रविवार, 24 जनवरी 2021

अपनी ही पार्टी से निकाले गए नेपाली पीएम ओली

अपनी ही पार्टी से निकाले गए नेपाली पीएम ओली



प्रचंड गुट ने उनकी कम्युनिस्ट पार्टी की सदस्यता रद्द की

एजेंसी

काठमांडू। नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को अपनी ही पार्टी से निकाल दिया गया है। ओली के विरोधी खेमे की अगुवाई कर रहे पुष्प कमल दहल ‘प्रचंड’ गुट ने पार्टी विरोधी गतिविधियों के बाद यह कार्रवाई की है। सत्तारूढ़ नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के प्रवक्ता नारायण काजी श्रेष्ठ ने पुष्टि करते हुए कहा कि पीएम ओली की सदस्यता रद्द कर दी गई है। यह पफैसला पीएम ओली और उनके समर्थकों की गैरमौजूदगी में हुआ है।

नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के इस बैठक में ओली गुट के नेता शामिल नहीं हुए थे। ऐसे में प्रचंड समर्थक नेताओं के इस फैसले को पीएम ओली मानने से इनकार कर सकते हैं। पार्टी में विपक्षी धड़े का नेतृत्व कर रहे पुष्प कमल दहल प्रचंड पिछले कई महीने से ओली के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं। ऐसे में पहले से ही आशंका जताई जा रही थी कि राजनीतिक अस्थिरता से दोराहे पर खड़ी नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी कभी न कभी दो धड़ों में जरूर बंटेगी।

नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (एनसीपी) का गठन 2018 में पीएम ओली और पूर्व पीएम प्रचंड ने मिलकर किया था। उससे पहले प्रचंड की पार्टी का नाम कम्युनिस्ट पार्टी आपफ नेपाल (माओइस्ट) जबकि ओली के धड़े वाली पार्टी का नाम कम्युनिस्ट पार्टी आपफ नेपाल (एकीकृत मार्क्सिस्ट) था। दोनों दलों ने आपस में विलय कर नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी या कम्युनिस्ट पार्टी आफ नेपाल का गठन किया।

दोनों दलों के बीच 2020 के मध्य से मतभेद तब गहराने शुरू हुए जब प्रचंड ने ओली पर बिना पार्टी के सलाह के सरकार को चलाने का आरोप लगाया। जिसके बाद दोनों गुटों के बीच कई दौर की हुई बैठक के बाद समझौता हो गया। लेकिन पार्टी में यह शांति ज्यादा दिनों तक बनी नहीं रही और मंत्रिमंडल के बंटवारे को लेकर फिर से खींचतान शुरू हो गई। ओली ने अक्टूबर में बिना प्रचंड की सहमति के अपनी कैबिनेट में फेरबदल किया था। उन्होंने पार्टी के अंदर और बाहर की कई समितियों में अन्य नेताओं से बातचीत किए बगैर ही कई लोगों को नियुक्त किया था। दोनों नेताओं के बीच मंत्रिमंडल में पदों के अलावा राजदूतों और विभिन्न संवैधानिक और अन्य पदों पर नियुक्ति को लेकर सहमति नहीं बनी थी।

पीएम ओली अपने कैबिनेट के कुछ नेताओं का पोर्टफोलियो बदलने के साथ उन्हें फिर से मंत्री बनाना चाहते थे, लेकिन प्रचंड इसके सख्त खिलाफ थे। प्रचंड चाहते थे कि देश के गृहमंत्री का पद जनार्दन शर्मा को दिया जाए। इसके अलावा दहल चाहते हैं कि संचार और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय भी उनके किसी खास नेता को सौंपा जाए। जबकि ओली किसी भी कीमत पर प्रचंड के खास को यह पद नहीं सौंपना चाहते थे।


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