गुरुवार, 3 दिसंबर 2020

 पुस्तक समीक्षाः देहरादून के स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास

जिज्ञासा की असीम तृप्ति का अहसास

चेतन सिंह खड़का


 

देहरादून। प्रथम जिला पालीटिकल कान्प्रफेंस के जरिए वर्ष 1920 में देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु का राजनैतिक पदार्पण जिसके गवाह बने लाला लाजपतराय। इस बीच खिलाफत आंदोलन हो या फिर असहयोग आंदोलन, पूरा दून अंग्रेजों के खिलाफ उद्वेलित रहा। इन उहापोह के बीच वर्ष 1927 को हरिद्वार-ऋषिकेश के बीच रेल सेवा की शुरुआत हुई।

दरअसल देहरादून के स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास के तमाम संकलन पुस्तक के लेखक डा0 आर0के0 वर्मा के काम के प्रति समर्पण एवं प्रतिबद्वता को दर्शाते है क्योंकि पूर्व में दस्तावेजों का संरक्षण दुरुह कार्य था। तो भी डा0 वर्मा ने वर्षाे की मेहनत से इसे संकलित किया और उसे पुस्तकीय आकार में साकार कर दिखाया। यह वास्तव में भूसे के ढेर से सुई खोजने सरीखा रहा होगा।

पुस्तक की समीक्षा करना कोई सहज कार्य नहीं हैं। यह उतना ही कठिन है जितना कि दून के इतिहास का संकलन रहा होगा। इसके बावजूद सिलसिलेवार स्वतंत्रता संग्राम की घटनाओं को पढ़ने के बाद कुछ यक्ष प्रश्नों के उत्तर स्वतः ही मस्तिष्क पटल पर उभर आते है। जिनमें महत्वपूर्ण हैं- उत्तराखंड के लोगों की राष्ट्रीय सोच की वजह और 1930 को जारी कांग्रेस कार्य समिति का एक हैंडबिल का विषय।

अक्सर कहा जाता हैं कि उत्तराखंड में क्षेत्रीय राजनैतिक दलों को इसलिए पनपने का मौका नहीं मिलता क्योंकि यहां के लोगों की सोच राष्ट्रीय रहती हैं। पुस्तक इस बात की तस्दीक करती हैं। लेकिन इस सोच के पीछे प्रवासी उत्तराखंडियों या फिर मनीआर्डर पर आधारित अर्थव्यवस्था का कोई प्रभाव नहीं रहा।

भोगपुर के नरदेव शास्त्री के संचालन में शुरु हुए स्वतंत्रता संग्राम के दौरान से ही यहां के लोग देशभर में चल रहे आंदोलनों को स्वयं में आत्मसात कर लेते थे, उसका हिस्सा हो जाते थे। 

देहरादून के स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास को डा0 आर0के0 वर्मा ने मुख्यतः तीन भागों में पेश किया है। यह वर्ष 1920 1929 तक पहले, वर्ष 1930 से 1939 तक दूसरे तथा वर्ष 1940 से 1947 तक तीसरे भाग के रुप में सामने आती हैं। हालांकि इसके अलावा परिशिष्ट के तौर पर स्वतंत्रता संग्राम सेनानी खंड, स्वतंत्रता सेनानियों की सूची, स्वतंत्रता सेनानियों का परिचय, संस्मरण खंड, गीत खंड, दस्तावेज खंड एवं दुर्लभ चित्रों के माध्यम से छायाचित्र में कई दुर्लभ चित्रों के दर्शन भी पुस्तक की रोचकता में इजाफा करते है।

31 जुलाई 1930 को कांग्रेस कार्य समिति द्वारा जारी एक हैंडबिल सेना एवं पुलिस के कर्मचारियों को उनका कर्तव्य बताने के लिए था। उक्त हैंडबिल में सेना एवं पुलिसकर्मियों द्वारा अधिकारियों के आदेश से लोगों का उत्पीड़न करने को जुर्म करार दिया गया। साथ ही उनसे अपील की गयी थी कि वे स्वतंत्रता सेनानियों को प्रताड़ित करने से बचें। इस हैंडबिल के विषय को पुलिस द्वारा अपने एसओपी में शामिल करना चाहिए। क्योंकि वर्तमान में नेताओं और नौकरशाहों के इशारे पर पुलिस कार्रवाई पर अक्सर सवाल उठते रहते हैं।

26 अप्रैल 1939 को  चुक्खूवाला में प्रजामंडल की स्थापना और 6 मार्च 1940 को नेताजी सुभाषचंद्र बोस का फारवर्ड ब्लाक के गठन के बाद नियति बदल गई और अंग्रेजों की प्रताड़ना के खिलाफ दून का रक्त बहा।

 डा0 आर0के0 वर्मा की पुस्तक ‘देहरादून के स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास’ एक ऐसा दस्तावेज हैं जिसे पाठकगण जरूर पढ़ना चाहेंगे। वास्तव में लेखक ने पुस्तक में छोटी छोटी घटनाओं को सिलसिलेवार पिरोकर 27 वर्षाे का बड़ा इतिहास बना दिया हैं। इन 27 वर्षाे में इतना कुछ जानने को मिलता हैं कि उत्सुकता बढ़ जाती हैं और जिज्ञासा को असीम तृप्ति का अहसास होता हैं।

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