बुधवार, 23 दिसंबर 2020

भौतिकवादी युग में सुख-सुविधा के अलावा सेहत भी जरूरी

 कोविड-19 वायरस में आये खतरनाक बदलाव से बचाव के लिए डरना जरूरी

भौतिकवादी युग में सुख-सुविधा के अलावा सेहत भी जरूरी



प0नि0ब्यूरो

देहरादून। माना कि आज का भौतिकवादी युग बेवजह का भाग-दौड़ वाला समय बन गया है। जरूरत से ज्यादा का संग्रह करने की प्रवृति ने लोगों को चैन से जीना भुला दिया है। और की कामना ने मानव जीवन को पूरी तरह से बदल कर रख दिया है। लेकिन कोविड़ महामारी के संक्रमण काल ने हमें दोबारा पुराने जीवन मूल्यों की ओर वापस जाने को मजबूर किया। 

कोरोना महामारी के शुरूवाती दौर में हमने मिलकर उसका सामना किया और सद्भावना की नई मिसाल भी कायम की। परन्तु समय के साथ साथ हमारा ध्ैर्य चूकता गया। ऐतिहात बरतने का संयम टूट गया और लोगों ने लापरवाही की सारी हदें पार कर दी। इसके लिए अपनी और दूसरों की जान भी दांव पर लगा दी। औरों से प्यार तो परे छोडिए, खुद के प्रति भी मोह माया का परित्याग कर दिया।

अब हालत यह है कि लोग आपस में बीमारियां छिपा रहें है। ताकि उनके छूट्टा घुमने फिरने पर पाबंदी न लग जाये। भले ही इसके लिए वे औरों की जिन्दगी को भी मुश्किल में डाल रहें है। कोई भी महाशय बंदिशों पर अमल करने को तैयार नहीं है। हर कोई जैसे घरों से ऐसे बाहर निकलने को आमादा है जैसे किसी कैद से आजादी चाहिये। लोग न मास्क लगा रहें है और न ही भीड़ भाड़ से कोई परहेज है। कुछ नहीं होता, की धरणा बलवती होती जा रही है। हालांकि ऐसी सोच के परिणाम बेहद खतरनाक हो सकते है। लेकिन इसकी परवाह किसको है।

हमें नहीं भुलना चाहिये कि खतरा टला नहीं है। अब तो कोविड-19 में जो बदलाव देखने को मिल रहा है, यदि उसका संक्रमण बढ़ा तो हालात बेकाबू हो सकते है। इसका बचाव एक ही तरीके से हो सकता है। यानि कोविड-19 से बचाव का एकमात्रा उपाय डरना जरूरी है। फिलहाल लोग बाग भयभीत नहीं है। जो होगा देखा जायेगा की तर्ज पर आचरण देखने को मिल रहा है। 

यकीन मानिए कि इस भौतिकवादी युग में सुख-सुविधओं के साथ साथ हमारे लिए सेहत भी जरूरी है। लेकिन अपफसोस की बात है कि हम लोग सेहत के प्रति बेहद लापरवाही बरत रहें है। बड़ी जल्दी भूल गये कि हम सभी कोविड-19 के खिलापफ एकजुट हुए थे और लाकडाउन और अनलाक की कष्टदायी प्रक्रिया को मिलकर झेला था। 

एक दूसरे के लिए लोग खुलकर मददगार बनकर सामने आये थे। सद्भावना एवं परोपकार की भावना से सरोबार होकर सभी अपने अपने सामर्थ के मुताबिक योगदान कर रहे थे। लेकिन अब हालात एकदम से बदल गए है। सनातनी परम्परा में एक कहावत मशहूर है कि जान है तो जहान है। लेकिन इस कहावत की उपयोगिता को लोग नजरअंदाज कर रहें है। ऐसा करके हम मुसीबत हो बुलावा दे रहें है। 

यूरोप में ब्रिटेन से शुरू हुआ कोविड-19 में खतरानाक बदलाव अपना भयानक रूप दिखाने लगा है। आशंका के अनुसार यदि इस बदलाव ने काम किया तो कोविड-19 कहर बरपा सकता है। इसलिए बचाव के हर संभव तरीके अपनाने में हर्ज ही क्या है। खासकर तब जबकि इससे हमारी और औरों की जान बचती हो।


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