मंगलवार, 26 जनवरी 2021

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता या स्वच्छन्दता

सरकार समझा नहीं पाती और विपक्ष बरगलाता रहता है!

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता या स्वच्छन्दता



प0नि0ब्यूरो

देहरादून। हर बार केन्द्र सरकार कहती रहती है कि विपक्ष जनता को गुमराह करने का प्रयास कर रहा है। लेकिन वह खुद अपने स्टेंड को ठीक से समझा पाने में असमर्थ दिखती है। इस कारण से कई बार उसे असहज महसूस करना पड़ा और विपक्ष को मुद्दा मिल गया। इस बार भी तथाकथित जनता हितैषी जब संगठित होकर सड़कों पर सरकार के खिलापफ दुष्प्रचार कर रहें है, तो भी केन्द्र उसका तोड़ निकालने में नाकाम हो रहा है। हालांकि लोगों के बीच यह जुमला भी लोकप्रिय है कि आखिर अकेला मोदी कितना संभालेगा। 

आजकल अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर जो स्वच्छन्दता चारों और व्याप्त है, वह वास्तव में गंभीर समस्या है। यह गैरअनुशासनिक रवैया भविष्य के लिए अच्छे संकेत नहीं है। लेकिन एक तसल्ली तो जरूर होती है कि ऐसा सि र्फ हमारे देश में ही नहीं हो रहा है। समूचा विश्व आजकल ऐसे वाक्ये से दो चार हो रहा है। चाहे वो यूरोप हो या अमेरिका, हर तरफ एक अजीब सी गैर जिम्मेदारी तारी है। जरा जरा सी बात पर लोग उद्वेलित हो जा रहें है। 

आज के दौर में विरोध करने का सवाल हो तो किसी भी हद तक जाकर विरोध करने की अघोषित प्रवृति कायम हो गयी है। जैसा कि हमारे यहां पर भी दिखाई दे रहा है। हर विरोध की सुई आखिर में मोदी विरोध पर आकर टिक जाती है। कहने को तो किसान अपने हक के लिए सड़कों पर हैं लेकिन उनकी सभाओं में मोदी विरोध की आवाज हद पार करती सुनाई देती है। किसानों के नाम पर जमा हुए लोग एक खास एजेंडे के तहत आग उगल रहें है। 

ऐसे में असल मुद्दा तो नेपथ्य में चला गया है। बस राजनीतिक बढ़त की चाहत हद से पार निकल जाने को उतावला कर रहा है। यह जिद्द बात को बनने नहीं दे रही और आंदोलन ऐसा प्रतीत होता है कि रास्ते से उतरता जा रहा है। मसलन गणतंत्र दिवस के दिन टैªक्टर परेड़ की जिद्द, रोजाना नये नये पैतरे, जैसे किसान नहीं, कोई सौदेबाज अपने माफिक सौदा करना चाह रहा है। इससे निचले पायदान में राजनीति जा नहीं सकती वरना वह नजारा भी देखने को मिल जाता। 

बैलेट से तो हार का सामना करना पड़ा, अब इमोशनल ड्रामा करके जीतना चाहते है। यदि वाकयी में सरकार गलत है और यह तथाकथित सही, तो जायें जनता के पास और अपने तथ्य रखें या फिर अदालत का दरवाजा भी खटखटाया जा सकता है। यह तो जैसे शाहीनबाग पार्ट टू या थ्री हो गया है। दिल्ली बार्डर पर कब्जा जमाकर बैठ गए है, लोगों की परेशानियों से कोई वास्ता नहीं है। फिर इस अवरोध से सबसे ज्यादा नुकसान तो किसानों का ही हो रहा है। 

रास्ता बंद होने की वजह से उन्हें औने-पौने दामों में अपना उत्पाद बेचना पड़ रहा है। लेकिन किसानों के इन खैरख्वाहों को इससे क्या सरोकार हो सकता है। किसान फायदे में रहेगा तो इनकी रोजी रोटी नही चलेगी ना, इसलिए ताउम्र सड़क पर नौटंकी करते रहने की मंशा पाल कर चल रहें है। कई संगठन और उनके कई सारे एजेंडे, ऐसे में बात बननी मुमकिन नहीं है। पिफर इनमें आपसी सहमति भी नहीं है। भले ही भीड़ जुटाने के लिए एक हुए है, लेकिन आपसी मतभेद, मनभेद सब कुछ चरम पर है।

दिल्ली बार्डर पर किसानों के बीच गौर फरमाये तो दिखेगा कि लच्छेदार बातें बनाने में माहिर लोग अपनी राजनीति चमकाने के वास्ते किसानों के बीच घुल मिलकर बैठ गए है और यह उस खरगोश की तरह है, जो आसमान गिर गया आसमान गिर गया कहता हुआ भाग रहा है और सारे पशु पंक्षी उसके पीछे भागने लगते है।


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