सोमवार, 18 जनवरी 2021

हार्टफुलनेस संस्था द्वारा राष्ट्रीय शिक्षा संगोष्ठी आयोजित


हार्टफुलनेस संस्था द्वारा  राष्ट्रीय शिक्षा संगोष्ठी आयोजित 

शिक्षा को साकार करना आत्मनिर्भर भारत का  भविष्य: डा0 रघुनाथ ए माशेलकर 

संवाददाता
देहरादून। हार्ट फुल एजुकेशन ट्रस्ट के ‘यूनिवर्सिटी कनेक्ट’ उपक्रम के अंतर्गत नेशनल एजुकेशन कॉन्क्लेव राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर केन्द्रित रहा और इसमें वर्तमान शिक्षा प्रणाली में समग्र तथा ह्रदय केन्द्रित शिक्षा को समावेशित किये जाने की जरूरत पर बल दिया गया। इस वर्चुअल कॉन्क्लेव में अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद् के चेयरमैन डा0 अनिल सहस्रबुद्धे पद्म विभूषण एवं नेशनल रिसर्च प्रोफेसर डा0 आरए माशेलकर, मोरारजी देसाई नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ योग के सीईओ डा0 ईश्वर बसवरेड्डी स्वदेस फाउंडेशन के संस्थापक और अपग्रेड के चेयरमैन एवं सह-संस्थापक रौनी स्क्रूवाला, स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसिन में सेंटर फॉर कम्पैशन एंड आलट्रूइज्म के संस्थापक डा0 जेम्स डोटी तथा डा0 कमलेश पटेल (हार्टफुलनेस के मार्गदर्शक, जिन्हें दाजी के नाम से भी जाना जाता है) जैसे प्रख्यात वक्ताओं ने भाग लिया।
कॉन्क्लेव का एक प्रमुख आकर्षण था कई हार्टफुलनेस एजुकेशन ट्रस्ट की ओर से विश्वविद्यालयों के प्राध्यापकों और युवा प्रतिनिधियों को विभिन्न क्षेत्रों किए गए उनके प्रशंसनीय प्रयासों हेतु  सम्मानित करने के लिए आयोजित पुरस्कार वितरण समारोह। ये पुरस्कार चार विभिन्न श्रेणियों हार्टफुल प्रोफेसर पुरस्कार, हार्टफुल शिक्षक पुरस्कार, विशिष्ट ज्यूरी पुरस्कार एवं हार्टफुल युवा प्रतिनिधि पुरस्कार में बाँट कर कुल 37 प्राध्यापकों और युवा प्रतिनिधियों को प्रदान किये गए।
‘हार्टफुल कैम्पस’ के उद्घाटन के बाद हार्टफुलनेस के मार्गदर्शक दाजी ने कहा कि एक बेहतर कल के लिए शिक्षा ही एकमात्र मार्ग है और एक जागृत समाज के लिए शिक्षा में शिक्षा के सभी तत्वों का सही सम्मिश्रण जरूरी है। नेशनल एजुकेशन कॉन्क्लेव 2021 का एकमात्र उद्देश्य देश की शिक्षा प्रणाली में ह्रदय आधारित दृष्टिकोण के प्रति जागरूकता बढ़ाना और छात्रों को एक बेहतर भविष्य बनने के लिए प्रेरित करने एवं सक्षम बनाने में शिक्षण संस्थाओं की जिम्मेदारी को रेखांकित करना है।
कॉन्क्लेव के दूसरे दिन का पहला सत्र ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति: विश्वविद्यालयों में शिक्षा के द्वारा सामाजिक-भावनात्मक शिक्षण को प्रेरित करना’ विषय पर आधारित था जिसमें पद्म विभूषण एवं नेशनल रिसर्च प्रोफेसर डा0 रघुनाथ ए माशेलकर ने सही शिक्षा के महत्त्व पर जोर देते हुए कहा कि शिक्षा संतुलित हो, सर्वांगीण हो और जिसका लक्ष्य ह्रदय में करुणा की पूरी शक्ति को जगाना हो और वह हमें अपनी हर क्रिया हार्टफुलनेस के साथ करने में सहायक हो। 
अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद् के चेयरमैन डा0 अनिल सहस्त्रबुद्धे ने बताया कि लगभग सात हजार साल पहले गुरुकुल पद्धति की शिक्षा के समय जब संसार को विश्वविद्यालयों की संकल्पना का ज्ञान भी नही था हार्टफुलनेस का अस्तित्व था। इस विचार को विस्तार देते हुए हुए उन्होंने भारत के नालंदा, तक्षशिला, विक्रमशिला जैसे संस्थानों का नाम लिया जहाँ विश्व भर से छात्र शिक्षा प्राप्त करने आते थे। उनकी वार्ता में उन दिनों के शिक्षक या गुरु कैसे होते थे और वे छात्रों को किस तरह शिक्षण देते और उसका अभ्यास करवाते थे यह स्पष्ट किया गया।    
स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसिन में सेंटर फॉर कम्पैशन एंड आलट्रूइज्म के संस्थापक डा0 जेम्स डोटी ने अपने सत्र में युवाओं में सकारात्मक स्वास्थ्य एवं जीवनचर्या प्रेरित करने में विश्वविद्यालयों के योगदान पर चर्चा करते हुए उन पहलुओं को रेखांकित किया जो विशेषकर आज के छात्रों में तनाव और उद्विग्नता का कारण बनते हैं और उन्हें नुकसान पहुँचाते हैं। उन्होंने उन छात्रों की बड़ी संख्या की ओर भी ध्यान आकर्षित किया जो स्वयं ही अपने बारे में औरों से अधिक आलोचनात्मक होते हैं और अति आलोचनात्मक होना उनके लिए इतना हानिकारक होता है कि यह उन्हें गलत रास्तों पर ले जाता है, जिसके परिणाम बहुत बुरे होते हैं। उन्होंने कहा कि एक मनुष्य का महत्त्व उसकी शैक्षणिक योग्यताओं या पदवियों से नहीं होता। 

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