से होने वाले उत्सर्जन के कारण हाल के दशकों में इसकी वृद्वि में और तेजी आई है।
प्रोफेसर हैक्विन टीयान ने कहा कि इसकी वृद्वि का सबसे प्रमुख कारक है कृषि। इसके अलावा जानवरों के लिए भोजन और फीड की बढ़ती मांग भी वैश्विक नाइट्रस आक्साइड के उत्सर्जन को और बढ़ाएगी।
अध्ययन से यह भी जानकारी मिलती है कि वैश्विक नाइट्रस आक्साइड के उत्सर्जन में सबसे बड़ा योगदान पूर्वी एशिया, दक्षिण एशिया, अप्रफीका और दक्षिण अमेरिका का है। अध्ययन में पाया गया कि चीन, भारत और अमेरिका में सिंथेटिक उर्वरकों के इस्तेमाल से यहां उत्सर्जन सबसे अधिक है, जबकि पशुधन से बनने वाली खाद से होने वाले उत्सर्जन में सबसे ज्यादा योगदान अप्रफीका और दक्षिण अमेरिका का है। उत्सर्जन की सबसे अधिक विकास दर उभरती अर्थव्यवस्थाओं, विशेष रूप से ब्राजील, चीन और भारत में पाई गई, जहां फसल उत्पादन और पशुधन की संख्या में वृद्वि हो रही है।
अध्ययन का सबसे आश्चर्यजनक परिणाम जिससे सभी सह-लेखक सहमत थे कि नाइट्रस आक्साइड उत्सर्जन की वजह से वर्तमान पेरिस जलवायु समझौता या पेरिस अकार्ड में निर्धारित किये लक्ष्यों को प्राप्त करना संभव नहीं हैं, क्योंकि इसका उत्सर्जन नियमों के अनुरूप नहीं है ।
195 देशों के द्वारा हस्ताक्षरित, इस समझौते का उद्देश्य है कि इक्कीसवीं सदी में वैश्विक तापमान में वृद्वि से होने वाले जलवायु परिवर्तन के खतरे को पूर्व-औद्योगिक स्तरों से 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखना और वैश्विक प्रतिक्रिया को मजबूत करना और तापमान को सीमित करने के प्रयासों को आगे बढ़ाते हुए तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक रखना है।
हालांकि आस्ट्रिया में इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट आफ एप्लाइड सिस्टम एनालिसिस में एक सीनियर रिसर्च स्कोलर और अंतर्राष्ट्रीय नाइट्रोजन इनिशिएटिव की पूर्व निदेशक विल्फ्रिरएद विनीवार्टर कहते हैं, नाइट्रस आक्साइड उत्सर्जन को कम करने के अवसर अब भी मौजूद हैं। उन्होंने कहा कि यूरोप दुनिया का एकमात्र ऐसा क्षेत्र है जिसने पिछले दो दशकों में नाइट्रस आक्साइड उत्सर्जन को सफलतापूर्वक कम किया है।
ग्रीनहाउस गैसों और वायु प्रदूषण को कम करने के लिए और उर्वरक उपयोग को सुधारने के लिए बनाई गई औद्योगिक और कृषि नीतियां प्रभावी साबित हुई हैं। फिर भी यूरोप में और साथ ही विश्वस्तर पर और भी प्रयासों की आवश्यकता होगी। 
वहीं आस्ट्रेलिया के कामनवेल्थ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च आर्गेनाइजेशन के क्लाइमेट साइंस सेंटर के मुख्य वैज्ञानिक और ग्लोबल कार्बन प्रोजेक्ट के कार्यकारी निदेशक के रूप में अध्ययन के सह-नेता जोसेप कानडेल्ल ने इस बात पर सहमति व्यक्त की कि यह शोध महत्वपूर्ण और जरूरी है।
वो कहते हैं कि यह नया तुलनात्मक विश्लेषण वैश्विक स्तर पर नाइट्रोजन उर्वरकों के उपयोग और दुरुपयोग के तरीकों पर पूरी तरह से पुनर्विचार करने कि ओर इशारा करता है और हमें आग्रह करता है कि हम खाने को व्यर्थ न करें और खाद्य पदार्थों के उत्पादन में और अधिक प्राकृतिक तकनीकों को अपनाएं।


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