शनिवार, 9 जनवरी 2021

डेनिस का सरुर

 व्यंग्यः डेनिस का सरुर



चेतन सिंह खड़का

देहरादून। उत्तराखंड की राजनीति कड़ाके की ठंड में महज बयानबाजी से गर्मा गई हैं। चारों तरफ बवाल मचा हुआ है। आलोचनाओं का उबाल आया हुआ है। सत्ता पक्ष बचाव की मुद्रा में हैं। तो विपक्ष मौके को भुनाने में लग गया हैं। वास्तव में आपदा को अवसर में बदलने का यह एक अनुपम उदाहरण हैं।

कहावत है कि पेड़ कोई और लगाता हैं जबकि उसका फल कोई और खाता है। इसी तर्ज में कहें तो सत्ता सुख के साधन कांग्रेस ने जोड़े जिसे आज भाजपाई भोग रहे है। अब इससे आगे चलें तो डेनिस कांग्रेस की उपज थी और उसका सरुर भाजपाइयों को हो रहा है। लेकिन एक कामन बात दोनों में रहती हैं।

आपने कई दफा देखा होगा कि सरुर ज्यादा होने पर बन्दे की जबान लटपटाने लगती हैं और किसी व्यसन के आदी को वह न मिले तो भी जबान लटपटाती हैं। अब इनमें कांग्रेसी कौन और कौन भाजपाई हैं, यह आप सब तय कर लें। क्योंकि यदि हमने तय किया तो पक्षपात का आरोप मढ़ दिया जायेगा, जोकि हम नहीं चाहेंगे। 

बात इससे आगे बढ़ायें तो कहते है कि शराब जितनी पुरानी होती जाती हैं उसका सरुर उतना ही लजीज हो जाता हैं। यह केवल उदाहरण पेश करने या आसान लहजे में समझाने के लिए प्रयुक्त किया जा रहा है। वरना हमारा इरादा शराब को महिमामंडित करने का कतई नहीं है। खैर, फोर ईयर ओल्ड डेनिस भाजपाइयों को मदमस्त किए दे रहा है। इसलिए उनको दूसरों का बुढापा दिख रहा है लेकिन अपना गिरेबान नजर नहीं आता।

चूँकि सत्ता हाथ के साथ नहीं है और कांग्रेसी आदी रहे हैं इसलिए वे भी बौराए हुए है। सब नहले पर दहले नजर आते है। लेकिन इन दो बडे पाटों के बीच प्रदेश की जनता पीस रही है। जबकि प्रदेश के राजनीतिज्ञ हंसी ठट्टे में समय गुजार रहे हैं। क्योंकि कांग्रेस दिशाहीन हैं। वहीं भाजपाई मोदी की पूंछ पकड कर वैतरणी पार करने के अभ्यस्त हो चुके हैं।

प्रदेश की जनता क्या करे? क्योंकि फिलहाल इन दोनों राजनैतिक दलों के बाहर झांकना उसे जोखिम भरा लगता है। जैसे इनके अलावा बाकी दल पराए और अजनबी हों। राजनीतिक लोगों की तो बात करनी बेकार है। एक दल में रहेंगे तो आपस में खींचातान करेंगे। वरना कब किस विचारधारा के साथ चले जायें, कल्पना भी नहीं की जा सकती।

बहरहाल एक रावत ने बोया, दूसरे रावत ने काट लिया। अपनी खुद की मेहनत निल बट्टा सन्नाटा है। टाईम पास के लहजे में समय गुजारा जा रहा है। न नीति न रीति, बस आलोचना और विरोध के लिए विरोध की राजनीति हो रही है। 

अलबत्ता उत्तराखंड की राजनीति में डेनिस का सरुर छाया हुआ है। ऐसा राजनैतिक विश्लेषकों का मानना है। यह नशा तब तक तारी रहेगा जब तक कि जनता जनार्दन झटका न दे। कांग्रेस-भाजपा के बीच की गर्माहट सेंकने बाकी दल आ गए है। आखिर सर्दियों में सेंकने का लोभ क्यों न हो। इसलिए उनकी लार टपक रही है। हालांकि यह समय बतायेगा कि उत्तराखंडी अंगूर किसके हिस्से आयेगा। 

इंतजार नहीं होता तो डेनिस है ना, सहारा देने के वास्ते!


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