ट्रैकर्स के लिये आकर्षण का केंद्र है पुरोला का रिंगाली ट्रैक
गंगोलीहाट। मित्रों, ट्रैकिंग का अपना ही आनंद है और उत्तराखंड ट्रैकिंग का स्वर्ग है। फिर बात जब ट्रैकिंग की हो और वो भी पहाड़ों में तो क्या कहने। इससे खूबसूरत और रोमांचक भला और क्या हो सकता है। तो आइए हम आपको पहाड़ों की सुंदरता के बीच साहसिक ट्रैकिंग अभियान में लिये चलते हैं। यात्रा ट्रैकिंग टीम के साथ ‘रिंगाली ट्रैक पर’।
रिंगाली ट्रैक उत्तरकाशी जिले के पुरोला में स्थित है। पुरोला में मेन बाजार से लगभग 3 किमी दूर सड़क मार्ग से आप रतेड़ी गांव पहुंच सकते हैं। रतेड़ी से असली ट्रैकिंग की शुरुआत होती है। रतेड़ी से छोटे सी पुलिया पार कर आप ट्रैकिंग शुरू कर सकते हैं।
रतेड़ी से ट्रैकिंग की शुरुआत में पहाड़ों की चोटी से निकलती हुई निर्मल धारा मानों हमारा उत्साहवर्धन कर रही थी। इसी जोश के साथ मैं सबसे आगे मंजिल की तरफ धीरे-धीरे बढ़ रहा था। मेरे ठीक पीछे फोटोग्राफर दोस्त भूपेंदर और सुनील चल रहे थे। उनके और हमारे बीच की दूरियों का घटता बढ़ता फासला इस बात का संदेश था कि वे ट्रैकिंग मार्ग पर स्थित वन्यजीवन की खूबसूरत दुनिया को अपने कैमरे की नजर से निहार रहे थे और राणा जी के साथ सबसे आगे बढ़ता हुआ मैं उन्हें निहार रहा था। प्रकृति प्रेमी और अनुभवी ट्रैकर्स मनोज सबसे पीछे चल रहे थे और सबको ट्रैकिंग मार्ग से संबंधित तमाम जानकारियां उपलब्ध करा रहे थे। राणा जी गाइड के तौर पर सबसे आगे कमान संभाले हुए थे। उनके कदमों की दिशा को ही मैं लगातार पकड़े रहता। फिर वही मार्ग सबका अगला लक्ष्य होता। धीरे धीरे सब अपनी लय में अपनी मंजिल की तरफ बढ़ते जा रहे थे।
विश्राम स्थल
विश्राम स्थल
रास्ते में कुछ कुछ दूरी पर विश्राम भी लिया गया। विश्राम के लिये घने लंबे देवदार एवं चीड़ के पेड़ों की छांव तले खूबसूरत स्थलों को चुना गया। राणा साहब गाइड होने के नाते सबसे तेज चल रहे थे जबकि अपने कैमरे का साजो सामान पीठ पर लादे हुए सुनील सबसे ज्यादा थकान के बीच ट्रैकिंग जत्थे में कदम दर कदम आगे बढ़ रहे थे। एक विश्राम स्थल पर भूपेन्द्र और सुनील ने देर तक प्राकृतिक स्रौत को अपने कैमरे में कैद किया। वहीं दूसरे विश्राम स्थल पर 4-5 मिनट तक शांत होकर सिर्फ झींगुर की आवाज को सुना गया। इतनी देर तक सिर्फ यही मृदु ध्वनि सभी के कानों में गूंजती रही। जो आज भी आंख बंद करते ही कानों में गुंजायमान हो जाती है। सभी की थकान काफूर हो चुकी थी, सब आगे के सफर के लिए तैयार थे।
चढ़ाई चढ़ने और बढ़ने के साथ ही मनोज लगातार रिंगाली के सम्बन्ध में तमाम जानकारियां सभी को प्रदान करते जा रहे थे। रास्ते मे उन्होंने रिंगाल के पेड़ भी दिखाये। जिनका स्थानीय स्तर पर कृषि एवं दैनिक जनजीवन के कार्यों में उपयोग किया जाता है। अगले विश्राम स्थल पर कापफी थकान होने पर राजपाल ने अपने बैग से निकालकर सभी को केले खिलाये और ऊर्जा बढ़ाई। लगभग 5 घण्टे से अधिक की खड़ी चढ़ाई तय करने के उपरांत आखिरकार सबको अपनी मंजिल दिखायी देने लगी। सभी के चेहरे पर थकान के स्थान पर प्रसन्नता नजर आने लगी। राणा के साथ मैं सबसे पहले रिंगाली पहुंचा। फिर एक-एक कर सभी ट्रैकर्स साथी।
7500 हजार फिट की ऊंचाई पर रिंगाली पहुंचते ही हम सभी की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। रिंगाली पहुंचते ही यहां चारों तरफ के खूबसूरत दृश्य को देखकर रास्ते की सारी थकान चकनाचूर हो चुकी थी। वास्तव में यही वह पल होता है जिसके लिए सभी ट्रैकर्स रास्ते की दुर्गम चढ़ाईयों से होते हुए सभी कठिनाइयों को पार कर अपनी मंजिल तक पहुंचने का जोखिम लेते हैं और वास्तव में मंजिल पर पहुंचकर उन्हें उसका फल प्राप्त होता है। रिंगाली पहुंचकर हमें भी यही महसूस हो रहा था।
शाम हो चुकी थी। फोटोग्राफर मित्र भूपेंद्र अपने सारे साजो सामान को सजा चुके थे। इतनी ऊंचाई से साफ आसमान में फोटोग्राफी का लुफ्रत लेने से वे और सुनील प्रफुल्लित थे और उनका ट्रैकिंग का उद्देश्य भी पूरा हुआ। उन्हें आकाशगंगा मिल्की वे के शानदार दर्शन हुए जिसे उन्होंने सुनील के साथ अपने कैमरे में कैद किया। हम सबको भी उनके द्वारा अंतरिक्ष के इन खूबसूरत नजारों से रूबरू कराया गया। वाकई ये अविस्मरणीय दृश्य थे।
यकीन मानिए, रिंगाली की ये ट्रैकिंग सिर्फ ट्रैकिंग ही नहीं थी बल्कि प्रकृति की खूबसूरती को करीब से जानने समझने और उसमें एकाकार होने का एक बेहतरीन अनुभव था। जिसने हम सभी के तन मन में नया जोश, स्फूर्ति और उत्साह का संचार कर दिया था। साथ ही जिसे ‘यात्रा ट्रैकर्स टीम’ के सभी साथी फिर से महसूस करना चाहते थे।