विरोध के लिए हद से आगे जाने की जिद
प0नि0ब्यूरो
देहरादून। किसान आंदोलन के नाम पर जिस तरह से मोदी विरोधी एक धुरी में लामबंद होकर मुहिम चला रहें है, वह शर्मनाक है। यह विपक्ष की एकता विरोध के नाम पर हद से आगे जाने की जिद है जो अब देश के राष्ट्रीय पर्व तक की तौहीन करने से बाज नहीं आ रहा है। गणतंत्र दिवस के दिन विरोध रैली निकालने का आखिर क्या तुक है? टैªक्टर रैली के जरिए अपनी संगठन शक्ति की दबंगई दिखाने से क्या हासिल हो जायेगा, विचार करने योग्य है।
इस तरह एक चुनी हुई सरकार का विरोध इतिहास में कभी नहीं हुआ। हैरानी की बात तो यह है कि जिन एजेंडा को लेकर उक्त किसान संगठन या राजनीतिक दल हमेशा स्वयं को संघर्षरत बताते रहे, उसे जब आज सरकार ने काननू का रूप दे दिया तो वह इलको हजम नहीं हो रहा है। किसान यूनियन के नाम पर आगे लीड कर रहे संगठनों को पता नहीं कि मांगना क्या है? इसीलिए नित नयी मांगे और नित नये बयान सामने आ जाते है।
इससे भी कोई अंजान नहीं कि इस पूरे आदोलन के दौरान वामपंथी और खलिस्तान समर्थक प्रदर्शन भी हो रहें है। अराजकता अपने चरम पर है। पूरे आंदोलन में ऐसा कोई किसान नेता नहीं जो राजनीतिक दल से जुड़ा न हो और जिसके स्वयं के राजनीतिक हित न सधते हो। इसलिए भी प्रदर्शन के दौरान किसानों के हितों की बातें कम और मोदी के विरोध में स्वर ज्यादा उभरते दिखाई देते है। पूरा का पूरा आंदोलन जैसे किसी पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर अंगड़ाई ले रहा है। अब गणतंत्र दिवस के दिन तमाशा करने की नियत इनकी पाले खुद खोल रहा है।
इन राजनीति करने वालों को यह बात नहीं भुलनी चाहिये कि जनता के दरबार में ऐसी ओछी प्रसिद्वि से सत्ता का दरवाजा नहीं खुलता। न ही झूठी इमोशनल का सहारा काम आता है। सच सामने रहता है और जनता जानती है कि किसकी औकात क्या है? फिर यह भी न भूले कि अंबानी और अडानी के विरोध का ढोंग करने वाले इन तथाकथित तब कहां सोये रहते है जबकि आईटीसी जैसी विदेशी कंपनियां कांट्रेक्ट खेती की ओर अपना दबदबा बना रही थी। बीज और कीटनाशक दवाओं तथा खाद में विदेशी कंपनियां अपना एकाधिकार जमा रही थीं? लेकिन यदि देश की निजी कंपनी खेती किसानी के लिए आगे आ गई तो इनमें इतनी बैचेनी क्यों नजर आ रही है।
दरअसल इन किसान संगठनों के नाम पर प्रदर्शन करने वालों को किसानों के हितों से कोई सरोकार ही नहीं है। बस, किसानों के नाम पर इमोशनल कार्ड खेला जा रहा है। वरना भाजपा विरोधी लोगों के अलावा भी लोग सड़कों पर दिखाई देते। वास्तव में पूर्वाग्रह से ग्रसित यह किसान आंदोलन पूरी तरह से सुनियोजित है। जिसे इसको शुरू करने वाले आका खत्म नहीं होने देना चाहते। इसलिए तरह तरह के बहाने बनाकर नित नये मांग सामने रखकर इन्होंने सरकार को उलझाये रखा है।
गणतंत्र दिवस के दिन जिस तरह की अराजकता किसान आंदोलन के नाम पर की गई, वह इस आंदोलन के सिर पर कलंक की तरह से लग गया। अब वक्त आ गया है कि सरकार इनके साथ सख्ती से पेश आये और जो तमाशा इनके द्वारा दिल्ली के आसपास रचा गढ़ा गया है उसपर रोक लगे। क्योंकि यह सहानुभूति से मानने वाले नहीं इनको डंडों से हांका जाना उचित होगा। क्योंकि राष्ट्र सर्वोपरि होता है। उसके बाद ही कोई गिनती में आता है। ऐसे में किसी को राष्ट्र की अस्मिता से खेलने की इजाजत नहीं दी जा सकती है।
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